दिनारा: सत्ताधारी दल के मंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता के बीच ही है टिकटों का घमासान…

दिनारा: सत्ताधारी दल के मंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता के बीच ही है टिकटों का घमासान…

सूबे में चुनाव की तारीखें कभी भी घोषित हो सकती हैं. कोरोना के संक्रमण के बावजूद चुनाव आयोग अपनी तैयारियों में जुटा है. सत्तारूढ़ दल चाह रहे हैं कि चुनाव समय पर हो. विपक्ष के नेता आपत्ति जता रहे हैं. जनता हलकान भी है और हैरान भी, लेकिन चुनाव का माहौल चपता दिखाई दे रहा है. ऐसे में ‘द बिहार मेल’ आपके लिए रोहतास जिले के एक और हॉटमहॉट सीट के राजनैतिक और जातीय समीकरण के साथ ही संबंधित सीट से जुड़े किस्से लेकर आया है. किस्सा है रोहतास जिले की हाईप्रोफाइल दिनारा सीट का. दिनारा 210. पिछली बार आमने-सामने लड़ने वाले दो प्रत्याशी इस बार एक ही गठबंधन का हिस्सा हैं. दोनों की अपनी दावेदारियां और तैयारियां हैं. महागठबंधन (आरजेडी) के लोग बूथ जीतने की कवायद में लगे हैं- अब आगे…

कि सत्तारूढ़ एनडीए में ही है टिकट का घमासान-
अब इस बात को तो बार-बार बताने की जरूरत नहीं फिर भी बता देते हैं कि साल 2015 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार और लालू प्रसाद साथ थे. जाहिर तौर पर ढेर सारी चीजें बदल गईं थीं. ऐसे में महागठबंधन ने तब दिनारा विधानसभा से जय कुमार सिंह को ही फिर से टिकट थमाया था. एनडीए के लिहाज से यहां भाजपा ने राजेन्द्र सिंह को अपना दावेदार बनाया था. संघ की पृष्ठभूमि वाले राजेन्द्र सिंह महज 2651 वोटों से हारे. इस विधानसभा से जीतने के बाद जहां जय कुमार सिंह कैबिनेट मंत्री बने, वहीं हार के बाद राजेन्द्र सिंह संगठन के काम में लगे रहे. इस बार भी दोनों दावेदार हैं और सक्रियता बनाए हुए हैं. इस बीच जब भाजपा ने ‘बिहार जन संवाद’ किया. तब भी प्रदेश कार्यालय में मंच संचालन करते हुए राजेन्द्र सिंह ही दिखे. जाहिर तौर पर इस बार भी भीतरी और बाहरी खींचतान देखने को मिलेगी.

सीएम नीतीश कुमार के साथ जय कुमार सिंह

क्या है जातीय समीकरण?
हिंदी पट्टी में चुनाव और राजनीति की चर्चा जातियों के बगैर पूरी नहीं होती. बक्सर लोकसभा के अंतर्गत आने वाले इस विधानसभा की रूपरेखा भी साल 2010 के विधानसभा चुनाव में बदली हुई दिखी. 2010 के चुनाव से पूर्व इस विधानसभा में करगहर, कोचस और दिनारा प्रखंड के हिस्से आते थे और बदले परिसीमन के बाद दावथ और सूर्यपुरा भी शामिल हो गया. ऐसी आम बात है कि इस सीट पर यादव बिरादरी के मतदाताओं की अच्छी संख्या है. राजपूत बिरादरी के मतदाता दूसरे नंबर पर हैं. कुशवाहा बिरादरी के मतदाताओं की संख्या 22,000 के करीब है. ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 15,000 के आसपास है. इनके अलावा वैश्य व अन्य पिछड़ा वर्ग की आबादी मिलाने के बाद 40,000 के आसपास है. ऐसे में सारी पार्टियां अपने-अपने वोटबैंक के लिहाज से तैयारियां कर रही हैं. हालांकि बीते चुनाव में आमने-सामने दो राजपूत जाति से ताल्लुक रखने वाले दावेदार ही लड़े थे.

सभी दलों के उम्मीदवार कर रहे तैयारी-
गौरतलब है कि जय कुमार सिंह यहां से विधायक हैं और सूबे में काबीना मंत्री भी हैं. उनके जिम्मे विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय की जिम्मेदारी है. एनडीए के भीतर ही टिकटों की दावेदारी को लेकर हमारी बात जद (यू) के जिलाध्यक्ष नागेंद्र चंद्रवंशी से हुई. नागेंद्र चंदवंशी एनडीए के भीतर ही टिकटों की हो रही दावेदारी के लिहाज से कहते हैं, “देखिए जय कुमार सिंह यहां से सीटिंग विधायक हैं और वे इस क्षेत्र में लगातार सक्रिय हैं. वे यहीं से लड़ेंगे.” सत्ताविरोधी लहर और क्षेत्र में नामौजूदगी के सवाल को वे सिरे से नकार देते हैं. हमने कई कोशिशें जय कुमार सिंह से सम्पर्क करने हेतु भी कीं लेकिन उनसे सीधे संपर्क नहीं हो सका.

इलाके में सक्रियता और दावेदारी के सवाल पर राजेन्द्र सिंह हमसे बातचीत में कहते हैं, “देखिए मैं अपने संगठन के लिहाज से दावेदारी कर रहा हूं. चुनाव हारने के बावजूद मैं इलाके की समस्याओं के समाधान पर काम करता रहा हूं. चाहे वो एनएच 30 का सवाल हो या फिर इलाके की और किन्हीं सड़कों का हो. कोरोना काल और देश भर से लौटते मजदूरों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की. लाखों लोगों को खिलाया- चप्पल बंटवाए.”

बीते विधानसभा चुनाव में पटना की सड़कों पर लगे राजेन्द्र सिंह के पोस्टर्स

महागठबंधन के भीतर तैयारी और दावेदारी के सवाल पर राजद के जिलाध्यक्ष गिरिजा चौधरी हमसे बातचीत में कहते हैं, “देखिए दावेदार तो कई हैं लेकिन अभी कुछ तय नहीं हुआ है. महागठबंधन के भीतर भी सीटों का बंटवारा होना है. शीर्ष नेतृत्व हमसे पूछेगा तो हम बताएंगे. अभी तो हम लोग बूथ कमेटी बनाने और बूथ को मजबूत करने में लगे हैं. प्रदेश नेतृत्व की ओर से मीटिंग में यही तय हुआ है. बूथ जीतेंगे तो सरकार बनाएंगे”.

राष्ट्रीय जनता दल – 

तो कुछ ऐसी है बक्सर लोकसभा और रोहतास जिले के हाई प्रोफाइल ‘दिनारा विधानसभा’ के सियासी घमासान की कहानी, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि एनडीए के भीतर ही टिकटों के लिए संघर्ष और किसी एक नेता का टिकट तय हो जाने के बाद भी इस विधानसभा की सियासी हलचल देखने लायक होगी. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर ढेर सारी गिरहें देखने को मिलेंगी.

यह रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए गोविंदा मिश्रा ने लिखी है. गोविंदा ‘भारतीय जन संचार संस्थान’ से हिन्दी पत्रकारिता की पढ़ाई करने के बाद देश के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों के साथ जुड़कर काम करते रहे हैं. इन दिनों नौकरी छोड़कर सूबे में लौटे हैं. डेहरी ऑन सोन में रहते हैं…