नि:शब्द रिपोर्टर ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली से लौटकर कुछ लिखा है, हिम्मत करके पढ़ लीजिए…

नि:शब्द रिपोर्टर ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली से लौटकर कुछ लिखा है, हिम्मत करके पढ़ लीजिए…

अभी-अभी उत्तर पूर्वी दिल्ली के चाँद बाग़ से आ रहा हूँ. दिमाग़ कुछ ख़ाली सा हो गया है. सुबह ऑफ़िस में था जब कुछ कॉल आने शुरू हुए कि चाँद बाग़ में हालात ख़राब होने वाले है. दंगाइयों की एक भीड़ चाँदबाग़ के धरना स्थल की ओर बढ़ रही है. पहले लगा कि शायद अफ़वाह है. फिर एक साथ कई फ़ोन आए कि जल्दी आइए. मैं ऑफ़िस से निकला और कश्मीरी गेट पहुँचकर बाहर निकला ही था कि पता चला मुस्लिम समाज का एक ख़ास जलसा चल रहा है. इसे ‘इस्तेमा’ कहा जाता है. हज़ारों लोग पैदल ही अपने-अपने घरों को जा रहे थे. जब गाड़ी शास्त्री पार्क की ओर बढ़ी, तो आसमान में धुएँ का एक ग़ुबार उठता दिखा. पहले लगा कहीं आग लगी हुई है. किसी तरह खज़ूरी पहुँचा. खज़ूरी चौक पर एक हिंसक भीड़ कुछ दुकानें तोड़ रही थी. फिर भड़काऊ नारे लगने शुरू हुए. इसी बीच थोड़ा आगे बढ़ा तो पाया कि एक लड़का अपने परिचितों को समझा रहा था कि सामने से जाने के बजाय गलियों से जाना, आगे हालात ख़राब है.

पूर्वोत्तर दिल्ली के कई इलाकों (मोहल्लों) में बीते रोज ऐसा ही मंजर था

थोड़ा पैदल चलने के बाद स्पष्ट हुआ कि एक कोने की दुकान में आग लगा दी गयी है. धुआँ धू धू कर उठ रहा था. चौक के सामने से लगातार पत्थर चल रहे थे. इसी बीच पाया कि कुछ दंगाई दूसरी दूकानों में आग लगा रहे थे. इन दंगाइयों की उम्र 14 से 18 साल होगी. मैंने कोशिश की कि कुछ वीडियो लूँ. अचानक एक दंगाई मेरी तरफ़ लपका और बोला वीडियो डिलीट कर वरना अंजाम ठीक नहीं होगा. मैं पीछे की तरफ भागा. इसी बीच दंगाई फलों की रेहड़ियां लूटते रहे. फिर वो हुआ जो पहले सुना था, देखा कभी नहीं था. दंगाई फल लूट कर लाते और अर्ध सैनिक बलों को खिलाने लगे. यहाँ पता चला कम्प्लिसिटी क्या होती है. फिर कुछ पुलिस वालों के पास गया तो पता चला सांप्रदायिकता इनमें कितनी गहरी उतर चुकी है. एक पुलिस वाला कहता कि अगर ये दंगाई न होते तो सामने वाले दंगाई उन्हें मार देते.

इसी बीच दिल्ली फ़ायर सर्विस की एक गाड़ी काफ़ी देर बाद आई. इसके कर्मचारियों ने आग बुझाने की नाकाम कोशिश की. इतने में दिल्ली पुलिस की अतिरिक्त टुकड़ी पहुँची. लेकिन दंगा बदस्तूर जारी रहा. थोड़ी देर बाद दंगाइयों को पीछे धकेला गया. इससे पहले कोने की दुकान ‘बालाजी स्वीट्स’ में आग लगाई जा चुकी थी. इसी दुकान के सामने आज़ाद चिकन कॉर्नर धू धू कर जल रहा था. चौक पर एक मजार है. नाम पता नहीं किसकी. ये भी आग के हवाले थी . इसी बीच पुलिस ने किसी को दबोचा ही था कि मेरा साथी शूट करने के लिए दौड़ा. पुलिस की गिरफ़्त में इस आदमी को कई लोगों ने घेर लिया और मारने लगे. शूट चल ही रहा था कि मेरे साथी पर एक लाठी से हमला हुआ. हम सन्न रह गए. मैंने मेरे साथी को पीछे किया. थोड़ी देर बाद पता चला कि ‘इंडियन ऑयल’ का पेट्रोल पंप. ‘मारुति सुज़ुकी’ का शो रूम को आग के हवाले किया जा चुका था.

पूर्वोत्तर दिल्ली की एक ऐसी ही सड़क पर जल रही कार (तस्वीर- रवि कौशल का वीडियो ग्रैब)

हम बड़ी हिम्मत करके आगे बढ़े तो पाया कि चाँद बाग़ के धरना स्थल आग के हवाले हो चुका था. जब हम अंदर की तरफ़ बढ़े तो एक लड़के ने बताया कि एक गर्भवती महिला के साथ मार-पीट हुई है. जब हम घर पहुँचे तो पाया कि उनके सर पर गहरी चोट थी. उनके बाँह और बाकी अंगों पर बेंत के निशान थे. महिला बता रही थीं कि दंगाइयों ने उनका सर कुचलने की कोशिश की. हम आगे निकले तो जगह-जगह हमें रोक कर पहचान पत्र जाँचे गये, कहा गया कि सच्ची ख़बर दिखाना. इसी बीच किसी ने बताया कि मुस्तफ़ाबाद में एक लड़के की गोली लगने से मौत हो गई है. जब हम उस लड़के के घर पहुँचे तो पूरा परिवार रो रहा था. ये लड़का ऑटो चलाता था. दो महीने पहले ही इसकी शादी हुई थी. ‘इस्तेमा’ के बाद घर आ रहा था, तभी उसको गोली लग गई. इस लड़के का भाई जिसकी उम्र दस साल होगी रो- रोकर एक सवाल पूछ रहा था कि, “वो मेरे भाई से क्या लेना चाहते हैं?”

पूर्वोत्तर दिल्ली में जल रहे घर (तस्वीर- रवि कौशल का वीडियो ग्रैब)

यहाँ से आगे बढ़े तो पता चला कि इलाके के सारे छोटे अस्पताल घायलों से पटे पड़े है. हम ‘मदीना चैरिटबल अस्पताल’ पहुँचे तो एक शख्स से मिले. उन्होंने बताया कि पुलिस ने उन्हें कुछ यूं मारा है कि उनकी एक आँख चली गई है. एक डॉक्टर ने बताया कि उनके पास 40 से ज़्यादा घायल आए थे. डॉक्टर ने कहा कि आप आगे जाइए अल हिंद हॉस्पिटल. वहाँ कुछ लोग मिलेंगे. हम यहाँ पहुँचे तो लोग आरोप लगाने लगे पुलिस ऐम्ब्युलन्स को आने नहीं दे रही है. घायल लोग अपने मोटर साइकिल पर ही अस्पताल जा रहे थे. हम अंदर गए तो एक डॉक्टर ने एक आदमी का अंगूठा दिखाया. अंगूठा उसके हाथ से अलग हो चुका था. शूट करके हम बचते बचाते इस इलाक़े से निकले. दंगाई अभी भी सड़क पर थे. हालाँकि अब संख्या कम थी. थोड़ा चलने के बाद एक ऑटो वाला मिला. ये शेयर ऑटो था जिसमें पाँच लोग बैठे. इसमें बैठा एक आदमी कुछ कुछ बोलने लगा. हम सुनते रहे. पता चला कि सांप्रदायिकता का ज़हर लोगों में गहरा उतर गया है. ये अब पीढ़ियों तक रिस-रिस कर जाएगा. कश्मीरी गेट उतरने पर मैं और मेरे साथी नि:शब्द और ख़ाली हो चुके थे…

यह रिपोर्ट मूल रूप से पत्रकार-रिपोर्टर रवि कौशल का फेसबुक पोस्ट है. तस्वीरें भी उन्हीं की वॉल से ली गई हैं. रवि फिलहाल न्यूज वेबसाइट न्यूजक्लिक के साथ काम करते हैं…