महात्मा गांधी जयंती विशेष: आज़ाद भारत में आए अपने पहले और अंतिम जन्मदिन पर क्या सोच रहे थे बापू?

महात्मा गांधी जयंती विशेष: आज़ाद भारत में आए अपने पहले और अंतिम जन्मदिन पर क्या सोच रहे थे बापू?

आज देश महात्मा गांधी की 151वीं जयंती मना रहा है। दिल्ली में स्थित राजघाट से लेकर देश के हर छोटे-बड़े इलाके में महात्मा गांधी को आज याद किया जा रहा है। महात्मा को याद किया जा रहा है। उनके जीवन को याद किया जा रहा है। उनके संघर्ष की कहानी को फिर से बताया-सुनाया जा रहा है।

पिछले कुछ साल में साबरमती के इस संत को लेकर, उनकी अहिंसा को लेकर और उनके जीवन को लेकर कई सवाल भी बार-बार खड़े किए गए हैं। भाजपा की नेता और भोपाल से सांसद साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने पिछले साल चुनाव से पहले महात्मा गांधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे को देशभक्त बताया था।

ये अलग बात है कि जिस पार्टी से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर जुड़ी हैं वो इस मौक़े पर पूरे देश में संकल्प यात्रा निकाल रही है। महात्मा गांधी की विरासत को अपना बताने वाली कांग्रेस पार्टी ने भी बहुत पहले महात्मा गांधी को अकेला छोड़ दिया था और यही वजह है कि वो अपने जीवन के आख़िरी दिनों में खासे दुखी और अकेले थे। वो ख़ुद पर ही कई सवाल खड़े करते थे। उन्होंने 32 सालों तक जिस देश की रहनुमाई की, जिसे लड़ने का एक अनोखा हथियार दिया, वही देश उन्हें अजीब लगने लगा था। उसी देश में वो रहना नहीं चाहते थे। इसी देश के नेता महात्मा गांधी से पीछा छुड़ाना चाहते थे।

15 अगस्त 1947 को देश लम्बी लड़ाई के बाद अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ाद हुआ। आज़ाद मुल्क में महात्मा गांधी का पहला और आख़िरी जन्मदिन इसी साल 2 अक्टूबर यानी 2 अक्टूबर 1947 को आया। ये उनका आख़िरी जन्मदिन भी साबित हुआ क्योंकि 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे ने उनकी हत्या कर दी।

आज़ाद भारत में आए अपने पहले जन्मदिन पर क्या गांधी ख़ुश थे? उत्साहित थे या घोर निराशा में डूबे हुए थे? इन सवालों के जवाब आप ख़ुद महात्मा गांधी से जान लीजिए। 

वो कहते हैं, “आज मेरी जन्मतिथि है…मेरे लिए तो आज मातम मनाने का दिन है। मैं आजतक ज़िंदा पड़ा हूं। इसपर मुझे ख़ुद आश्चर्य होता है, शर्म लगती है, मैं वही शख्स हूं कि जिसकी जबान से एक चीज़ निकलती थी कि ऐसा करो तो करोड़ों उसको मानते थे। पर आज तो मेरी कोई सुनता ही नहीं है। मैं कहूं कि तुम ऐसा करो, ‘नहीं, ऐसा नहीं करेंगे’ …ऐसी हालत में हिंदुस्तान में मेरे लिए जगह कहां है और मैं उसमें ज़िंदा रहकर क्या करुंगा?”

देश को मिली आज़ादी के साथ ही धर्म के आधार पर देश के दो हिस्से हो रहे थे। हर तरफ मार-काट मची थी। जिस देश को गांधी ने अहिंसा का पाठ बढ़ाया वो ही हिंसा पर उतारू था। ऐसे मुश्किल वक्त में गांधी को कोई पूछ नहीं रहा था। तभी तो उन्होंने ईश्वर से अपने लिए मौत मांगी थी।

वो कहते हैं, “मैंने अपना आखिरी फैसला कर लिया है कि मैं भाई-भाई की लड़ाई में हिन्दुस्तान बर्बादी देखने के लिए ज़िंदा नहीं रहना चाहता। मैं लगातार भगवान से प्रार्थना कर रहा हूं कि हमारी इस पवित्र और सुंदर धरती पर इस तरह का कोई संकट आए उसके पहले ही वह मुझे यहां से उठा ले। आप सब इस प्रार्थना में मेरा साथ दें।”

निराशा, दुःख या घोर अकेलेपन में डूबे ये विचार महात्मा गांधी के मनस्थिति को बताते हैं। इन बातों से पता चलता है कि महात्मा अपनी हत्या से बहुत पहले हार गए थे। उन्हें सबने अकेला छोड़ दिया था। आगा खां महल के कारावास से निकलने के बाद महात्मा हर शाम को आयोजित होने वाले प्रार्थना सभा में हर रोज प्रवचन किया करते थे। इन्हीं प्रवचनों में उन्होंने वो बातें कहीं जो बताती हैं कि अपने आख़िरी जन्मदिन पर वो कितने दुखी थे। कितने निराश थे।

अपनी हत्या से एक रोज पहले तक महात्मा गांधी द्वारा दिए गए इन प्रवचनों को राजकमल प्रकाशन और रज़ा फ़ाउंडेशन से दो खंडों में “प्रार्थना प्रवचन” नाम से प्रकाशित किया गया है। ऊपर दी गई सारी जानकारी इन्हीं किताबों से ली गई है।

 
गांधी जयंती विशेष: ‘द बिहार के लिए’ यह आलेख ज्योति कुमार ने लिखकर भेजा है.