चार शो में देखें… मार–धाड़ और एक्शन से भरपूर। यह प्रचार पूरे गांव में रिक्शे पर लाउडस्पीकर लगाकर किया जाता था. इस रिक्शे के साथ–साथ गांव के कुछ लड़के चलते, जिनके बारे में लोग चुपके–चुपके बातें करते कि उसे फलां सनीमा हॉल में उसे फलां लड़की के साथ देखा गया था. रिक्शे पर जो प्रचार करने आता, उसके हाथ से लाउडस्पीकर लेकर लड़के खुद अलग–अलग स्टाइल में सनीमा का प्रचार करने लगते. पोस्टर पर इस बात का खास जिक्र होता कि किस सनीमा को परिवार के साथ और किसे बगैर परिवार देखा जाए. जिस घर में नई बहू या दामाद आता, उस घर में जवान लड़के–लड़कियों को कुछ समय के लिए सनीमाहॉल जाने की आजादी मिल जाती. तब नये–नये जीजाजी और भौजाई को सनीमा दिखाना गांव का रिवाज माना जाता. बाकी राज्यों में क्या होता था, इसका पता मुझे नहीं. बिहार के गांवों में एक और अनकही सी बात थी कि अगर आप सनीमा हॉल में जाकर फिल्में देखते हैं तो आप शरीफ नहीं हैं. शराफत की असल परिभाषा क्या है? यह किससे पूछ कर तय की जाती है? इसके बारे में कोई स्पष्ट तौर पर बोलता नहीं.
मेरे गांव की एक महिला लगभग हर सप्ताह सनीमा देखने जाती और उसके बाद आंगन में बैठकर सबको सनीमा की स्क्रिप्ट सुनाती. कैसे अक्षय कुमार धड़कन में एक दम शरीफ इंसान था और सुनील शेट्टी…’तुम मुझे भूल जाओ यह मैं होने नहीं दूंगा’ टाइप का डायलॉग मारा था. वह पूरी फिल्म की कहानी कुछ यों सुनाती जैसे वही स्क्रिप्ट राइटर हो. चारों तरफ शांति. सब चुपचाप रहकर सुनते. ऐसा जैसे उनके सामने ही सनीमा लाइव चल रहा हो. यह बातें ठंड की रातों में बोरसी (अंगीठी) के साथ देर रात तक चलतीं. उस आग में भुट्टा पका करता और फिर मिल–बांटकर खाया जाता. फिल्म की कहानी के बाद सबसे ज्यादा चर्चे हीरोइनों के कपड़ों के होते थे. फिर शुरू होता था फैशन का दौर. फेरी वाला (साड़ी व चूड़ी बेचने वाले) औरतों को जो साड़ी बेचने आता, वह बकायदा बताता कि अमुक फिल्म में माधुरी ने ऐसी और करिश्मा ने वैसी साड़ी पहनी थी. फेरी वाले को सारी नई फिल्मों की कहानियां और उनके कपड़े याद रहते. वह घंटों फिल्मों के लेटेस्ट फैशन पर ज्ञान देने के साथ चाय और शरबत पीता. यह हाल सिर्फ साड़ी बेचने वाले का नहीं बल्कि टिकुली (बिंदी) , सिंदूर और चूड़ी बेचने वालों का भी था.
अबतक तो मैंने आपको औरतों और लड़कियों का हाल से रूबरू कराया. मर्दों और लड़कों का हाल तो दर्जी और नाई के यहां दिखता. भले वे अपनी औरतों को लाख तानें मारते कि फेरी वाले के साथ बैठकर फैशन की कहानी सुनने से ज्यादा अच्छा है कि घर के काम कर लिया करो लेकिन वे खुद यही सब करते थे. सनीमाहॉल को लोग जादू की दुनिया कहते. विजुअल्स के सहारे उनकी दुनिया से दूर ले जाने वाला टूल. वे कुछ देर के लिए कुछ ऐसा बन जाते जैसा वास्तविकता में होना असंभव लगता. सनीमा उन्हें खुद के किरदार से भागने का मौका देता. शायद यही वजह रही होगी कि गांवों में जब कोई लड़का–लड़की भाग जाता तो उसका दोष सनीमा को दिया जाता. पंचायत की ओर से सनीमाहॉल बंद कराने के फरमान सुनाये जाते, लेकिन सनीमा के दीवानों की भी कहां कोई कमी थी. इन फरमानों से टक्कर लेने के लिए सनीमा देखने की शौकीन जमात हमेशा तैयार खड़ी रहती.
बॉम्बे वेलवेट फिल्म वो गाना तो आपको याद ही होगा ‘मोहब्बत बुरी बीमारी, लगी तुझे, तो तेरी जिम्मेदारी’ उसमें मोहब्बत की जगह सनीमा फिट कर लीजिये. अच्छा लगेगा.