‘मैं अपने मां-बाप पर मुकदमा चलाना चाहता हूं’

‘मैं अपने मां-बाप पर मुकदमा चलाना चाहता हूं’

अदालत में जज के सामने हत्या का दोषी एक बच्चा बैठा हुआ है. वह जज से कहता है: मैं अपने मां-बाप पर मुकदमा चलाना चाहता हूं. जज ने बच्चे से पूछा-क्यों? बच्चे ने कहा- अपने जन्म के लिए. जज ने पूछा-कितने साल के हो? बच्चे ने मां-बाप की तरफ इशारा करते हुए कहा-उनसे पूछो.

अरबी भाषा में बनी ‘कपरनियम’ फिल्म का यह दृश्य दुनिया भर में बाल अधिकार को लेकर बड़े सवाल कर जाता है. इस फिल्म का निर्देशन नदीन लबाकी ने किया है और इस फिल्म के सभी मुख्य किरदार वास्तविक दुनिया में भी ऐसे ही थे, जिनके पास पहचान पत्र नहीं था, परमिट नहीं था.

पहचान पत्र की दुनिया में आईडी का न होना. बिना वर्क परमिट के किसी दूसरे देश में काम करना और वहां बच्चे को जन्म देना और फिर उस बच्चे का भी जन्म प्रमाण पत्र न बनना.

इस लेबनानी फिल्म में झुग्गी और गरीब इलाकों में रहने वाले ऐसे लोगों, खास तौर पर बच्चों की कहानी कहने की कोशिश की गई है जिनके पास अपनी पहचान साबित करने के लिए दस्तावेज नहीं हैं, जिन्हें घर से लेकर सड़क तक प्रेम और स्नेह का स्पर्श नहीं मिलता जिनके नाम की जगह गालियों ने ले रखी है जिनके होने या न होने से दुनिया को फर्क नहीं पड़ता है या यूं कह लें कि उनके होने पर लोग यही चाहते हैं कि ये इस धरती पर जिंदा ही क्यों हैं. इस फिल्म के हीरो ‘जेन’ ने बिल्कुल सही कहा है, ‘‘ दुनिया हमे डोरमेट (पायदान) समझती है और उस पर चलकर चली जाती है.’’

फिल्म का एक दृश्य

कहानी कुछ इस तरह बुनी गई है जिसमें गरीबी, पहचान की संकट की वजह से बच्चों का स्कूल न जाना, सीरिया संघर्ष की वजह से वहां के लोगों का पड़ोसी देश में शरण लेना और फिर मकड़ी के जाल की तरफ एजेटों के चक्कर में फंसते जाना. लेबनान में झुग्गी बस्ती में रहनेवाले लोगों की स्थिति,  फिल्म इन सब पर बात करती है, हालांकि फिल्म में नाटकीयता भी है लेकिन कुछ गलतियों या उसके जरिए फिल्म को आगे बढ़ाने की कोशिश को छोड़ दें तो फिल्म अच्छी बनी है.

11 साल की लड़की. माहवारी होने पर न कोई बताने वाला, न कोई समझाने वाला. इतनी छोटी उम्र में गरीबी की वजह से शादी होना या यूं कह लें शादी का शिकार. और फिर गर्भपात होना और आईडी नहीं होने की वजह से अस्पतालों का उसे भर्ती से इनकार करना

इस फिल्म में 12 साल के बच्चे जेन के माध्यम से कहानी कही गई है, जेन किरदार का नाम होने के साथ-साथ उसका असली नाम भी है. जेन वास्तव में सीरिया का रिफ्यूजी है. इस फिल्म के बाद उसे नॉर्वे में रहने की मंजूरी मिल गई. फिल्म को ‘कान फिल्म महोत्सव’ में पुरस्कार से नवाजा गया और यह फिल्म विदेशी भाषा की श्रेणी में ऑस्कर के लिए नामित हुई.

जेन के साथ इस फिल्म में एक साल के बच्चे योनास का जो दृश्य झुग्गी और सड़कों पर फिल्माया गया है, वह संवेदना, हंसी, दुख और प्रेम का मिश्रण है. योनास अश्वेत बच्चा है . जेन जब झूठ बोलता है कि यह छोटा बच्चा उसका भाई है तो सवाल उठता है कि तुम गोरे हो और यह काला है तो वह कह देता है, ‘‘ मैं भी बचपन में ऐसा ही था, धीरे-धीरे गोरा हो गया’ और अपने मन में वह तर्क भी बनाता है कि लोग पूछेंगे तो वह यह कहेगा कि ‘ मां गर्भकाल  के दौरान बहुत कॉफी पीती थी, इसलिए यह काला है’’

फिल्म देखने पर यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि इस छोटी सी बच्ची से इतना सबकुछ निकलवाना कितना मुश्किल रहा होगा यहां एक बात और बता दूं कि वास्तव में योनास का किरदार एक बच्ची ने अदा किया है और  उसका परिवार भी लेबनान में बिना परिमट के रह रहा था.

जेन इस फिल्म में एक व्यक्ति की हत्या कर देता है, उसे जेल की सजा होती है वह जेल से अपने मां-बाप पर मुकदमा कर देता है, अपने जन्म के लिए वह अदालत में कहता है कि उनके मां-बाप को आदेश दिया जाए कि वह अब बच्चे पैदा न करें इस फिल्म को देखते हुए पाकिस्तान की शानदार फिल्म ‘बोल’ की भी याद आती है जिसमें यह संवाद बहुत ही मजबूत है कि जब पाल नहीं सकते तो पैदा क्यों करते हो? लेकिन इस फिल्म में अदालत में जेन की मां का जो कहना है, वह भी हालत-ए-बयां है वह कहती हैं कि किसी को भी उसे जज करने का हक नहीं है, क्योंकि उसने भी बच्चों को बड़ा करने में काफी मेहनत की है जेन जब अपने पिता से जन्म प्रमाण पत्र जैसा कोई कागज मांगता है तो गुस्से में उसके पिता उससे कहते हैं, ‘इस दुनिया के लिए हम लोग पेरासाइट हैं.’

फिल्म में गरीब परिवार में ज्यादा बच्चे होने की समस्या के साथ ही शरणार्थी संकट को बारिकी से उकेर दिया गया है और लोग शरणार्थी संकट को संवेदना के साथ समझ सकते हैं. इस फिल्म को नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है.