पूर्णियां प्रमंडल (बिहार) का एक जिला कटिहार. कोशी के बाढ़ का दंश झेलने वाला जिला मगर इसी बाढ़ के साथ जीते लोग. इन दिनों चुनावी गहमागहमी. शहर की सड़कों पर झंडा और भोंपा लगाए प्रत्याशियों की दौड़ती गाड़ियां, मगर इस गहमागहमी से दूर कटिहार जंक्शन के मुख्य द्वार के पास सड़क पर पचास वर्षीय कालीचरण – गेड़ाबाड़ी मोहल्ले का कालीचरण अपने छह सदस्यीय परिवार के भरण-पोषण के लिए बांस का डलिया बेचता कालीचरण दिन भर में 10-12 डलिया बेच लेता है. 150-200 रुपये की बचत हो जाती है. लोकतंत्र, चुनाव, नेताओं के भाषण से अनजान कालीचरण. इसे न चिंता है देश के सुरक्षा की, इसे नहीं पता है कि अच्छे दिन कैसे होते हैं. इसे न्यूनतम आय योजना (न्याय) के बारे में भी पता नहीं है. इसे बस एक बात की चिंता है कि वह कैसे 80-90 रुपये कमाकर अपने घर लौट जाए. स्टेशन से ही सटे मुहल्ले में हमें चिरौता बेचता फागू साव मिला. वह चिरौता बेचकर दिन भर में 100-150 रुपये का फायदा कमा लेता है.
कटिहार का कालापानी
कटिहार जिले का ही एक प्रखण्ड है अमदाबाद. अमदाबाद को कटिहार जिले का कालापानी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी. महानंदा और गंगा के बीच बसा या यों कहें कि महानंदा और गंगा का बफरजोन. जिला मुख्यालय से मनिहारी प्रखंड होते हुए अंबेडकर चौक से बाएं मुड़कर 30-35 किलोमीटर मेटल-ननमेटल सड़क से अमदाबाद तो पहुंचना आसान है. मगर अमदाबाद प्रखंड मुख्यालय से किसी भी पंचायत तक पहुंचना खुद में ही एक बड़ा टास्क है.
ऐसा ही कुछ हमें बताया प्रखंड मुख्यालय के इन्द्रावती +2 उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्रभारी प्रधानाध्यापक आजाद प्रसाद मंडल ने. वैसे यह संस्थान (विद्यालय) को आलय कहना ही अच्छा होगा क्योंकि यहां विद्या नाम की कोई चीज नजर नहीं आती. बच्चे 650 के आसपास मगर विषयवार शिक्षक नहीं. प्रधानाध्यापक कक्ष का शौचालय स्टोर रूम हो गया है. लाइब्रेरी के शेल्फ में 1500 के आसपास किताबें तो हैं मगर बच्चे फाड़ देंगे इसलिए प्रभारी प्रधानाध्यापक की चिंता किताबों को सुरक्षित रखने की है.
खुद थाना ही सुरक्षित नहीं
इसी विद्यालय से कुछ दूरी पर है अमदाबाद थाना. जर्जर भवन यानी कहा जा सकता है कि थाना ही खुद सुरक्षित नहीं और उसी के पास पूरे इलाके को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी है. थाने के पास ही बीमार सा प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र है और उसी के जिम्मे पूरे इलाके का स्वास्थ्य है. हमें तो ऐसा ही दिखा.
स्थानीय विद्यालय के शिक्षक जितेन्द्र सिंह और कुबेर प्रसाद ने अमदाबाद प्रखंड के तेरह पंचायतों की जो तस्वीर हमारे सामने उकेरी उसे भयावह ही कहा जा सकता है. चौकिया पहाड़पुर, काला दियारा, बसंत टोला दियारा, गोविन्दपुर, बहरसाल, कमरुद्दीन टोला- कमरुद्दीन टोला के प्रभारी प्रधानाध्यापक मो अब्दुल वाहिद, शिक्षा सेवी शौकत शबाना यासमिन बताती हैं, देखिए मेरे विद्यालय को गंगा और महानंदा की धार का सामना करना पड़ता है. ऐसी स्थिति है कि कोई यहां आना नहीं चाहता. इस साल अगर बाढ़ आई तो यह स्कूल भी नदियों में ही विलीन हो जाएगा.
सिर्फ मुखियाजी की स्थिति बदली
यहां से चलकर हम दुर्गापुर पंचायत के एक गांव गणेश टोला पहुंचे. ज्ञात हो कि गणेश टोला तक पहुंचना भी खुद में जंग लड़ने जैसा है. चार चक्के की गाड़ी को छोड़कर हम मोटरसाइकिल पर सवार होकर आगे बढ़े. कई जगह सड़कें कटान की वजह से गायब हो गई हैं. गांव पहुंचने पर पता चलता है कि पूरा इलाका बरसात में जलमग्न हो जाता है.
ग्रामीण प्रसन्नजीत मंडल हमसे बातचीत में कहते हैं, “साहब बड़ी सरकार तो सुनती नहीं, होमियोपैथी का डॉक्टर है. उसके पास किसी मर्ज का ईलाज नहीं. बाढ़ से होने वाली दिक्कतों और बीमारियों की कहीं कोई सुनवाई नहीं है. मुखियाजी ने खुद के लिए स्कॉर्पियो और ट्रैक्टर तो खरीद लिया मगर स्वास्थ्य केन्द्र में दवा और डॉक्टर की व्यवस्था नहीं करवा सके.” इसी गांव के निखिल मंडल कहते हैं कि ऐसे बहुत सारे लोग हैं जिनके पास इतने भी पैसे नहीं कि वे गैस योजना का फायदा उठा सकें. वे लोग 2-3 महीने तो बाजार और दुनिया से पूरी तरह कटे रहते हैं.
गणेश टोला से लौटने के क्रम में हम लालबथानी (हाट बाजार) में रुकते हैं. वहां एक चीज हमें खास तौर पर दिखती है कि कैसे चाउमीन और पास्ता हर जगह पहुंच गए हैं. जहां कायदे की सड़कें नहीं पहुंचीं वहां भी ये पहुंच गए गए हैं. सब्जी और मसालों की दुकानों के साथ ही वहां लोगों को खूबसूरत बनाने वाले दुकान (ब्यूटी पार्लर) भी खुल गए हैं. पूरे इलाके के ग्रामीण यहां किसी तरह पहुंच रहे हैं. हम सोचते हैं कि काश यहां कायदे की सड़कें भी पहुंच जातीं जो हर गांव को प्रखंड और थाने से जोड़ देतीं…
उक्त रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए ग़ालिब ने लिखी है. वे जनआंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से सम्बद्ध हैं और पूर्व में शिक्षा अधिकारी रहे हैं. इसे रिपोर्ट को संपादित ‘द बिहार मेल’ के घुमन्तू संपादक विष्णु नारायण ने किया है…