चकिया (सुरक्षित) विधानसभा पर एक नजर, किसका पलड़ा भारी?

चकिया (सुरक्षित) विधानसभा पर एक नजर, किसका पलड़ा भारी?

कान के द्रव्य को असहज कर देने वाले सुंदर रास्ते पर तमाम पूर्वोत्तर की समस्याओं से लैस विधानसभा है चकिया। जिला है चंदौली। बनारस से दूरी है लगभग 75 किलोमीटर। चंदौली 1997 तक बनारस का ही हिस्सा था, फिर चार विधानसभाओं के साथ काट कर नया जिला बना दिया गया। वर्तमान रक्षा मंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे राजनाथ सिंह के गृह जनपद चंदौली में सकलडीहा, सैयदराजा, मुगलसराय और चकिया, चार विधानसभाएं हैं। फिलहाल बात चकिया विधानसभा की। नौगढ़, चकिया और साहबगंज ब्लॉक वाले चकिया विधानसभा का हाल जानने हम सबसे पहले चकिया चकिया ब्लॉक पहुंचे।

चकिया बाजार से कुछ दूरी पर ठीक सड़क के किनारे एक गांव है सदापुर। इस गांव में सड़क से लगी पान की दुकान पर ताश खेलते कुछ युवा और बुजुर्ग मिले। दलित बहुल्य गांव सदापुर में माहौल मिला जुला था, लेकिन वर्तमान सरकार को लेकर साफ-साफ नाराज़गी दिखी। वर्तमान विधायक शारदा प्रसाद को लेकर लोगों में असंतोष दिखा। 60 वर्षीय भाजपा विधायक शारदा प्रसाद ने बीते विधानसभा चुनाव में बसपा के एड. जितेंद्र कुमार को 20 हज़ार वोटों से हरा दिया था। तीसरे नंबर पर समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार पूनम सोनकर रही थीं। उन्हें लगभग 47,000 वोट मिले थे।

वर्तमान विधायक के करियर पर एक नजर…
चूंकि इस सीट पर बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा के टिकट पर शारदा प्रसाद ने जीत दर्ज की, इसलिए शारदा प्रसाद के राजनीतिक करियर पर एक नज़र डाल लेते हैं। शारदा प्रसाद ने बसपा से राजनीति की शुरुआत की और फिलहाल भाजपा से विधायक हैं। शारदा प्रसाद साल 1996-97 में वाराणसी जिले की बहुजन समाज पार्टी के जिला अध्यक्ष भी रहे।1998 में लोकसभा सैदपुर सुरक्षित सीट से चुनाव भी लड़े लेकिन हार गए। उन्होंने पहली बार साल 2002 के विधानसभा चुनाव में चंदौली सदर से बसपा के टिकट पर जीत दर्ज की। उसके बाद तत्कालीन बसपा सरकार में इनको सार्वजनिक उद्यम मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार मिला। पुन: 2007 में शारदा प्रसाद ने चंदौली सदर सीट से बसपा के टिकट पर जीत दर्ज की। हालांकि साल 2008 के परिसीमन बदलाव के बाद जहां चकिया विधानसभा सुरक्षित सीट बनी, वहीं चंदौली जैसी किसी विधानसभा का अस्तित्व ही खत्म हो गया।

वर्तमान विधायक शारदा प्रसाद बीच में फीता काटते हुए- तस्वीर स्त्रोत- न्यूज़ट्रैक

पूरे देश और प्रदेश में हुए नए परिसीमन के हिसाब से चकिया का भी गुणा-गणित बदला। हालिया जातीय व राजनीतिक समीकरणों के हिसाब से वे 2012 विधानसभा चुनाव में सैय्यदराजा सीट से लड़े तो जरूर लेकिन जीत नहीं सके। हालांकि वे रॉबर्ट्सगंज से साल 2014 में लोकसभा चुनाव भी लड़े, लेकिन जीत नहीं सके। इसके बाद साल 2016 में उन्होंने भाजपा के बढ़ते ग्राफ को देखते हुए भाजपा ज्वाइन कर ली। उन्हें साल 2017 में भाजपा ने चकिया से अपना उम्मीदवार बनाया और वे जीतने में सफल रहे।

लंबे समय तक सदन में रहने के बावजूद सदापुर के लोग शारदा प्रसाद से खुश नहीं हैं। सदापुर के 26 वर्षीय रोशन का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन में विधायक लोगों के सुख-दुख में नहीं दिखे, आगामी चुनाव में इसका परिणाम देखने को मिलेगा। उन्होंने कहा, ‘हमारे गांव के आसपास कोरोना से खूब लोग मरे, लेकिन किसी को परवाह नहीं थी। कोई नेता नहीं दिखा। विधायक जी तो पांच साल में एक बार भी नहीं आए हैं’ सदापुर के वर्तमान बीडीसी सदस्य बबलू यादव समाजवादी पार्टी को लेकर आश्वस्त हैं। उनका मानना है कि इस बार चुनाव में सपा के उम्मीदवार की जीत होगी। उन्होंने कहा, ‘देखिए, चाहें स्थानीय मुद्दा हो अथवा देश का कोई बड़ा मुद्दा, समाजवादी पार्टी हर स्तर पर उपस्थित रही है। यहां से टिकट कोई भी पाए चुनाव सपा निकाल ले जाएगी’

चकिया विधानसभा के अनुमानित जातिगत आंकड़ों पर स्थानीयों से बातचीत में मालूम चला कि यहां सर्वाधिक मतदाता एससी बिरादरी के हैं। हरिजन मतदाताओं की संख्या 55-60 हज़ार के आसपास है। उसके बाद यादव मतदाता हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 45 हजार है। वहीं क्षत्रिय, मुस्लिम और वैश्य वर्ग के मतदाताओं की संख्या लगभग 20-22 हज़ार है। 12 से 15 हज़ार की संख्या में राजभर मतदाता हैं। इसके अलावा 25-30 हज़ार की संख्या में विभिन्न अनुसूचित जाति और जनजाति के मतदाता हैं। जिनमें कोल, पटेल, बिंद, मल्लाह, खटीक, कुर्मी, धोबी, कोंहार,लोहार आदि शामिल हैं।

एडवोकेट जितेंद्र के सपा में शामिल होने से सपा का पलड़ा भारी?
यहां हम आपको बताते चलें कि पूर्व में चकिया विधानसभा के प्रतिनिधि रहे एडवोकेट जितेंद्र कुमार ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है। वे बसपा के सदस्य भी रहे हैं, और बसपा के टिकट पर चकिया विधानसभा के साल 2007-12 के बीच विधायक भी रहे हैं। एडवोकेट जितेंद्र की मानें तो समाजवादी पार्टी इस बार जिताऊ उम्मीदवारों पर दांव लगाएगी, और वे सपा के लिहाज से जिताई उम्मीदवार हैं। विधानसभा में उनके बैनर-पोस्टर भी बहुतायत में देखे जा सकते हैं। इसी विधानसभा के अंतर्गत पड़ने वाले नौगढ़ ब्लॉक व तहसील की चाय दुकानों पर चर्चाओं में राजनीतिक रंग दिखने लगा है। लोग अपनी-अपनी तरफदारियां जाहिर करने लगे हैं।

चकिया विधानसभा के अंतर्गत पड़ने वाले नौगढ़ बाजार के जिस चाय की दुकान पर हम रुके। वह दुकान अशोक जायसवाल की है। अशोक जायसवाल हमसे बातचीत में खुद को भाजपा का समर्थक कहते हैं, लेकिन वे इस बार सपा को वोट देने की बात कहते हैं। अशोक जायसवाल द बिहार मेल से बातचीत में कहते हैं, “हमने भाजपा को वोट देकर देख लिया है। उसमें कोई खराबी नही है। योगी जी काम कर रहे हैं। लेकिन यहां पर काम गड़बड़ है। पांच साल में विधायक जी एक बार भी आएं हों तो बताइये?” इसलिए वर्तमान विधायक से नाराज़गी और एड. जितेंद्र के प्रभावी उपस्थिति से वह बिना पार्टी को ध्यान में रखे जितेंद्र कुमार के लिए लगे हुए हैं।

नौगढ़ ब्लॉक के चाय विक्रेता अशोक जायसवाल-

इसी दुकान पर हमसे मिले सपा के विधानसभा प्रभारी राजनाथ सिंह कहते हैं कि सपा की मुलायम सरकार ने इस इलाके से नक्सल प्रभाव को खत्म कर दिया। वे आगे कहते हैं, “चाहें मुलायम सिंह हों या अखिलेश यादव, इस इलाके में काम सपा ने ही कराया है। मुलायम सिंह ने क्या नहीं दिया? नक्सलियों से बात की, उनको मुख्य धारा में जोड़ा जिसका परिणाम है कि हमारी बदनामी छूटी। अखिलेश यादव ने तहसील दिया। इससे पहले हम लोग 40 किलोमीटर दूर चकिया जाते थे, एक दिन का काम दो दिन में होता था, 150 रुपया भाड़ा लग जाता था” यहीं के एक गांव में प्रधान रजनीश कुमार कहते हैं कि भाजपा से नाराज़गी का कारण साफ है। उन्होंने सिर्फ बातें की और आम जनता को हिंदू-मुस्लिम में उलझा दिया। उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा। हर स्तर पर भ्रष्टाचार बढ़ गया है। सपा की सरकार ने काम ठीक किया है और उसके अलावा जितेंद्र जी का काम बढ़िया रहा है। हम लोग इस बार स्थानीय स्तर पर समीकरण देख कर वोट करेंगे।

नौगढ़ बाजार की एक चाय दुकान पर बैठे लोग- बाएं से पहले राजनाथ सिंह-

वैसे तो अभी चुनाव में समय है, और उत्तर प्रदेश की सियासत रातोंरात बदल जाती है, लेकिन अब तक समाजवादी पार्टी का पलड़ा यहां भारी दिख रहा। एडवोकेट जितेंद्र के समाजवादी पार्टी में आ जाने के बाद से वे इस इलाके में सक्रिय भी हैं। हालांकि समाजवादी पार्टी के लिहाज से यहां कई दावेदार पहले से हैं, दिवंगत सपा नेता की पत्नी व पूर्व विधायक पूनम सोनकर भी उनमें से एक हैं। चूंकि टिकट तो एक को ही मिलेगा, तो भीतरघात की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता। वहीं भारतीय जनता पार्टी को सत्ता विरोधी लहर का भी सामना करना है।

रिपोर्ट- शाश्वत उपाध्याय…