बिहार के बक्सर जिले में रविवार रात तक कोरोना वायरस से चार लोगों के संक्रमित होने की पुष्टि हो चुकी है और राज्य में अब तक कोरोना से संक्रमित मरीजों की संख्या 93 तक पहुंच गई है, और आपके इस रपट को पढ़ते-पढ़ते नजदीक के आरा जिले में भी एक मामला रिपोर्ट हो चुका है। चारों तरफ हड़कंप मचा हुआ है।
यहां हम आपको विशेष तौर पर बताते चलें कि बक्सर लोकसभा केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री ‘अश्विनी कुमार चौबे’ का अपना संसदीय क्षेत्र है। जिस गांव में कोरोना से संक्रमित मरीज मिले हैं, उस गांव का नाम नया भोजपुर है। बक्सर जिले में 2 अनुमंडल हैं– बक्सर और डुमरांव| डुमरांव अनुमंडल के अंतर्गत कुल 7 प्रखंड और 16 पंचायत आते हैं। ‘नया भोजपुर’ भी इनमें से ही एक पंचायत है और इसके भीतर कुल 22 वार्ड हैं। नया भोजपुर का मुख्य बाजार डुमरांव है। आसपास के ग्रामीण खरीददारी और इलाज के लिए डुमरांव पर ही आश्रित हैं। जाहिर तौर पर संक्रमित मामले सामने आने के बाद से लोगों में भय व्याप्त है।
गौरतलब है कि कोरोना के संक्रमण के डर की वजह से गांव और इसके आस–पास के इलाके के लोग भी संक्रमित व्यक्ति को ही दोष दे रहे हैं कि व्यक्ति आसनसोल से आने के बाद क्वारंटीन नहीं रहा, और देखते ही देखते इसने दूसरों को संक्रमित कर दिया।
कोरोना पॉजिटिव व्यक्ति के इधर–उधर घूमने की कहानी (सूत्रों के हवाले से)
प्रधानमंत्री ने 24 मार्च को देश की जनता को संबोधित करते हुए 14 अप्रैल तक देश में लॉकडाउन की घोषणा की थी। इसके ठीक 4 दिन बाद नया भोजपुर के एक मस्जिद से तब्लीगी जमात से ताल्लुक रखने वाले 11 विदेशी नागरिकों को पुलिस ने पकड़ा। हमें प्राप्त जानकारी के हिसाब से 30 मार्च को संक्रमित शख्स बंगाल से यहां आते हैं। उनके बंगाल से आने की जानकारी स्थानीय प्रशासन तक भी पहुंचती है। यात्रा की जानकारी होने के बाद शख्स को घर में ही रखा जाता है। होम क्वारंटीन में इसलिए रखा जाता है क्योंकि प्रशासन उस वक्त तक बस उन जमातियों को पकड़ रही थी जिनका कोई बाहरी कनेक्शन हो। इसी तर्ज पर ‘नया भोजपुर’ में 28 तारीख को विदेशी जमातियों को गिरफ्तार किया गया लेकिन इसी घटना के संबंध में जमात के स्थानीय सदस्यों को घर में ही रखा गया।
हमारे सूत्रों के अनुसार संक्रमित शख्स का 11 तारीख (अप्रैल) के रोज होम टेस्ट किया गया। उसके बाद 13 तारीख को बक्सर जिले में बुला कर सैम्पल टेस्ट किया गया। संक्रमण की पुष्टि 17 तारीख को हुई। 30 मार्च को आए लोग रिजल्ट आने तक सिर्फ 4 दिन (13 अप्रैल से 17 अप्रैल तक) जिला के क्वारंटीन सेंटर में रहे।
ऐसी जानकारी प्राप्त होने के बाद हमने बक्सर ज़िलाधिकारी ‘अमन समीर’ से सम्पर्क किया। इस संबंध में उनका जवाब ऊपर बताई गई जानकारी के बिल्कुल उलट था। उन्होंने बताया, ‘‘ हम लोगों के पास 13 तारीख को ऊपर से आदेश आया कि बिहार शरीफ में जमात से जुड़ा जो सम्मलेन हुआ है, वहां बक्सर जिले के 4 लोग शामिल हुए थे। उसके बाद हमने सभी थाने के साथ बैठक करके उसे अलर्ट किया। जब उन 4 लोगों को हमने पकड़ा तब स्थानीय सूत्रों से बंगाल के आसनसोल से आये लोगों की हमें जानकारी प्राप्त हुई। उसके बाद उन्हें क्वारंटीन सेंटर ले जाया गया। उससे पहले हमे किसी की भी जानकारी नहीं थी|’’
आगे सवाल करते हुए जब हमने पूछा कि , ‘‘ अगर इस संबंध में हम यह मान लें कि प्रशासन को लोगों की यात्रा के बारे में जानकारी नहीं थी तो इससे पहले ऐसे कई केस सामने आये जिसमें ट्रेवल हिस्ट्री की जानकारी के बाद भी उन्हें होम क्वारंटीन रखा गया। क्या आप मान रहे हैं कि आपके पास साधन-संसाधन की कमी थी? ’’ – हमारे इस सवाल पर जिलाधिकारी का कोई स्पष्ट जवाब नहीं दे सके कि यात्रा के संबंध में जानकारी होने के बाद भी कई लोगों को होम क्वारंटीन में लक्षण दिखने तक रखा जा रहा था या नहीं। वहीं सही समय से प्रशासन को मुखिया द्वारा अपडेट न किए जाने पर मुखिया के खिलाफ कार्रवाई के सवाल पर भी वे स्पष्ट उत्तर न दे सके।
हमने इस सिलसिले में जब बक्सर में भाजपा की जिलाध्यक्षा माधुरी कुंवर से बात की तो वो प्रशासन को ही दोषी ठहराने लगीं. इस पूरे मामले में प्रतिक्रियास्वरूप वह बोलीं ‘‘ मुखिया और प्रशासन एक-दूसरे का सहयोग नहीं कर रही| उन्होंने कई जगह क्वारंटीन सेंटर की मांग की लेकिन उचित इंतजाम नहीं होने की वजह से लोग वहां से भाग जा रहे हैं। उन्हें प्रशासन बिल्कुल सहयोग नहीं कर रहा।’’ अब आप ही सोचिए कि जब सरकार में शामिल पार्टी की जिलाध्यक्षा की बात शासन-प्रशासन नहीं सुन रहा तो फिर भला आम जनता की कौन सुनेगा?
बक्सर की भाजपा जिलाध्यक्षा के बयान को पढ़ने वाले पाठक यह भी नोट कर लें कि बिहार में भाजपा–जदयू गठबंधन की सरकार है और बक्सर के सांसद भाजपा से हैं। वे कोई आम सांसद नहीं बल्कि केन्द्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री हैं। अब कम से कम हमें तो कोई और जिम्मेदार व्यक्ति नहीं दिखाई देता जिससे हम इस पूरे मामले बात करते।
क्या कहता है विपक्ष?
इस पूरे मामले में हमने बक्सर के पूर्व सांसद एवं फिलहाल बिहार की मुख्य विपक्षी पार्टी (राष्ट्रीय जनता दल) के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह से बात की. वे द बिहार मेल से बातचीत में कहते हैं, ‘‘ नीतीश कुमार का राज किसी नेता का राज नहीं है बल्कि एक सुल्तानी राज है। आज वो अपने चुल्ही में घुस कर बैठे हैं। अगर नीतीश कुमार और मोदी को डर लग रहा है तो हमे बताएं। हम जा कर अपने लोगों की सेवा करेंगे और एक बात तो तय है कि जिस राज्य का सेनापति ही डरा हुआ हो वहां की प्रशासन सही काम कैसे कर सकती है? अभी तो आगे-आगे देखिए कि क्या होता है? ’’
नया भोजपुर के ही रहने वाले छात्र सत्यम यादव से हमारी इस पूरे मामले में जरूरी बात हुई। सत्यम दिल्ली में रह कर यूपीएससी की तैयारी करते हैं और अभी अपने नया भोजपुर स्थित घर में ही हैं। सत्यम बताते हैं, ‘‘ जब प्रशासन को इस केस के बारे में मालूम चला तब से 12 घंटों तक व्यवस्था में जरा सी सतर्कता देखी गई, पर अब सेनीटाइजेशन के नाम पर मजाक किया जा रहा है। केवल दिखावे के नाम पर छिड़काव किया गया है। आज कोरोना के आ जाने भर से हमारे गांव में इस संक्रमण ने धार्मिक रंग ले लिया है। आज हिन्दू इलाके में किसी भी मुस्लिम के प्रवेश मात्र से ही लोगों के अंदर नफरत भर जा रही है। आज या कल कोरोना तो चला जाएगा पर अब लगता है मानो ये नफरत कभी नहीं जायेगी।’’
इसी गांव के निवासी अमित सिंह ने हमसे बातचीत के दौरान बताया, ‘‘ आकाश में उड़ते ड्रोन को देख कर डर लगता है। ऐसा लग रहा है मानो पूरे गांव से कोई बहुत बड़ी गलती हो गई हो। कभी कभी सोचता हूं कि बाहर से आते ही अगर लोगों को प्रशासन ले जाती तो कितना अच्छा होता। यह दिन नहीं देखना पड़ता, आज खेत में आराम से फसल काट पाते पर अब कहीं निकलना भी दूभर सो हो गया है।’’
डुमरांव अनुमंडल के एक बुजुर्ग मास्टर साहब (नाम गोपनीय) से हमने बात की। शिक्षक छात्रों को अपने घर पर हीं शिक्षा–दीक्षा देते हैं। उन्होंने हमसे भोजपुरी में बात करते हुए कहा , ‘‘ पहली बार अइसन कुछ देखे के मिलत बा| काल तक जहां सब धर्म के बड़–बुजुर्ग मिल–बांट के रहत रहे आज एक दोसरा के देख के लोग भाग रहल बाड़ें। हमरा याद बा कि लइकाइ में हमार छोट भाई के तबीयत खराब हो जाए त माई मोल्बी साहब से ओकर चानी पर फुकवावत रहे। आज सब बदल गइल, अब लोगन के भावना बदल गइल बा लेकिन ई सब से अगर फरका होके सोचब त एमे कौनो धरम के दोष नइखे बस टी.वी लोग के भरमा रहल बा।
मास्टर साहब की कही बात का अगर हम अनुवाद करें तो उनकी बात का लब्लोलुआब कुछ ऐसा होगा।
(पहली बार कुछ ऐसा देखने को मिल रहा है। कल तक जहां सब धर्म के लोग मिल बांट के रह रहे थे। आज वहीं एक –दूसरे को देख कर भाग रहे हैं। मुझे याद है कि बचपन में मेरे भाई की तबीयत जब भी खराब होती थी तो मां पास के मौलवी साहब से उसके सर पर कलमा पढ़ कर फूंकने को बोलती। आज सब बदल गया है, लोगों की भावनाएं बदल गईं हैं, पर इन सब से इतर अगर आप सोचेंगे तो पता चलेगा कि इस संक्रमण को फैलाने में किसी धर्म का दोष नहीं है। आज टी.वी ने लोगों को भ्रम में डाल दिया है।)
डुमरांव के व्यापारी तबका भी कोरोना और संक्रमण से खासा त्रस्त है। सारी दुकानदारी और व्यापार ठप्प है। इसी संदर्भ में द बिहार मेल से बातचीत में डुमरांव के ही व्यापारी विनोद हैं, ‘‘ आज शहर में चिकित्सा के अभाव में सामान्य रोग से भी लोग मर जाते हैं। यहाँ कोरोना जैसी बीमारी हमारे लिए श्राप की तरह है। आज एक प्रशासनिक चूक की वजह से व्यापार से लेकर सब बर्बाद नजर आ रहा है पर दोष किसे दें?
यहां हम आपको यह विशेष तौर पर यह भी बताना चाहते हैं कि जिस अनुमंडल/प्रखंड के तहत ‘भोजपुर पंचायत’ आता है वहां की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था कुछ महीने पहले भी सुर्खियों में रही थी। यहां अस्पताल को लेकर आमरण अनशन तक हुए लेकिन स्थिति जस की तस ही है। सब कुछ भगवान भरोसे ही मानिए।
डुमरांव इतना गया-गुजरा नहीं जितना इसे राजनीतिक अनदेखी ने बना दिया!
यहां इस बात को विशेष तौर पर रेखांकित किए जाने की जरूरत है कि डुमरांव का इतिहास पूरे इलाके के लिए गौरव की बात है। यहां 15 अगस्त के साथ ही 16 अगस्त को भी आजादी का जश्न मनाया जाता है। 16 अगस्त 1942 की क्रांति में डुमरांव के कई लोग शहीद हुए थे। उनकी याद में यहां शहीद स्थल भी बना है। अंग्रेजों के जमाने का शाहाबाद (जिससे आज चार जिले – आरा, बक्सर, सासाराम और भभुआ) बने. उस दौर में डुंमरांव स्वतंत्रता संग्राम का मुख्य केंद्र हुआ करता था। यदि आप न जानते हों तो हम यह भी बताते चलें कि…
मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान की जन्मस्थली है डुमराँव।
देश के ‘आखिरी रियासती राजा’ और ‘प्रथम सांसद’ कमल सिंह का राज स्थल है।
सिन्होरा (सिन्दूर रखने के लिए काठ का एक पात्र ) का बड़ा व्यापारिक स्थल है डुमरांव।
यहाँ के बेर इतने लाजवाब और टेस्टी रहे कि इनका आयात बांग्लादेश तक होता था।
इस छोटे से जगह के रहवासी 1979 बैच के आई.पी.एस अनिल कुमार सिन्हा सी.बी.आई निदेशक के पद को सुशोभित कर चुके हैं।
इन तमाम बातों का बताने का मकसद सिर्फ यही है कि लोग जान जाएं कि डुमरांव किसी पिछड़े गांव या कस्बे का नाम नहीं है. अपने समृद्ध इतिहास के बावजूद यहां से चुने जा रहे प्रतिनिधियों ने यहां की स्वास्थ्य सेवाओं पर कभी भी ध्यान नहीं दिया। जनता है कि बस टकटकी लगाए है कि कोई मसीहा आएगा और उसे उबारेगा।
डुमरांव अनुमंडल का अस्पताल महज मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने का जरिया
यहां हम आपको अंत में यह भी बताते चलें कि डुमरांव अनुमंडल के अंतर्गत कुल सात प्रखंड आते हैं। अगर सभी प्रखंडों की आबादी का हिसाब लगाएं तो कुल आबादी 9 लाख के करीब हो जाती है। डुमरांव में हरियाणा फ़ार्म पर एक अनुमंडल अस्पताल है। इसी अस्पताल पर कुल आबादी का दारोमदार है। इस अनुमंडल अस्पताल का उद्घाटन सीएम नीतीश कुमार द्वारा किया गया था। अनुमंडल अस्पताल के तय मानक द्वारा वहां चिकित्सकों की संख्या 30 होनी चाहिए, एम्बुलेंस की संख्या 5 होनी चाहिए एवं सभी प्रकार के रोग के स्पेशलिस्ट होने चाहिए पर एक इमारत के रूप में अनुमंडल अस्पताल लचर व्यवस्था के नमूने के अलावा कुछ भी नहीं। अस्पताल में उचित व्यवस्था के लिए शहर के भीतर राजनीतिक और गैरराजनीतिक तौर पर सक्रिय कई संगठनों ने आवाज भी उठाई। भूख हडताल पर भी पर भी बैठे लेकिन सारी बातें अनसुनी ही रह गईं। मोटामोटी कहें तो यह अस्पताल आज मेडिकल सर्टिफिकेट बनाने का जरिया भर बनकर रह गया है।
इस पूरी रपट को लिखने और लोगों से बातचीत के दौरान डुमरांव अनुमंडल एवं भोजपुर पंचायत के लोगों में एक अजीब सी कश्मकश और अज्ञात के डर को साफ तौर पर महसूसा जा सकता है। अब इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि यहां के सांसद (केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री ‘अश्विनी कुमार चौबे’) ऐसे संकट और संक्रमण के दौर में लोगों का संबल बनने के बजाय सपरिवार दूरदर्शन पर चलाए जा रहे रामायण सीरियल की तस्वीर साझा करके ही अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लें। अब बाकी की चीजें और फैसले हम अपने पाठकों पर छोड़ते हैं कि वे इस खबर व रिपोर्ट को पढ़कर किस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहते हैं…
यह रिपोर्ट हमें रजत परमार ने लिखकर भेजी है. रजत डुमरांव के ही रहवासी हैं और फिलवक्त ‘भारतीय जन संचार संस्थान’ के छात्र हैं, और स्वतंत्र पत्रकार हैं…