ऐसा लगता है जैसे सुप्रीम कोर्ट फुल फॉर्म में है. बीते कुछ दिनों से सुप्रीम कोर्ट से आने वाले फैसलों को देखकर तो यही लगता है. धारा 377 हो या फिर धारा 497, आधार कार्ड का मामला हो या फिर केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश हो. सुप्रीम कोर्ट इस बीच अभूतपूर्व और ऐतिहासिक फैसले दे रहा है. एक ऐसी ही ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में 10-50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को हटाने के पक्ष में फैसला सुनाया है. इस पूरी लड़ाई और फैसले को आधी आबादी के हक में सुनाये गये फैसले के तौर पर देखा जा रहा है.
जानें क्या है सबरीमाला मंदिर में प्रवेश और प्रतिबंध का पूरा मामला
यहां हम आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं को प्रवेश पर लगी रोक को हटाने के लिए कहा है. कोर्ट ने साफ कहा है कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी. शुक्रवार को अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय है. यहां महिलाओं को एक तरफ देवी की तरह पूजा जाता है और दूसरी तरफ मंदिर में प्रवेश से रोका जा रहा है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, ‘धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है. उम्र के आधार पर मंदिर में प्रवेश से रोकना धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है.’
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है. फैसला पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्त हिंदू हैं, ऐसे में एक अलग धार्मिक संप्रदाय न बनाएं. कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुछेद 26 के तहत प्रवेश पर बैन सही नहीं है. संविधान पूजा में भेदभाव नहीं करता है.
Right to worship is given to all devotees and there can be no discrimination on the basis of gender: Chief Justice of India Dipak Misra. SC has allowed entry of all women in Kerala’s #Sabarimala temple pic.twitter.com/jGdRMlH1l6
— ANI (@ANI) September 28, 2018
हाई कोर्ट ने बैन को कहा था सही
यहां यह बताना भी जरूरी हो जाती है कि कि संविधान में छुआछूत के खिलाफ सबको प्रोटेक्शन मिला हुआ है. धर्म, जाति, समुदाय और लिंग आदि के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता. आपको बता दें कि केरल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश के बैन को सही ठहराया था. हाई कोर्ट ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन के ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मासिक धर्म के कारण महिलाएं इसका पालन नहीं कर पाती हैं.
सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि दुनियाभर में अयप्पा के हजारों मंदिर हैं, वहां कोई बैन नहीं है, लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी कारण तय उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है, यह किसी के साथ भेदभाव नहीं है और न ही जेंडर विभेद का मामला है.
जस्टिस नरीमन ने किए थे सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने पूछा था कि इसका तार्किक आधार क्या है? आपके तर्क का तब क्या होगा अगर लड़की का 9 साल की उम्र में ही मासिक धर्म शुरू हो जाए या जो ऊपरी सीमा है उसके बाद किसी को मासिक धर्म हो जाए? इस दौरान सिंघवी ने कहा कि यह परंपरा है और उसी के तहत एक उम्र का मानक तय हुआ है.
बोर्ड दाखिल करेगा पुनर्विचार याचिका
इस पूरे मामले में दूसरी ओर से अपना पक्ष रखने वाले त्रावणकोर देवासम बोर्ड के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कहा है कि दूसरे धार्मिक प्रमुखों से समर्थन मिलने के बाद वह इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दाखिल करेंगे.
We will go for a review petition after getting support from other religious heads: Travancore Devaswom Board (TDB) president, A Padmakumar, on Supreme Court allows entry of all women in Kerala’s #Sabarimala temple. pic.twitter.com/9f0BVTlA7h
— ANI (@ANI) September 28, 2018
बेंच में थे पांच जज, 4-1 से सुनाया फैसला
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा – पांच जज बेंच में शामिल थे. हालांकि यह फैसला 4-1 के बहुमत से आया है. बेंच में शामिल जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने अलग फैसला दिया है. आपको बता दें कि शीर्ष कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई है, जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर अब तक रोक थी.