लॉकडाउन के दौरान सुनसान सड़क के बीचों-बीच एक महिला अपने 3 साल के छोटे से बच्चे को सीने से चिपकाए चीखते-चिल्लाते, रोती हुई दौड़ लगा रही है. पीछे-पीछे उसका पति अपने दूसरे बच्चे को गोद में उठाये बेबस ढंग से चल रहा है. कोई मदद के लिए नहीं रुकता. जो रूकता है वो दूर से देखकर आगे बढ़ जाता है. दहाड़ मार कर रोती हुई उस महिला का वीडियो देखकर किसी का भी मन द्रवित हो उठेगा.
यह घटना 10 अप्रैल 2020 को जहानाबाद में हुई. एक 3 साल के बच्चे की मौत एम्बुलेंस ना मिलने के कारण हो गयी. इस घटना को उत्कर्ष कुमार सिंह नाम के एक पत्रकार ने रिकॉर्ड किया और ट्विटर पर डाल दिया. जल्द ही उनका ट्वीट वायरल हो गया. इसके अगले दिन 11 अप्रैल को स्वास्थ्य सचिव ने ट्वीट कर जानकारी दी कि “जहानाबाद के डीएम की जांच में 4 नर्स, 2 डॉक्टर तथा हेल्थ मैनेजर दोषी पाए गए हैं. इनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.”
हालांकि अपने ट्वीट में स्वास्थ्य सचिव ने वीडियो बनाने वाले पर भी सवाल उठाया कि वो मदद करने की बजाय वीडियो क्यों बना रहे थे? आपने इस तरह के वीडियो कई बार देखे होंगे. गोरखपुर और मुजफ्फरपुर में जापानी बुखार से दम तोड़ चुके बच्चों को छाती से चिपकाए महिलाओं का रुदन कौन भूल सकता है! खैर अब आते हैं मुद्दे पर…
इसके बाद पत्रकार उत्कर्ष कुमार सिंह ने आज बिहार में एम्बुलेंस सर्विस से जुड़ा एक महत्वपूर्ण खुलासा किया. उन्होंने ये बताया कि “बिहार में एम्बुलेंस संचालन का काम एक प्राइवेट कंपनी पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड करती है. इस कंपनी में जहानाबाद से जदयू सांसद चंदेश्वर प्रसाद के तीनों बेटे जितेंद्र, विजय और सुनील 37% के शेयरधारक हैं. सांसद महोदय के बड़े बेटे जितेन्द्र इस कंपनी में 2 साल तक डायरेक्टर भी रह चुके हैं. 28 साल पुरानी इस कंपनी में जितेन्द्र मार्च 2017 में डायरेक्टर बने और उसके तीन महीने बाद ही जुलाई 2017 में इस कंपनी को पूरे बिहार में एम्बुलेंस संचालन का काम मिल गया. जिस दौरान यह काम जितेंद्र को मिला उस समय चंदेश्वर प्रसाद विधानसभा सदस्य थे और जदयू के प्रदेश उपाध्यक्ष भी. चंदेश्वर प्रसाद की गिनती मुख्यमंत्री के करीबी लोगों में होती है. वर्तमान में चंदेश्वर प्रसाद के बेटे इस कंपनी में डायरेक्टर ना होने के बावजूद राज्य स्वास्थ्य समिति की बैठकों में जाते हैं.”
उत्कर्ष के इन खुलासों के बाद मैंने बिहार में एम्बुलेंस सर्विस से जुड़ी थोड़ी और जानकारी जुटाई. बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति के वेबसाइट पर इससे जुड़ी जानकारी बेहद कम है. साल 2013-14 के रिपोर्ट दिख रहे हैं. लेकिन मई 2015 के बाद की कोई रिपोर्ट या जानकारी वेबसाइट पर नहीं दिखी. बिहार सरकार से जुड़ी ये एक गंभीर समस्या है कि इसके अधिकतर विभागों के वेबसाइट अपडेट नहीं होते हैं.
खैर, बिहार में मुफ्त एम्बुलेंस सेवा पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड और पटना का सम्मान फाउंडेशन मिलकर संचालित करता है. जब जुलाई में इन संस्थाओं को संचालन का जिम्मा दिया गया तो उसके बाद 12 अगस्त 2017 को 102 एम्बुलेंस वाहनों को मुख्यमंत्री ने हरी झंडी दिखाई. यह सेवा 102 नंबर से संचालित होती है. इसमें गर्भवती महिला, नवजात शिशु, वरिष्ठ नागरिक, दुर्घटना पीड़ित, BPL कार्डधारी, कालाजार के मरीज एवं राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत रेफर हुए शिशुओं को मुफ्त सेवा दी जाती है.
इस सम्बन्ध में 13 अगस्त को टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबर पढ़ सकते हैं. इस खबर में यह भी बताया गया है कि पहले से जो ड्राईवर सरकारी एम्बुलेंस चला रहे थे वो प्राइवेट संस्थाओं को संचालन का काम दिए जाने से खुश नहीं थे. इस खबर के अनुसार 102 नंबर से जो हेल्पलाइन सेवा शुरू हुई है वो एक कॉल सेंटर से संचालित होगी और यहाँ 8-8 घंटे के तीन शिफ्ट में काम होगा. सुबह और दोपहर वाले शिफ्ट में 50 ऑपरेटर और 1 डॉक्टर काम करेगा, जबकि रात वाली शिफ्ट में 25 ऑपरेटर और 1 डॉक्टर काम करेगा.
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर आप इस लिंक को क्लिक करके देख सकते हैं-
https://timesofindia.indiatimes.com/city/patna/nitish-flags-off-102-ambulances/articleshow/60037735.cms?from=mdr
इसके बाद मुझे 30 नवम्बर 2018 को The Telegraph के ऑनलाइन एडिशन पर एक खबर दिखी. इस खबर के अनुसार बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति ने 17 जिलों के सिविल सर्जन एवं जिला प्रोग्राम मैनेजर को कारण बताओ नोटिस भेज कर 102 एम्बुलेंस सर्विस की अपेक्षा से कम ट्रिप संचालित होने के सम्बन्ध में जवाब माँगा था. इस खबर में राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार के तत्कालीन कार्यकारी निदेशक लोकेश कुमार सिंह का बयान गौर करने लायक है- “सामान्य तौर पर एक दिन में छह से सात यात्राएँ होती हैं. कुछ जिले एक दिन में आठ या उससे अधिक यात्राएँ करके बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. यात्रा के सामान्य औसत को बनाये रखने में विफलता को लेकर 17 जिलों से कारण बताओ नोटिस भेज कर जवाब माँगा गया है. अगर हम यात्रा की संख्या में सुधार कर लें तो हम एक दिन में तीस हजार से अधिक लोगों तक पहुँच सकते हैं.”
श्री सिंह ने बताया कि “102 एम्बुलेंस सेवा अब सम्मान फाउंडेशन और पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा संयुक्त रूप से संचालित होती है. इन निजी एजेंसियों द्वारा एम्बुलेंस चलाने वाले ड्राइवर और टेक्निशियन को समय पर भुगतान ना करने से एम्बुलेंस सेवा प्रभावित हो रही है. ड्राइवर हड़ताल पर चले गए हैं, जिसके कारण एम्बुलेंस सेवा कुछ दिन बाधित रहेगी. परेशानी की कोई बात नहीं है, हम इसे संभाल लेंगे.“
(अंग्रेजी खबर से अनुदित)
इस खबर से यह स्पष्ट है कि प्राइवेट संस्थाओं द्वारा संचालित यह एम्बुलेंस सेवा बहुत बेहतर तरीके से 2018 में भी काम नहीं कर रही थी. इससे पहले इसके कई ड्राईवर पर यह आरोप भी लग चुका था कि वे लोग मरीजों को सरकारी अस्पताल ले जाने की बजाय प्राइवेट अस्पताल में ले जाते हैं.
खबर का लिंक ये रहा-
https://www.telegraphindia.com/states/bihar/ambulance-service-hurdles-in-bihar/cid/1677109
इसके बाद 9 अगस्त 2019 को टाइम्स ऑफ़ इंडिया की एक खबर मिली. यह खबर 102 एम्बुलेंस सर्विस के ड्राईवर एवं इमरजेंसी मेडिकल टेक्निशियन लोगों द्वारा किये जा रहे हड़ताल को लेकर लगी थी. 27 जुलाई 2019 को पटना से शुरू हुई ये हड़ताल 5 अगस्त तक अन्य जिलों में भी शुरू हो गयी. एम्बुलेंस ड्राईवर एसोसिएशन के सदस्य धर्मवीर कुमार का जो बयान इस खबर में है वो पढ़िए-
“एम्बुलेंस ड्राइवर एसोसिएशन के सदस्य धर्मवीर कुमार ने बताया कि उन्हें आठ घंटे की बजाय 12 घंटे काम करना पड़ता है और वह भी बिना छुट्टी के. हमें साप्ताहिक छुट्टी नहीं मिलती. यहाँ तक कि त्योहारों पर भी हमें छुट्टी लेने की अनुमति नहीं है. हालाँकि हम हर दिन चार घंटे ज्यादा काम करते हैं, फिर भी हमें इसके लिए कोई अतिरिक्त पैसा नहीं मिलता.”
धर्मवीर ने कहा कि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने पिछले साल मई में वादा किया था कि श्रम कानूनों को सही तरीके से लागू किया जाएगा, लेकिन कुछ भी नहीं बदला. राज्य में 102 सेवा के लगभग 1100 एम्बुलेंस मुफ्त में चलती हैं. प्रत्येक एम्बुलेंस में 2 ड्राइवर और 2 इमरजेंसी मेडिकल टेक्नीशियन (EMTs) होते हैं, जो दिन में 12 घंटे की ड्यूटी करते हैं. स्वास्थ्य विभाग ने निजी एजेंसी को ठेका दे दिया है जो इन ड्राइवर और EMT को को वेतन देती हैं और एम्बुलेंस के रखरखाव का ध्यान रखती हैं. धर्मवीर ने बताया कि “ड्राइवर को हर महीने हाथ में 10500 रुपये मिलते हैं और EMT को 12000 रुपये मिलते हैं.“ उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य विभाग एजेंसी को प्रत्येक एम्बुलेंस के लिए प्रति माह 1 लाख रुपये का भुगतान करता है. (अंग्रेजी खबर से अनुदित)
इस खबर का लिंक ये रहा-
https://timesofindia.indiatimes.com/city/patna/patients-suffer-as-102-ambulance-drivers-stir-spreads/articleshow/70593640.cms?from=mdr
इस खबर से स्पष्ट है कि 102 एम्बुलेंस सर्विस संचालित करने वाली ये प्राइवेट संस्थाएं किस तरह से सरकार से ज्यादा पैसा लेकर अपने ड्राईवर और टेक्निशियन का दोहन कर रही थीं. कॉल सेंटर तो 8-8 घंटे के शिफ्ट में चल रहा था लेकिन एम्बुलेंस 12 घंटे के शिफ्ट में चल रहे थे. चालकों की शिकायत, प्राइवेट अस्पताल में मरीजों को ले जाने का मामला, अपेक्षा से कम ट्रिप का मामला सामने आने के बावजूद इन प्राइवेट संस्थाओं की जाँच नहीं हुई. इसके पीछे का कारण आप समझ सकते हैं.
12 करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले राज्य में 1100 एम्बुलेंस का औसत 1 लाख 9 हज़ार 91 लोगों पर 1 एम्बुलेंस का होगा. इसके परिचालन से संबंधित किसी भी रिपोर्ट को राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार के वेबसाइट http://statehealthsocietybihar.org/पर मई 2015 के बाद अपडेट ही नहीं नहीं किया गया है. राज्य की जनता को अगर मुफ्त में एम्बुलेंस सेवा पर्याप्त मात्रा में मुहैया नहीं कराया जा सकता तो हालत आप समझ सकते हैं. और इसका परिणाम यही होगा कि आये दिन समाचार मिलते रहेंगे कि एम्बुलेंस के अभाव में किसी ने दम तोड़ा. स्वास्थ्य सचिव कल लोगों की संवेदना खोज रहे थे. आज उनसे पूछा जाना चाहिए कि राज्य सरकार, स्वास्थ्य विभाग और एम्बुलेंस सेवा संचालित करने वाली इन प्राइवेट संस्थाओं की संवेदना इतनी कम क्यों है?
WHO के स्टैण्डर्ड के हिसाब से कम से कम 1000 लोगों पर 1 डॉक्टर उपलब्ध होना चाहिए. लेकिन एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 43788 लोगों पर 1 Allopathic डॉक्टर उपलब्ध है. इसके लिए सरकार की संवेदना नहीं जागती? हॉस्पिटल, बेड की संख्या और दूसरे जरूरी सुविधाओं का आँकड़ा देख लिया जाये तो संवेदना की कलई खुल जाएगी.
बिहार में एम्बुलेंस सेवाओं का हाल दशकों से खस्ता ही रहा है. विधायक लोग अपने स्थानीय विकास मद से प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को एम्बुलेंस देते रहे हैं, लेकिन अक्सर उस एम्बुलेंस में मरीज कम और PHC के प्रभारी ज्यादा घूमते रहे हैं. मरीजों को एम्बुलेंस उपलब्ध ना कराना और जब तब कराने पर पैसे लेने की सूचनाएँ अक्सर जानकारी में आती रहती हैं. PHC से रेफर किये गए मरीजों से भी पैसे ले लिए जाते हैं.
अभी लॉकडाउन में सामान्य मरीजों के लिए एम्बुलेंस उपलब्ध कराना क्या सरकार की जिम्मेदारी नहीं है? एम्बुलेंस के अभाव में जहानाबाद के उस बच्चे की हुई मौत की जिम्मेदारी क्या सीधे-सीधे सरकार की नहीं है? डॉक्टर, नर्स या हेल्थ मैनेजर में आखिर इतनी हिम्मत किसने पैदा की है कि वो गलत काम करने से डरते नहीं हैं?
पुनीत पुष्कर ने यह शोधपरक रिपोर्ट लिखी है. पुनीत दिल्ली विश्वविद्यालय के ग्रेजुएट हैं. स्वतंत्र शोधार्थी हैं. यहां व्यक्त विचार उनके अपने हैं और इससे ‘द बिहार मेल’ की सहमति आवश्यक नहीं है…