पूर्वी चंपारण की अलग-अलग विधानसभाओं का हाल-ए-बयां, दक्षिणपंथ का कायम रहा जलवा…

पूर्वी चंपारण की अलग-अलग विधानसभाओं का हाल-ए-बयां, दक्षिणपंथ का कायम रहा जलवा…

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के परिणाम आ चुके हैं. अलग-अलग विधानसभाओं के लिहाज से जीते हुए उम्मीदवारों और सबंधित दलों की तस्वीरें साफ हो चुकी हैं. भाजपा के गढ़ के तौर पर चर्चित पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) की अधिकांश सीटें फिर से भाजपा और सहयोगी दलों के पास ही रहीं. जिले के कुल 12 सीटों में से 9 सीटें एनडीए गठबंधन के हाथ आई हैं. बाकी तीन सीटें महागठबंधन के पाले में गई हैं. महागठबंधन के हिस्से आने वाली तीन सीटें- नरकटिया, कल्याणपुर और सुगौली हैं. वहीं रक्सौल, चिरैया, ढाका, हरसिद्धि, मधुबन, मोतिहारी, पिपरा और गोविंदगंजसीटें भाजपा ने और केसरिया सीट पर जद (यू) ने अपना परचम लहराया.

2015 और 2020 में क्या रहा फर्क?
यहां हम आपको बताते चलें कि पूर्वी चंपारण की सरजमीं हाल के दिनों में दक्षिणपंथ के लिहाज से उर्वर साबित हो रही है. बीते विधानसभा चुनाव में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार के साथ आने के बावजूद भी जिले की 12 सीटों में से 8 पर भाजपा का ही कब्जा रहा. भले ही पूरे बिहार में महागठबंधन (लालू+नीतीश) का गठजोड़ सफल रहा हो लेकिन पूर्वी चंपारण में दक्षिणपंथ का ही दबदबा रहा, बल्कि भाजपा की सीट पहले की तुलना में एक और बढ़ गई है. इस बार भाजपा ने गोविंदगंज सीट (जहां से ब्रजेश पाण्डेय- कांग्रेस, राजू तिवारी- लोजपा और सुनील मणि तिवारी- भाजपा) दावेदार रहे हैं, को भी जीतकर अपने दबदबे में विस्तार किया है. साथ ही यह भी बताते चलें कि गोविंदगंज सीट पर ऐसा पहली बार हुआ है कि भाजपा यहां जीती है.

भारतीय जनता पार्टी

महागठबंधन के लिहाज से बात करें तो जिले में सिर्फ नरकटिया ही ऐसी सीटें रहीं जहां इस बार राजद अपनी पुरानी सीट को बरकरार रख सका. वहीं सुगौली की सीट से वीआईपी के उम्मीदवार रामचंद्र सहनी को हराकर 15 साल बाद राजद के (शशिभूषण सिंह) ने लालटेन की लौ जलाई है.

कैसे बीजेपी ने पूर्वी चंपारण पर बरकरार रखा दबदबा?
2020 के चुनाव परिणाम बताते है कि बीजेपी ने यहां अपना दबदबा बरकरार रखा है. इसके पीछे की वजह बीजेपी की चुनावी रणनीति रही है. बीजेपी ने अपने कैडर को कभी भी नाराज नहीं होने दिया. सीटों के बटवारे में भी अपने पार्टी कार्यकर्ताओं के मुताबिक अपने प्रत्याशी दिए. चुनाव के दौरान बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने पीएम मोदी के ब्रांड को ही भुनाने की कोशिश की. नीतीश कुमार का जिक्र वे आमतौर पर करने से बचते रहे. स्थानीय पत्रकार सादिक हमसे बातचीत में कहते हैं, ‘ चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी के नेताओं ने जनता को यह हमेशा याद दिलाया कि कोरोना संक्रमण और खुलते-बंद होते लॉकडाउन के दौरान पीएम मोदी की वजह से आमजनों को मुफ्त राशन मुहैय्या कराया गया. पीएम मोदी को गरीब जनता की फिक्र है. इस तरह का प्रचार आम जनता और खास तौर पर महिलाओं को भाजपा से दूर जाने से रोकता रहा. ऐसे में परिणाम भी अपेक्षाकृत भाजपा के पक्ष में रहे.’

नए चेहरे नहीं जला सके लालटेन की लौ
गौरतलब है कि राजद ने जिले में नए चेहरों पर विश्वास जताया. हरसिद्धि से नागेन्द्र बिहारी राम, केसरिया से संतोष कुशवाहा और चिरैया से अच्छेलाल यादव चुनाव में थे. गर बात हरसिद्धि से करे तो यहां के सीटिंग विधायक का टिकट काट कर पार्टी ने नागेन्द्र बिहारी को मौका दिया. लेकिन नागेन्द्र बिहारी मौके को भुना नहीं सके. यहां जीत- हार का मार्जिन सोलह हजार वोटों का रहा. हरसिद्धि एक सुरक्षित सीट है. 2015 में यहां से राजद के राजेन्द्र राम जीते. हरसिद्धि सीट का अगर जातीय समीकरण देखे तो यहां कोइरी और मल्लाह जातियों की संख्या महत्वपूर्ण फैक्टर है. इन जातियों की संख्या वोट परिणामों में निर्णायक साबित होती है. वोटों के संख्या बल के हिसाब से कोइरी नंबर एक पर है. दूसरे नंबर पर मल्लाह जाति है. तकरीबन 28000 वोटर मल्लाह हैं. इस चुनाव में मुकेश सहनी एनडीए के हिस्सा रहे. इस वजह से मल्लाह वोटर बीजेपी के कृष्णानंदन पासवान की तरफ शिफ्ट हो गए. अगर मुकेश सहनी महागठबंधन के हिस्सा होते तो स्थिति बदल सकती थी.

केसरिया में बागी ने नहीं जलने दी लालटेन!
अब बात केसरिया की करते हैं. यहां से 2015 में राजद के राजेश कुशवाहा जीते थे, लेकिन इस बार राजेश कुशवाहा पर पार्टी ने दांव नहीं लगाया. केसरिया सीट हारने की बड़ी वजह टिकट वितरण रहा. राजद ने यहां भी अपने सीटिंग विधायक राजेश कुशवाहा का टिकट काट कर संतोष कुशवाहा को टिकट दिया. इस वजह से राजेश कुशवाहा नाराज होकर निर्दलीय चुनाव मैदान में थे. चुनाव परिणाम बताते है कि राजेश कुशवाहा ने 17658 वोट हासिल किए. जनता दल (यूनाइटेड) की प्रत्याशी शालिनी मिश्रा को 40,093 वोट मिले. जबकि राजद के संतोष कुशवाहा ने 30,741 वोट हासिल किए. हार-जीत का अंतर तकरीबन 10,000 वोटों का है. इस हार-जीत के अंतर से ज्यादा वोट राजद के बागी ने हासिल किया.

राष्ट्रीय जनता दल

चिरैया को नया चेहरा नहीं आया रास
बात अब राजद के तीसरे नए चेहरे अच्छेलाल यादव की करते हैं, इन्हें चिरैया से टिकट मिला. वे चुनाव लड़ने के पहले तक नियोजित शिक्षक थे. टिकट मिलने से पहले तक इन्हें क्षेत्र में कोई ठीक से जानता तक नहीं था. न ही पार्टी से उनके जुड़ाव का कोई पुराना इतिहास रहा है. चिरैया से राजद के हारने के सवाल पर इलाके की राजनीति पर नजर रखने वाले शिक्षक वीर प्रसाद कहते हैं, ‘यहां राजद अपनी गलतियों की वजह से हारा है. अबकी बार जीतने की पूरी संभावना थी, लेकिन सही उम्मीदवार नहीं मिलने की वजह से राजद हारा. पिछली बार राजद और बीजेपी में जीत-हार का फासला तकरीबन 3000 का था. अगर पार्टी अपने पुराने खिलाड़ी पर ही दांव लगाती तो जीत सकती थी. इसके साथ ही हम आपको यह भी बता दें कि इस बार राजद के पुराने प्रत्याशी लक्ष्मी नारायण यादव भी निर्दलीय चुनाव मैदान में थे. उन्हें तकरीबन 17000 वोट मिले और हार-जीत का फासला लगभग 17000 वोट ही हैं.

ढाका की सीट से क्यों हारा राजद?
यहां हम आपको बताते चलें कि ढाका विधानसभा के भीतर बीते कई चुनावों से धार्मिक ध्रूवीकरण होता रहा है. इस बार भाजपा के उम्मीदवार पवन जायसवाल को यहां से जीत मिली, जबकि बीते बार राजद के फैसल रहमान ने यहां से जीत दर्ज की थी. साल 2015 में जहां जीत-हार का फासला लगभग 18000 रहा था, वहीं इस बार फासला लगभग 10,000 वोट रहा है. ढाका सीट से राजद के हारने पर राजद के सक्रिय कार्यकर्ता मुजाहिद कहते हैं, ‘भाजपा की यह रणनीति रही कि मुस्लिम वोटों का बिखराव हो. इसके लिए भाजपा ने हरेक बूथों पर 50 से 100 वोटों को खरीदने का काम किया, और यह हमारे हारने की बड़ी वजह बनी’. इसके साथ ही पवन जायसवाल रालोसपा के उम्मीदवार रामपुकार सिन्हा को मिल रहे वोटों में भी सेंध लगाने में सफल रहे. वे आम हिन्दू वोटरों को यह बात समझाने में काफी हद तक सफल रहे कि रामपुकार सिन्हा को मिलने वाला वोट ढाका में हिन्दुओं को कमजोर ही करेगा. हालांकि पवन जायसवाल साल 2010 में निर्दल भी ढाका के विधायक रह चुके हैं, और तब उन्होंने एक राम-रहीम सेना का गठन किया था.

सुगौली और कल्याणपुर सीट को राजद ने एनडीए से झपटा
सुगौली सीट पर बीजेपी का कब्जा लंबे अरसे से रहा है. 2005 के दूसरे विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक सुगौली की सीट भाजपा के पास ही रही. रामचंद्र सहनी तीन बार से लगातार विधायक थे, लेकिन इस बार यह सीट वीआईपी के खाते में चली गई. फिर भी एनडीए के उम्मीदवार रामचंद्र सहनी ही रहे. लंबे समय से विधायक रहने की वजह से रामचंद्र सहनी के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर भी थी. इसका फायदा भी राजद के उम्मीदवार शशि भूषण सिंह को मिला. शशिभूषण सिंह ने 3500 वोटों के फासले से यहां जीत हासिल की. वहीं दूसरी सीट कल्याणपुर है, जहां से राजद के मनोज कुमार यादव ने बीजेपी के सीटिंग विधायक सचिन्द्र प्रसाद सिंह को हरा दिया. हालांकि इस सीट पर राजद को महज 800 वोटों से ही जीत मिली.

तो कुछ ऐसी है पूर्वी चंपारण (मोतिहारी) के 12 विधानसभाओं की तस्वीर. हालांकि लोकसभा के लिहाज से बात करें तो मोतिहारी जिले का कुछ हिस्सा मोतिहारी लोकसभा के अंतर्गत आता है, वहीं कुछ हिस्सा शिवहर लोकसभा के अंतर्गत. इन दो अलग-अलग लोकसभाओं से भाजपा के राधा मोहन सिंह और रमा देवी सांसद हैं.

यह खबर/रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए कल्याण स्वरूप ने लिखी है. कल्याण मोतिहारी के रहने वाले हैं और पूर्व में ईटीवी नेटवर्क के साथ जुड़कर पत्रकारिता करते रहे हैं.