क्या ग्राम पंचायत से लेकर राज्य और केंद्र की सरकारें बुजुर्गों को मरने के लिए छोड़ रही हैं?

क्या ग्राम पंचायत से लेकर राज्य और केंद्र की सरकारें बुजुर्गों को मरने के लिए छोड़ रही हैं?

हर हाथ को काम मिले, काम का पूरा दाम मिले, बुढ़ापे में पेंशन, जीवन में सम्मान मिले. ऐसे पोस्टर संसद मार्ग और जंतरमंतर के आसपास दो दिनों से दिखाई दे रहे हैं. देश का संसद मार्ग कल और आज (बीते रविवार और सोमवार) को बुजुर्गों से पटा पड़ा था. देश भर से जुटे बुजुर्गों की मांग थी कि उन्हें सरकार उचित पेंशन दे. पेंशन की राशि न्यूनतम मजदूरी की आधी राशि 3000 हो. कल जहां सवाल और गुस्सा अधिक था. वहीं आज घर जाने की हड़बड़ी अधिक दिखी. कल की ही तरह कई बुजुर्गों की देह से लगे पोस्टरों पर लिखा देखने को मिला कि बुजुर्गों को कोई नहीं देखता.

राजस्थान के पाली जिले से आए हरजी राम 78 साल है. वे पहली बार ऐसे किसी धरने में आए हैं. वे कहते हैं कि सरकार उन्हें सिर्फ 500 रुपये प्रतिमाह देती है. वो भी अनियमित है. मोदी जी के राज में खाली कागज का खेल हो रहा है. राशन लेने के लिए सभी उंगलियों की पहचान चाहिए. उंगलियां पकड़ रही हैं. अंगूठा पकड़ ही नहीं रहा. वे बोलतेबोलते भावुक होने लगते हैं कि उनकी बात ऊपर तक पहुंच जाए.

हरजी राम, 78 साल

यहां हम आपको यह भी बता दें कि पेंशन के सवाल पर होने वाले प्रदर्शन का आज दूसरा दिन था. आज देश की अलगअलग पार्टियों के प्रतिनिधि और अध्यक्ष यहां पहुंचे थे. खासतौर पर विपक्ष. देश की तीनों प्रमुख वामपंथी पार्टियों ने इस मुद्दे पर पेंशन परिषद को अपनी ओर से आश्वासन दिया कि वे बुजुर्गों की इस मुहिम में उनके साथ हैं. सीपीआई (एमएल) के अध्यक्ष दीपंकर भट्टाचार्य ने मोदी सरकार को देश के लिए हादसा करार दिया. साथ ही कहा कि आगामी आम चुनाव में जनता उन्हें सबक सिखाएगी. संसद मार्ग पर ही प्रदर्शन में शामिल होने आईं मधुबनी जिले की शांति देवी 65 साल की हैं. उन्हें पेंशन के तौर पर 200 रुपये मिलते हैं. वो भी हर महीने नहीं मिलते. पेंशन मिलने में भी 6 से 8 महीने हो जाते हैं. वो पूछती हैं कि बताइए ई कहां से पर्याप्त है.

शांति देवी

हमारी टीम अभी मंच के नीचे लोगों से बातचीत कर रही थी कि इसी दौरान सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे मंच से लोगों को संबोधित करते हुए सुनाई पड़े कि अंगूठे वाले सिस्टम में ही दोष है. वे संसद से मांग करते सुनाई पड़े कि इस सिस्टम को सुधारा जाए. वे बोलते सुनाई पड़े कि आखिर इस जनविरोधी सिस्टम का क्या काम? बीते रोज जब निखिल डे से बात हुई और इन बुजुर्गों की मांग पर उनसे सवाल किए गए तो वे बोले कि जब नेपाल जैसे देश अपने वृद्ध नागरिकों को इससे अधिक पेंशन देते हैं तो ऐसा भारत में क्यों संभव नहीं? जिन लोगों ने अपने खूनपसीने से इस देश को समृद्ध किया है उन्हें क्या इस उम्र में मरने के लिए छोड़ दिया जाए. जब देश के सांसद हाथ खड़ा करके अपना वेतन बढ़ा सकते हैं तो फिर बुजुर्गों को भी न्यूनतम मजदूरी का आधा दिया जाए.

राजस्थान के उदयपुर जिले से आए पेसिल गिरवा 80 साल भी ऊपर हैं. वे बताते हैं कि उन्हें 750 रुपये का पेंशन मिलता है. बैंक वाले गड़बड़ कर देते हैं. गौरतलब है कि राजस्थान में वृद्धा और वृद्ध पेंशन के लिए तय उम्र क्रमश: 55 और 58 है. इन्हीं बुजुर्गों के साथ आई और आदिवासी महिला जागृति संगठन के साथ बीते डेढ़ सालों से काम कर रही दुर्गा खुराड़ी कहती हैं कि, “वे लोग यहां तक आ गए लेकिन प्रधानमंत्री नहीं आए. ऐसे ही गांव का सरपंच भी नहीं आता. निचले स्तर पर भी बहुत गड़बड़ी है. हर गांव में मोदी बैठा है और वो अधिक खतरनाक है. जो भी हक की बात करता है उसे डराकर, लाठी और प्रभाव से शांत कर देते हैं”.

पेसिल गिरवा और उनके साथी

इस पूरे प्रदर्शन को लीड कर रहीं और बीते दो दिनों से मंच पर और मंच के नीचे लोगों से लगातार संपर्क कर रही सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय बिहार मेल से बातचीत में कहती हैं कि 200 की पेंशन राशि तो लोगों के साथ भद्दा मजाक है. सरकारें न्यूनतम तौर पर 3000 रुपये दें. केन्द्र सरकार और राज्य सरकार से समन्वय बनाकर इसे सुनिश्चित करें. उनसे जब इस स्कीम की व्यापकता के बारे मे पूछा जाता है तो वो सरकार की इच्छाशक्ति पर सवाल खड़े करती हैं. वो कहती हैं कि यदि आधेअधूरे टॉयलेट बनाने के लिए पैसे आ सकते हैं तो फिर इसके लिए भी पैसे आ सकते हैं. जैसे सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन बढ़ते हैं वैसे ही इन्हें पेंशन देना भी सुनिश्चित किया जाए.

भाग्य श्री, दाएं से

   

छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले से आए किशुन राम 68 साल के हैं. वे बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में वृद्धा पेंशन 350 रुपये है. वो भी नियम से नहीं मिलता. बीते सात माह से ही पेंशन नहीं मिला है. उनका भी सवाल वही है कि इस महंगी के जमाने में ये राशि तो मजाक ही न है. छत्तीसगढ़ से ही आए मथुरा प्रसाद कहते हैं कि उन्होंने योगीजोगी को वोट किया. अटल बिहारी को भी वोट किया लेकिन कुछ नहीं हुआ. मनरेगा की मजूरी भी नहीं मिलती. आधार ने भी बहुत परेशान कर रखा है. उसमें भारी अनिमितता है. खाता इधर से उधर कर देते हैं सब. अभी बात हो ही रही होती है कि उनके दूसरे साथी भी आ जाते हैं. जब उन सभी से पूछा जाता है कि छत्तीसगढ़ में तो इस साल चुनाव होने हैं. उनकी क्या योजना है तो किशुन राम कहते हैं कि इसीलिए तो हो हल्ला करने यहां आए हैं साहब.

महाराष्ट्र से आई भाग्य श्री 34 साल की विधवा हैं. उन्हें सरकार से बतौर विधवा पेंशन 600 रुपये मिलते हैं. वो भी तीन महीने से नहीं मिले. वो बताती हैं कि पेंशन लेने के लिए भी गरीबी रेखा से ऊपर और नीचे होना पड़ता है. 21 हजार से ऊपर की आय वाले गरीबी रेखा से बाहर हैं लेकिन भारी अनियमितता है. APL वाले BPL में हैं और BPL वाले APL में हैं. बीजेपी सरकार में ब्लॉक और जिला के भाजपा नेता की सिफारिश के बिना कुछ नहीं होता. उनके साथ ही आए एक शख्स हमारी बातचीत सुनकर बीच में बोल पड़ते हैं. वे कहते हैं कि पहले सहकारी बैंक (कोऑपरेटिव) किसानों की मदद भी करता था लेकिन अब वो भी कुछ नहीं करता.