विष्णु और सुमेर से बात करते हुए कितनी बार ऐसा कहा गया है कि आदमी कुछ गजब का लिख दे एक बार, कुछ एक एक्ट कर दे, कुछ कह दे, कुछ पेंट कर दे और फिर मर जाए। जीवन में इतना ही काफी है। सब कुछ अंत में अगर ‘एक्ट ऑफ लेटिंग गो’ ही है तो ‘लेट गो’ हो ही जाए। एक के बाद क्यूं बार बार बार याद कायम करते रहें। इरफान को कब मर जाना चाहिए था – हासिल के बाद या नेमसेक के बाद या पान सिंह के बाद या कभी नहीं और टालते रहना था मौत को कुछ एक आध फिल्म और करते करते।
ऐसा क्यूं लग रहा है जैसे कोई घर से उठके चला गया हो। कितना अजीब सा लग रहा है। बार बार खबर पढ़ रहे थे कि इरफान मां के जनाजे में शामिल नहीं हो पाए। महमूद दरवेश की कविता बार बार याद आ रही है कि अपनी मृत्यु के समय मुझे अपनी ज़िन्दगी के काबिल होना होगा, अपनी मां के आंसुओं के काबिल। (इरफान साहब – राज्य सभा टीवी) से एक इंटरव्यू में बात करते हुए इरफान ने कहा था कि मेरी मां कहती थी इसकी आंखें ऐसी हैं जैसे कटोरे उल्टे धर दिए हों। औंधे मुंह धरे कटोरे सी आंखें जो आखिरी बार इंग्लिश मीडियम में देखी थीं वहीं की वहीं टिकी हुई लग रही हैं।
लॉकडाउन जैसे अब शुरू हुआ है और जाने कितना लंबा चलेगा। समझ यह नहीं आ रहा है कि इतना दर्द क्यूं हो रहा है। कल ही जैकी श्रॉफ का एक वीडियो देखा था कह रहे थे कि सब चले जाएंगे और नए लोग आ जाएंगे जीवन में ऐसे ही रहेगा, लेकिन अभी ऐसा लग रहा है जैसे ऐसा नहीं रहेगा कभी भी। चले जाना कितना करीब लग रहा है जैसे यहीं हैं। चले जाना कोई बहुत दूर की बात नहीं है। फिल्मस्टार ही तो था ऐसा क्या हो गया है? 54 कोई कम उम्र भी नहीं पर जाते ही ऐसा लगा जैसे कोई 24 में चला गया हो।
आंखें बड़ी बड़ी साली ऐसे चमकती रहती थी हर फिल्म में। रूहदार की एंट्री कितनी बार और देख लूंगा? कितनी बार लोगों को ज़बरदस्ती बैठा बैठा के घर की सभी लाइटें बंद करके वॉल्युम फुल करके दिखाऊंगा। मकबूल भी तो मर ही गया था। साजन फर्नांडिस को जब पहली बार अपने पिता की बू आई, ऐसा लगता था वह बू खुद को आ रही है। ऐसे कैसे एक्टिंग करता है कोई? केदारनाथ सिंह ने बनारस के लिए लिखा था खाली कटोरों में बसंत का उतरना। इरफान ने पर्दे पर खाली कटोरे जैसी आंखों से कितनी काली रातें बसंती कर दीं।
एक तस्वीर खींचवाई थी इरफान के साथ पीछे पीछे भाग भाग के जयपुर के सेंट्रल जेल में । उसको बार बार देख रहा हूं। खूबसूरत है वो इतना सहा नहीं जाता, कैसे हम खुद को रोक लें कहा नहीं जाता। इरफान पर्दे के पीछे से झांक रहा है। सामने एली हमन का बिकिनी वाला पोस्टर है।
श्रद्धांजलि कहें या याद कहें – आप चाहे जो कह लें. विष्णु के अनन्य मित्र ‘मलय बाबू’ ने इरफान के चले जाने पर बतौर फेसबुक पोस्ट लिखी है. सुमेर और विष्णु रूममेट रहे हैं, इन दिनों मलय और सुमेर फ्लैटमेट हैं. साथ ही लॉकडाउन काट रहे हैं…