बसपा छोड़कर जद (यू) के हुए ज़मा खां, खुद को बहनजी का सिपाही कहते थकते न थे…खबरें

बसपा छोड़कर जद (यू) के हुए ज़मा खां, खुद को बहनजी का सिपाही कहते थकते न थे…

सियासत भी अजीब शै है- न यहां कोई परमानेंट दोस्त है और न कोई दुश्मन- सब अपने फायदे के लिहाज…