काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रशासन ने यौन उत्पीड़न व छेड़खानी के आरोपी प्रोफेसर को शिक्षण कार्यों से बाहर रखने का फैसला लिया है. आरोपी प्रोफेसर एस के चौबे को बर्खास्त किए जाने की मांग को लेकर छात्राओं की अगुआई में सैकड़ों छात्र विश्वविद्यालय के सिंह द्वार पर दो दिनों से धरनारत थे. बीते शाम प्रशासन उनके मांग के समक्ष झुका और छात्र-छात्राओं के प्रतिनिधिमंडल के साथ उनकी बातचीत हुई. इस बातचीत के परिणामस्वरूप उन्हें लंबी छुट्टी पर भेजा जा रहा है.
यहां हम आपको बताते चलें कि आरोपी प्रोफेसर विश्वविद्यालय में जंतु विज्ञान पढ़ाते हैं. उन्हें लेकर कई छात्राओं ने प्रशासन के समक्ष लैंगिक उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी कि उन्हें सेवा से बर्खास्त किया जाए. हालांकि वे इस आंदोलन के पूर्व तक सारे कार्य वैसे ही करते रहे. यहां तक कि उन पर लगे आरोपों की जांच कर रही कमिटी तक ने उन पर कोई ऐक्शन नहीं लिया. परिणामस्वरूप छात्राओं की अगुआई में छात्र विश्वविद्यालय से अपनी मांग मनवाने हेतु प्रदर्शन करने लगे.
प्रतिनिधिमंडल से प्रशासन ने क्या कुछ कहा?
इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय प्रशासन से मिलने गई प्रतिनिधिमंडल में शामिल मिनेशी कहती हैं, “हमारी पहली मांग थी कि यौन उत्पीड़न के आरोपी प्रोफेसर को सस्पेंड किया जाए- इस पर प्रशासन ने उनसे कहा कि विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव कमिटी अपने पूर्व के फैसले को रिव्यू करेगी. रिव्यू का फैसला आने तक उन्हें शिक्षण कार्यों से हटाया जा रहा है. उन्हें लंबी छुट्टी पर भेजा जा रहा है. दूसरी मांग के तौर पर उन्होंने GSCASH की बहाली व GSCASH के भीतर स्टूडेंट्स के प्रतिनिधित्व की बात रखी. जिसके जवाब में प्रशासन ने उन्हें यूजीसी के नए नियमों का हवाला देते हुए कहा है कि वे ICC के भीतर स्टूडेंट्स को प्रतिनिधित्व देंगे.” यहां हम आपको बताते चलें कि इससे पहले ICC में भी सिर्फ प्रशासन के लोग ही शामिल होते थे.
यहां हम आपको बताते चलें कि साल 2017 में भी विश्वविद्यालय के भीतर से एक छात्रा के साथ छेड़खानी का मामला प्रकाश में आया था. जिसके बाद विश्वविद्यालय की छात्राओं द्वारा किए गए प्रदर्शन का असर कुछ यूं रहा था कि विश्वविद्यालय के तत्कालीन वाइस चांसलर तक को वहां से हटा दिया गया. हालांकि वाइस चांसलर के हट जाने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन चेता नहीं, बल्कि उक्त प्रदर्शन के बाद विश्वविद्यालय की सुरक्षा हेतु नियुक्त की गई महिला प्रॉक्टर ने तो साल 2017 के ऐतिहासिक प्रदर्शन को प्रायोजित तक कह डाला.
साल 2017 से साल 2019 के बीच क्या बदला?
गौरतलब है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय को देश-दुनिया के प्रतिष्ठित संस्थानों में शुमार किया जाता है. ऐसे में ऐसी घटनाएं उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करती हैं. उसकी जगहंसाई होती है. जब द बिहार मेल ने यह सवाल इस प्रदर्शन में शामिल आकांक्षा से किया तो उन्होंने कहा, “देखिए तब से अब में फर्क तो आया है. तब प्रशासन से कोई भी व्यक्ति हमसे मिलने नहीं आया था. इस बार प्रशासन कम से कम हमसे आके मिल तो रहा था. डीएसडब्लू, रजिस्ट्रार और प्रॉक्टर शुरुआत से ही हमसे मिलकर मामले पर बात करने की कोशिश कर रहे थे. प्रशासन में इस बात का भय तो दिखा ही कि कहीं और छात्र लामबंद न हो जाएं.”
इसी फर्क के सवाल पर मिनेशी कहती हैं, “मेरा मानना है कि हर लड़ाई अगली लड़ाई का आगाज होती है. आज भले ही हम इस जीत का जश्न मना रहे हैं लेकिन हमारा कुछ भी वेस्ट नहीं हुआ. हर प्रोटेस्ट आगे सीखने और लड़ने का जज्बा देता है. आज यहां से लौटने वाली लड़कियां आगे किसी भी तरह के गलत के खिलाफ और तनकर खड़ी होंगी.”
यहां अंत में हम आपको बताते चलें कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में बीते दो दशकों से भी अधिक समय से छात्र संघ के चुनाव नहीं हो रहे. छात्रों के पास अपनी बातें रखने का कोई मुकम्मल मंच नहीं है. छात्रों के प्रतिनिधित्व के सवाल पर प्रशासन का रवैया अधिकांशत: ढुलमुल ही होता है. साल 2017 में हुए आंदोलन को भी बदनाम करने की हर संभव कोशिश की गई थी. तब भी स्टूडेंट्स GSCASH की मांग कर रहे थे. ऐसे में देखना होगा कि अपनी कही गई बातों के अनुसार विश्वविद्यालय प्रशासन ICC में भी यहां के स्टूडेंट्स का प्रतिनिधित्व कब तक सुनिश्चित करता है, करता भी या नहीं?