बिहार में ‘खास’ और ‘आम’ के लिए कानून अलग-अलग हैं, का कीजिएगा…

बिहार में ‘खास’ और ‘आम’ के लिए कानून अलग-अलग हैं, का कीजिएगा…

अंग्रेजी के एक बहुत मशहूर उपान्यासकार हुए. नाम था जॉर्ज ऑरवेल. बिहार के मोतिहारी जिले में पैदा हुए थे. तब का ब्रितानी भारत कहिए. बाद का अधिकांश जीवन और लेखन इंग्लैंड में ही किया. उनके लिखे नॉवेल ‘Animal Farm’ की एक बड़ी ही मानीखेज लाइन है – All animals are equal, but some animals are more equal than others. अनूदित करें तो, सभी जानवर बराबर होते हैं लेकिन कुछ जानवर बाकी जानवरों से अधिक बराबर होते हैं. अब जो आप सोच रहे हों कि ये हम आपको क्या सीधे-सीधे खबर देने के बजाय पहेलियां बुझाने लगे, तो बता दें कि बिहार की राजग सरकार और उसके मुखिया इन दिनों प्रदेश की जनता को पहेलियां ही बुझा रहे हैं. यहां खास और आम के लिए अलग-अलग नियम और कानून हैं – अब आप सोच रहे होंगे कि कैसे तो आगे ये रपट पढ़िए…

अब जबकि समूचा देश लॉकडाउन 2.0 में प्रवेश कर चुका है. तो ऐसे समय में प्रवासी मजदूरों के साथ-साथ ही बिहार से बाहर रहने वाले स्टूडेंट्स को लेकर पक्ष और विपक्ष में सियासी जंग छिड़ती दिखाई देने लगी है. नेता प्रतिपक्ष ने लॉकडाउन के बावजूद प्रवासी मजदूरों को लेकर सरकार के नकारात्मक रवैये और सरकार में शामिल भाजपा विधायक अनिल सिंह को अपने  पुत्र को कोटा से नवादा वापस लाने हेतु निर्गत किए गए पास पर सरकार को घेरा है. नेता प्रतिपक्ष अपने ट्विटर वॉल पर सरकार के इस रवैये को लेकर लिखते हैं कि, बिहार CM यूपी CM को कह रहे थे कि उन्हें कोटा में फंसे छात्रों को वापस लाने के लिए बसों को अनुमति नहीं देनी चाहिए थी. दूसरी तरफ़ अपने MLA को गोपनीय तरीक़े से उनके बेटे को वापस लाने की अनुमति दे रहे थे. बिहार में ऐसे अनेकों VIP और अधिकारियों को पास निर्गत किए गए. फंसे बेचारा ग़रीब…

संभवत: ऐसे ही किसी वाकये या दृश्य को देखकर जॉर्ज ऑरवेल ने उक्त मानीखेज लाइन लिखी होगी. नेताओं, मंत्रियों और VIP के लिए इस प्रदेश और देश में सारी नियम-कायदे ताक पर रख दिए जाते हैं. जब इस पूरे मामले में हमने राजद के प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी से बात की तो उन्होंने कहा, ”अब तो बिहार सरकार को जवाब देना होगा. रसूखदार और वीआईपी परिवार के बच्चों को कोटा से वापस लाने की इजाजत सरकार दे रही है. कानून किन्हीं खास और आम के लिए अलग-अलग क्यों हैं?’

राजद प्रदेश प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी

यहां हम आपको अंत में बताते चलें कि कोरोना संक्रमण के लिहाज से पूरे देश में लॉकडाउन लगा. लॉकडाउन को अभी दो से तीन दिन ही हुए थे कि बिहार के प्रवासी मजदूरों का रैला प्रदेश के लिए निकल पड़ा. आनंद विहार स्टेशन पर उमड़ी भीड़ और हाईवे पर चलते लोगों का रैला किसने नहीं देखा. बिहार के मुखिया तब भी कह रहे थे कि ऐसे कैसे चलेगा लॉकडाउन? हालांकि तब से अब तक लाखों की संख्या में देश के दूसरे राज्यों से लोग बिहार आए हैं. ऐसा सरकार द्वारा जारी आंकड़े कहते हैं. लोगों का आना अब भी जारी है. उत्तरप्रदेश और बिहार की सीमा (कर्मनाशा बॉर्डर) से लगातार रिपोर्ट्स कर रहे मनोज कुमार हमसे बातचीत में कहते हैं, “अब भी लोगों के बिहार आने का सिलसिला जारी है. कोई दो से तीन सौ प्रवासी मजदूर हर रोज बॉर्डर में दाखिल हो रहे हैं. लॉकडाउन की अवधि बढ़ाए जाने के बाद से ही कोटा समेत और भी कई जगहों से छात्र अपनी व्यवस्था करके राज्य में दाखिल हो रहे हैं. उन्हें तो कहीं कोई लॉकडाउन नहीं दिखता, सरकारें (उत्तरप्रदेश और बिहार) भले ही ऐसा कहके अपनी-अपनी पीठ थपथपा रही हैं.”

इस पूरे मामले पर द बिहार मेल से बातचीत में जदयू के प्रवक्ता डॉक्टर अजय आलोक बोले, ”वह इस पर क्या टिप्पणी करें, विधायक खुद इस मामले में अपनी बात रख चुके हैं. सरकार पूरी तरह से इसके पक्ष में है कि यह लॉकडाउन असरदार तरीके से लागू हो और इसके नियम सब पर एक जैसे लागू होते हैं”.

वहीं एक खबरिया चैनल से बातचीत में विधायक ने कहा है कि उन्होंने किसी भी तरह से लॉकडाउन का उल्लंघन नहीं किया है क्योंकि अति महत्वपूर्ण कार्य के लिए लॉकडाउन में पास का प्रावधान है. वे आगे कहते हैं कि इसी को देखते हुए उन्होंने ई-पास के लिए आवेदन दिया और तय प्रावधान के तहत उन्हें पास मिला. विधायक ने कहा कि वह तय नियम के अनुसार गए और वापस आए. इसमें क्या गलत है? इस पर राजनीति नहीं होनी चाहिए.

अब बाकी की चीजें और फैसले हम अपने पाठकों पर छोड़ते हैं कि वे इस खबर व रिपोर्ट को पढ़कर किस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहते हैं. बाद बाकी, बिहार में बहार है, नीतीशे कुमार हैं…