काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) इन दिनों फिर से अशांत है, उद्वेलित है. खबरों में तो अधिक चीजें नहीं आ रहीं लेकिन कैंपस का माहौल कुछ खास नहीं कहा जा सकता. चाहे नर्सिंग के विद्यार्थियों के मान्यता का सवाल हो अथवा आये दिन मारपीट की घटनाएं. सबमें कहीं ना कहीं विश्वविद्यालय प्रशासन का गैरजिम्मेदाराना रवैया देखने में आ रहा है. छात्रों को कभी मुखरता से तो कभी दबे जबान ऐसा कहते देखा-सुना जा सकता है कि इन तमाम घटनाओं में मुख्य सुरक्षाधिकारी एवं अन्य प्रशासनिक अमले के लोग ही कहीं ना कहीं संलिप्त हैं. इन्हीं सारी उथलपुथल के बीच शुक्रवार से कई छात्र संगठन एवं छात्र केंद्रीय कार्यालय पर धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं.
विश्वविद्यालय के भीतर बीते चार दिनों की घटनाओं को ही देखें तो विश्विद्यालय के लगभग तीन संस्थान एवं संकाय खासे उद्वेलित व प्रभावित रहे. जिनमें मुख्य सुरक्षाअधिकारी एवं प्रोक्टोरियल बोर्ड के पदाधिकारियों का हस्तक्षेप स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है. नर्सिंग महाविद्यालय के आखिरी वर्ष के छात्र अपने कोर्स की मान्यता को लेकर गुरुवार की सुबह से धरना पर थे.
बीएचयू के नर्सिंग कोर्स की मान्यता पर बवाल
गौरतलब है कि बीएचयू जैसे संस्थान जिसके पास खुद का इतना बड़ा अस्पताल है. उसके नर्सिंग कोर्स की मान्यता नहीं है. तीसरे वर्ष के छात्र जो कि छः महीने में डिग्री लेंगे वह कहीं भी मान्य ही नहीं होगा. अपनी इसी समस्या के लिए छात्र व छात्राएं धरने पर बैठे थे. धरने के लगभग दो घण्टे बाद इनके बीच मुख्य सुरक्षाधिकारी रॉयना सिंह कई अन्य अधिकारियों एवं गार्ड के साथ आकर उन्हें जबर्दस्ती उठाने लगीं. कई को को घसीटा और हाथापाई की. मौके पर छात्रों द्वारा बनाया गया वीडियो वायरल हो गया है. इतना ही नहीं मुख्य सुरक्षाधिकारी रॉयना सिंह ने एक छात्रा को तमाचा जड़ दिया. थप्पड़ की चोट से छात्रा के कान के पर्दे में दिक्कत आ गई है. छात्रा पुलिस के पास गई मगर उसकी FIR नहीं लिखी गई . वहीं पुलिस ने मुख्य सुरक्षाधिकारी के तरफ से लिखे गये पत्र के आधार पर छात्रा के ऊपर ही FIR दर्ज कर लिया है.
चीफ प्रॉक्टर की ओर से कराई गई एफआईआर और दूसरी तरफ छात्रा का मेडिकल रिपोर्ट
दूसरी घटना विधि संकाय से है
यहां मामला जरा जुदा है. यहां छात्रों में एडमिट कार्ड न मिलने को लेकर रोष है. मामला ऐसा है कि बार काउंसिल के नियमानुसार LLB एवं BA.LLB के कोर्स में 70% उपस्थिति अनिवार्य कर दी गई है. छात्रों का कहना है कि नियमानुसार एक सेमेस्टर में 600 कक्षाएं लगनी चाहिए. इस बार 350 के आस पास कक्षाएं चलीं एवं उसी के आधार पर 70% के नियम को मान लिया गया.
ऐसे नए नियम के हिसाब से लगभग 150 विद्यार्थियों की उपस्थिति कम रही एवं एक वर्ष बर्बाद होने के आसार हैं. विद्यार्थियों का कहना है कि यदि कक्षाएं पूरी चलतीं तो उपस्थिति के नियम मान्य होते. लंका गेट पर धरने के बाद उपस्थिति में अनिवार्यता 40% कर दी गई. तब भी तीन दर्जन के करीब छात्रों को परीक्षा से वंचित कर दिया गया है. ऐसे में छात्र अब भी रोष में हैं एवं आंदोलनरत होने की बात पर अड़े हैं.
इन तमाम घटनाओं के बीच केंद्रीय कार्यालय पर लगभग पचास छात्र अपनी विभिन्न मांगो को लेकर धरने पर हैं. ये चीफ प्रॉक्टर से क्षुब्ध हैं. उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. विश्विविद्यालय में तमाम हीलाहवाली एवं दुर्व्यवस्था को लेकर मुखर तमाम छात्र संगठनों के पदाधिकारी एवं अन्य छात्र भी इस धरने का हिस्सा हैं. आज उनके धरने का दूसरा दिन है, छात्र सोमवार से आमरण अनशन पर जाने की बात भी कर रहे हैं.
इन तमाम बातों के बीच कुलपति अथवा उनके ऑफिस की तरफ से कोई प्रतिक्रिया देखने-सुनने को नहीं मिली है. विश्विविद्यालय में यह सेमेस्टर इम्तेहान का दौर है. विद्यार्थियों का एक बड़ा समूह असमंजस की स्थिति में है और ऐसा लगता नहीं जैसे विश्वविद्यालय प्रशासन को अपने विद्यार्थियों की फिक्र हो…
यह खबर हमें विश्वविद्यालय के छात्र शाश्वत उपाध्याय ने लिखकर भेजी है…