भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता वी एस नायपॉल का निधन

भारतीय मूल के नोबेल पुरस्कार विजेता वी एस नायपॉल का निधन

भारतीय मूल के मशहूर लेखक वी एस नायपॉल का निधन आज तड़के 85 साल की उम्र में लंदन में हो गया.  द गार्डियन की खबर के मुताबिक नायपॉल की पत्नी नादिरा नॉयपाल ने उनके निधन की पुष्टि करते हुए कहा कि उन्होंने लंदन के अपने आवास में अंतिम सांस ली.

उनकी पत्नी ने बताया, ‘‘उन्होंने जिंदगी में बड़ी उपलब्धियां हासिल की और उनका जीवन अद्भुत रचनात्मकता से भरा हुआ था. उनके अंतिम समय में उनके चाहने वाले लोग, उनके साथ थे.’’ 

भारतीय मूल के ब्रिटिश लेखक सलमान रुश्दी ने नायपॉल को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, ‘‘हम आपस में पूरी जिंदगी राजनीति और साहित्य को लेकर असहमत होते रहे लेकिन अभी मुझे ऐसा महसूस हो रहा है कि मैंने अपने एक प्यारे बड़े भाई को खो दिया है.’’

नॉयपाल का जन्म त्रिनिदाद में 17 अगस्त 1932 में एक ऐसे परिवार में हुआ था जो 1880 में भारत से यहां आकर बस गया था.  नायपॉल का जन्म जिस माहौल और परिवेश में हुआ था उससे वह कभी खुश नहीं रहे। उन्हें कभी यह जगह अपने घर सी नहीं लगी। उन्होंने साल 2008 में अपने बचपन को याद करते हुए कहा था कि उनका बचपन बेहद ही खराब स्थिति में गुजरा और उनका परिवार काफी बड़ा था जो उनके लिए अच्छा नहीं था.  उनका मानना था कि उन्हें वहां किसी तरह की खूबसूरती नहीं दिख रही थी

नायपॉल की इस जगह को छोड़ने की जद्दोजहद सफल हुई और छात्रवृत्ति पर 1950 में वह अंग्रेजी पढ़ने ऑक्सफोर्ड चले गए. नायपॉल 10 साल की उम्र से ही अपने मन में लेखक बनने का सपना  संजोए हुए थे. वह ब्रिटेन पढ़ाई करने के लिए आ तो गए थे लेकिन यहां भी वहएकांत और निराशासे लड़ते रहे. उन्होंने इस समय को याद करते हुए कहा था कि वह एक हद तक इस स्थिति के लिए तैयार थे। इसके अलावा यह वह समय था जब नायपॉल खुद को अपने कॉलेज के ज्यादातर छात्रों से ज्यादा तेज और काबिल समझते थे.

उन्होंने अपने करियर की शुरुआतबीबीसी वर्ल्ड सर्विससे की थी.  उनकी पहली किताब 1957 में प्रकाशित हुई, जिसका नाम  मिस्टिक मैसरथा. इस उपन्यास के लिए उन्हें पुरस्कृत भी किया गया लेकिन इस हल्की कॉमेडी थीम पर उन्होंने बाद में लिखना बंद कर दिया. इसके बाद उन्होंनेए बेंड इन द रिवरऔरअ हाउस फॉर मिस्टर बिस्वासजैसी किताबें लिखी. नायपॉल लगातार इस तरह का यात्रा वृतांत लिखते रहे थे जो अपने मौजूदा समय के लेखन शैली से बिल्कुल अलग था.  नायपॉल को 1971 में बुकर प्राइज और 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया.  उन्होंने अपने जीवन में 30 से ज्यादा किताबें लिखी.

ए हाउस फॉर मिस्टर बिस्वास

लेखन के साथसाथ नायपॉल विवादों के घेरे में भी रहे.  उन पर महिला विरोधी होने के आरोप भी लगे.  उन्होंने एक बार महिलाओं की लेखन क्षमता पर सवाल उठाते हुए कहा था, ‘‘मैं किसी भी गद्य का पहला या दूसरा पैराग्राफ पढ़कर बता सकता हूं कि इसे किसी महिला ने लिखा है या नहीं.’’ इसकी वजह से पूरे विश्व के साहित्यिक बिरादरी में उनकी काफी आलोचना हुई. इसके अलावा नायपॉल ने भारत में बाबरी मस्जिद के विध्वंस को भी सही ठहराया था. उनका कहना था कि मस्जिद का निर्माण भारतीय संस्कृति पर हमला था, जिसे ढहाने का निर्णय ठी था. उनका विचार था कि स्पेन में जिस तरह राष्ट्रीय स्मारकों का पुनर्निमाण कराया गया, वैसा भारत में भी होना चाहिए.

नायपॉल की आलोचना उनके  लेखन की वजह से भी होती रही लेकिन उनका कहना था कि वह इन आलोचनाओं की परवाह नहीं करते हैं. साल 2008  में उन्होंने ‘द ऑब्जर्वर’ से कहा भी था, ‘‘जब कभी मैं ऐसी चीजें पढ़ता हूं, मैं इससे बेहद खुश होता हूं. यह चीजें मुझे बिल्कुल भी ठेस नहीं पहुंचाती हैं.’’