धारा 497 को लेकर दूर करें अपना कंफ्यूजन

धारा 497 को लेकर दूर करें अपना कंफ्यूजन

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को 27 सितंबर को असंवैधानिक घोषित कर दिया. इस धारा को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद सोशल मीडिया पर तूफान खड़ा हो गया. उस तूफान के इर्द-गिर्द कई तरह की संशय स्थिति बनी हुई है. अपराध और नैतिकता पर लगातार पोस्ट किए जा रहे हैं, ज्ञान दिया जा रहा है.  लेकिन इसके बीच यह समझने की जरूरत बनी हुई है कि धारा 497 आखिर था क्या? यह किस तरह से काम करता था और सरकार और आम जन मानस का नजरिया इसको लेकर क्या था?

एडल्ट्री (विवाहेतर शारीरिक संबंध) के निर्णय पर जानने लायक जरूरी बातें: 

कौन सा क़ानून असंवैधानिक घोषित हुआ?

भारतीय दंड संहिता की धारा 497

यह क़ानून क्या कहता था ?

अगर किसी मर्द ने किसी शादीशुदा औरत से उसके पति की सहमति बिना सेक्स किया तो वह मर्द एडल्ट्री (व्यभिचार) के जुर्म में दोषी होगा.

यह क़ानून क्यों असंवैधानिक है?

यह क़ानून शादीशुदा स्त्री को उसके पति की सम्पत्ति मानता है.  ये पति या पत्नी के आचरण को आपराधिक घोषित नहीं करता बल्कि उस पुरुष को आपराधिक घोषित करता जिसने किसी शादीशुदा स्त्री के साथ सेक्स किया हो. तो पति-पत्नी एक-दूसरे पर एफ़आईआर नहीं कर सकते, कि तुम मेरी मर्ज़ी बिना किसी और के साथ सोई/सोए, पत्नी अपने पति की प्रेमिका के ख़िलाफ़एफ़आईआर नहीं कर सकती थी, बस पति को यह अधिकार था कि वह अपनी पत्नी के प्रेमी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराए कि तुमने मेरी मर्ज़ी के बिना मेरी पत्नी (पढ़िए संपत्ति) के साथ सेक्स किया (पढ़िए क़ब्ज़ा किया).

इस केस में केंद्र सरकार का क्या रुख रहा?

केंद्र सरकार ने जोरशोर से इस धारा का बचाव करते हुए कहा कि व्याभिचार समाज के खिलाफ ज़ुर्म है और इस कानून को हटाने से शादी की पवित्रता कमजोर पड़ जाएगी.

इस पर न्यायलय ने क्या कहा?

न्यायलय ने कहा, यही कानून कहता है कि पति की मर्ज़ी से उसकी पत्नी के साथ सोओ तो आपने कोई अपराध नहीं किया. मतलब इस कानून को न शादी की पवित्रता से मतलब है, न स्त्री की सहमति से मतलब है, बस पति की सहमति होनी कि उसकी पत्नी किसी सोये या ना सोये. अगर दो वयस्कों ने आपसी सम्बन्ध बनाया तो उसमें सरकार का क्या काम? ये पति पत्नी के बीच का दीवानी मसला है.
शादी कर लेने से स्त्री अपनी शारीरिक स्वायत्तता और निर्णय क्षमता नहीं गँवा देती.

क्या इस निर्णय के आ जाने के बाद व्याभिचारी पति/पत्नी के ख़िलाफ़ कोई क़दम नहीं उठाया जा सकेगा?

बिलकुल उठा सकते हैं.  पहले भी ​पास ​आपके दीवानी (सिविल) उपाय थे, अब भी हैं। व्याभिचार घरेलू हिंसा के अंतर्गत आता है। कोई भी पीड़ित पत्नी घरेलू हिंसा क़ानून के अंतर्गत याचिका डाल सकती है. इसके अलावा पति या पत्नी ऐसे व्याभिचारी पार्ट्नर से तलाक ले सकते हैं. तलाक़ का ग्राउंड एडल्ट्री या व्याभिचार भी होता है.तो दोस्तों, 497 पहले भी आपको व्याभिचारी पति या पत्नी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर करने की छूट नहीं देता था, पहले भी आप अपने धोखेबाज़ पार्ट्नर से तलाक़ ले सकते थे, अब भी ले सकते हैं. सच है, जो आपके प्रति वफ़ादार ना हुआ, उसके साथ रहना ही क्यों? अपने-अपने रास्ते जाइए, ख़ुश रहिए.

उक्त जानकारी प्योली स्वातिजा की फेसबुक टिप्पणी है. प्योली पेशे से सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं.