मम्मी ने जबर्दस्ती दो किलोमीटर दूर ले जाकर टेलिफोन कराया था पापा को, शायद मैंने तब दूसरी बार टेलिफोन पकड़ा था, मम्मी को पता था कि मैं पापा की दुलारी बेटी हूं, अगर रोउंगी तो वह तुरंत आ जाएंगे लेकिन मेरा रोने–धोने का मन नहीं था. मम्मी परेशान थी कि अगर ननिहाल में बाढ़ आई और हम फंस गए तो पापा गुस्सा होंगे कि समय से वापस नहीं आए. और ननिहाल से अकेले नहीं आ सकते क्योंकि हम दोनों भाई–बहन छोटे–छोटे थे और तब मायके का नियम हुआ करता था कि जब तक ससुराल से कोई न आए तो जाना नहीं हैं…यह नियम धीरे-धीरे टूटता गया..
जब लगता था कि हेलीकॉप्टर से खाना मिलेगा
लेकिन तब मैं मन ही मन सोच रही थी कि मुझे मम्मी यहीं छोड़ दे, मैं हेलीकॉप्टर देखूंगी क्योंकि तब तक हेलीकॉप्टर मैंने नहीं देखा था. मामू से पूछती कि नीचे पानी भर जाएगा तब हेलीकॉप्टर खाना लेकर आएगा? और मामू कहते कि आने दो बाढ़, तुम्हें उसी में गोतेंगे. मुझे चिंता सताए जाती कि अगर हेलीकॉप्टर से फेंका गया पैकेट पानी में गिर गया तो? हम भूखे रह जाएंगे? सब मेरी बातों को सुनकर हंसते और कहते कि घर तक पानी कभी नहीं पहुंचा यहां, बस तुम्हारे गाछी (बगीचा) तक पानी आएगा, मैं रोज गाछी जाती और देखती कि पानी कहां पहुंचा लेकिन बस डोभा नाला के अलावा कहीं पानी नहीं था लेकिन कुछ दिन बाद घर से एक–दो किलोमीटर दूर टहलने गए और रास्ते में लोगों की शक्लें देखकर लगा कि पानी अब करीब है. मुझे डर तो लगने लगा लेकिन ढीठ तो बचपन से ही हैं तो आगे बढ़ते गए और एक जगह देखा तो सीमेंट की बोरियां जमा थी सड़क पर, और वहां तक काफी पानी आ चुका था, लोगों के घरों में पानी घुसना शुरू हो चुका था, ज्यादातर घर कच्चे या झोपड़ियों के थे.
और वह गाय के चारे के लिए रो रही थी
लोगों की शक्लें देखकर पैकेट का मोह जाता रहा और अब थोड़ा–थोड़ा पानी सड़क पर बहने लगा था, मैं वहीं कुछ बच्चों के साथ पानी में छप–छप करने लगी लेकिन आज भी एक तस्वीर दिलों–दिमाग पर चस्पा है. एक महिला अपनी गाय को ले जा रही थी और वह लगातार रोए जा रही थी कि गाय का सारा चारा पानी में दहा (बह) गया. तब मैं बाढ़ शब्द भी ठीक से नहीं जानती थी, हम दहाड़ कहते थे। तब करने को कुछ नहीं था, घर जाती और भाग कर फिर पानी देखने आती. छोटी–छोटी मछलियां पानी में दिखतीं, तब मैं मछली खाती भी थी लेकिन मछलियों को तैरते देखकर हमेशा मछली खाने से नफरत होती थी और कांटा अलग आफत… इसलिए मामू और नानी की तमाम कोशिशों के बावजूद खाने में नाटक करती जिस पर मेरी मम्मी गुस्से में कहती कि रहने दो बाप पर गई है…
मैं सोते–जागते बाढ़ के सपने देखती और मामू का दिमाग खराब करती रहती पूछ–पूछकर कि पानी कब तक यहां आएगा और मामू मुझे पानी वाली चुड़ैल और नानी मुझे नदी से निकलने वाली बूढ़ी देवी की कहानी सुनातीं, मैं दिन भर चुड़ैल और उस बूढ़ी देवी को खोजती लेकिन रात में चापाकल तक भी अकेले जाने की हिम्मत नहीं होती, ऐसा सुनती कि देवी दुखी हैं इसीलिए बाढ़ है, नानी से कई बार पूछा कि देवी क्यों दुखी हैं तो नानी कहती कि देवी नाराज हैं क्योंकि तुम चप्पल पहनकर मंदिर चली गई… मैं चिंता में पड़ जाती कि सच में देवी मेरी वजह से दुखी हैं…
दिन भर देवी और चुड़ैल की कहानी
नानी बताती कि देवी के ससुराल वालों ने देवी को बहुत परेशान किया और मायके से उन्हें कोई बचाने नहीं आया इसलिए वह गुस्से में आकर ससुराल को डूबाने के बाद रोते–रोते मायके की तरफ बढ़ती हैं और अपने भाई से कहती हैं कि तुम क्यों नहीं आए मुझे बचाने, अब मैं भी मरूंगी और तुम भी…मैं इस देवी से बहुत डरने लगी थी…नानी से पूछती कि देवी फिर सिर्फ अपने घर को ही क्यों नहीं डूबाती है जो पूरे गांव को डूबाना चाहती है और नानी बताती कि बेटी पूरे गांव की बेटी होती है इसलिए…दिन भर देवी और चुड़ैल, जहां बैठो वहां नई कहानी…कहानियां जीवन से ज्यादा सच्ची लगती और जीवन किसे कहते हैं यह तब सोचा नहीं था…अक्सर मेरे साथ दिक्कत रही है कि मैं कहानियों से जल्दी निकल नहीं पाती हूं.
मैं देवी से डरने तो लगी थी लेकिन उस गाय के साथ उस रोती औरत के लिए देवी पर गुस्सा बहुत था. अब मैं हेलीकॉप्टर नहीं देखना चाहती थी क्योंकि ऐसा लगता कि अगर यहां पानी आया तो इसका मतलब है कि वह चुड़ैल और देवी भी यही आएंगी. यह भी बहुत अजीब था कि लोग चुड़ैल से नफरत नहीं करते थे, उसे बेचारी कहते और बताते कि जवान मर गई बेचारी इसलिए चुड़ैल बन गई. उसकी आत्मा भटकती है. पानी बढ़ने के साथ–साथ यह कहानियां भी बढ़ती जाती…सारी कहानियों में कहीं न कहीं औरतों को मिलने वाले कष्ट का जिक्र होता… मार देने का, गालियां देने का और भी बहुत कुछ।
तो फिर देवदास चुड़ैल क्यों नहीं बना?
मम्मी कितना भी मुझे मारे–पीटे और बनबहरी (वैसे लोग जो इधर–उधर भटकते रहते हैं) कहे लेकिन मेरा गाछी जाकर और पानी के किनारे जाकर पानी देखने की आदत नहीं जाती फिर एक दिन पापा आ गए और मैं उन सभी कहानियों को छोड़कर आ गई. रास्ते में देखा तो स्थिति और भी खराब दिखती गई, यहां कभी भी सड़क टूट सकता था और पानी भर सकता था. जैसे–जैसे आगे बढ़ती गई चिंता में डूबे चेहरे, झोपड़ियों में घुसे पानी की तस्वीरें गहरी होती जाती और मन ही मन मैं उस देवी को कोसती जाती. फिर बेगूसराय शहर पहुंचने पर देवदास फिल्म की जगह–जगह पोस्टर दिखी और पापा ने कहा कि शाहरुख खान इस फिल्म में दिलीप कुमार की तरह एक्टिंग नहीं कर पाया, मुझे न देवदास से मतलब था और न पारो से फिर कुछ दिन बाद किसी ने देवदास की आधी-अधूरी कहानी सुनाई और लगा कि देवदास भी जल्दी मर गया, कहीं वह भी तो चुड़ैल नहीं बन जाएगा लेकिन फिर पता चला कि मर्द चुड़ैल नहीं बनते, कई बार इस सवाल का जवाब खोजती रही कि फिर देवदास क्या बना?