अपराध की दुनिया से गांव को बाहर निकालने वाले दिनकर पुस्तकालय की कहानी

अपराध की दुनिया से गांव को बाहर निकालने वाले दिनकर पुस्तकालय की कहानी

पुस्तक एवं पुस्तकालय की संस्कृति के खत्म होने अर्थात पढ़नेपढ़ाने की परंपरा के छीजन के जमाने में राष्ट्रकवि की जनउपाधि से सम्मानित महाकवि रामधारी सिंह दिनकर की जन्मभूमि सिमरिया (जिला बेगूसराय, बिहार) में एक जीवंत पुस्तकालय की मौजूदगी सुखद आश्चर्य वाली है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं राष्ट्रकवि दिनकर के जन्मग्राम सिमरिया में स्थित “दिनकर पुस्तकालयकी। सिमरिया ग्रामवासियों के अनुसार साल 1974 में इस पुस्तकालय की स्थापना हुई थी। तब संसाधनों के मामले में यह बहुत ही पिछड़ा हुआ था। कुछ सौ किताबें ही उस समय पुस्तकालय के ग्रंथागार की शोभा बढ़ाती थीं. हालांकि, जनसहयोग की बदौलत आज यह पूरे बेगूसराय जनपद के प्रमुख पुस्तकालयों में शुमार हो चुका है। आज इस पुस्तकालय में दस हजार से अधिक किताबें हैं। हिंदी में प्रकाशित लगभग सारी राजनीतिक, साहित्यिक एवं प्रतियोगी परीक्षाओं से संबंधित पत्रपत्रिकाएं यहां आती हैं। 

सांस्कृतिकसाहित्यिक केंद्र
पुस्तकालय केवल पढ़नेपढ़ाने की गतिविधियों तक ही सीमित नहीं है। इस पूरे इलाके के लोगों के लिए यह एक महत्वपूर्ण साहित्यिकसांस्कृतिक केन्द्र भी है। साहित्यकारों की जयंतीपुण्यतिथि के अवसर पर परिचर्चा का आयोजन, विभिन्न समकालीन मुद्दों पर विमर्श का आयोजन, कवि गोष्ठी, निबंध एवं भाषण प्रतियोगिता आदि कुछ ऐसी गतिविधियां हैं जिसका इंतजार आसपास रहनेवाले हर उम्र के लोगों को रहती है। 

पुस्तकालय की साप्ताहिक बैठक

समृद्ध पाठक परिवार 
चार सौ से अधिक पाठकों से समृद्ध है पुस्तकालय का पाठक परिवार। गौरतलब है कि केवल सिमरिया के लोग ही इसके सदस्य नहीं हैं। लगभग 25-30 किलोमीटर दूर अवस्थित बस्तियों के पुस्तक प्रेमी भी इस पुस्तकालय के सदस्य हैं।पुस्तकालय लैंगिक समानता की भी ओर अग्रसर है. इसकी लगभग एक चौथाई सदस्य लड़कियां /कामकाजी घरेलू महिलाएं हैं। पुस्तकालय के नियमित सदस्य मुकुंद मिश्रा का कहना है कि दिनकर पुस्तकालय से जुड़ने के बाद उन्हें किताबों की दुनिया से रूबरू होने का मौका मिला. उनके बौद्धिक विकास और सम्पोषण में इस संस्था की अहम भूमिका रही है।

सिमरिया के सांस्कृतिक नवजागरण का वाहक
इस पुस्तकालय की बुनियाद ग्रामीणों के द्वारा तब रखी गई थी जब यह गांव अपराध और हिंसा के दावानल में दहक रहा था। नई पीढ़ी को अपराध की दुनिया से बाहर निकालने एवं दिनकर साहित्य से जोड़कर उनके संस्कार और आचरण को बदलने के सपने को जहन में रखकर ही पुस्तकालय की स्थापना की गई। आज जब यह पुस्तकालय अपने स्थापना के चार दशक पूरे कर चुका है तो यहां के लोगों का कहना है कि जिस उद्देश्य से इसकी स्थापना हुई, उसमें बहुत हद तक सफलता मिली। 

चुनौतियां और भी हैं
दिनकर पुस्तकालय के अध्यक्ष विश्वंभर सिंह का कहना है कि बेशक हमारी उपलब्धियों की फेहरिस्त लंबी है पर चुनौतियां भी कम नहीं है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के जमाने में लोगों को पुस्तकालय और किताबों से जोड़े रखने का चैलेंज हम सब पर है। हम हर साल कुछ नया करके पुस्तकालय से लोगों को जोड़े रखने की भरपूर कोशिश करते हैं और इसी संबंध में यहां कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं।