क्या है बीएचयू का ‘ताजिया विवाद’ और इस पर क्यों बावेला हो रहा?

क्या है बीएचयू का ‘ताजिया विवाद’ और इस पर क्यों बावेला हो रहा?

देश के प्रतिष्ठित संस्थानों में शुमार किए जाने वाले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एक नया बखेड़ा खड़ा होता दिख रहा है. बीते रोज विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार (सिंह द्वार) से मुहर्रम के मौके पर एक ताजिया निकलता दिखा. यही तस्वीर विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र ने खींचकर अपनी फेसबुक वॉल पर डाल दी और देखते ही देखते वह तस्वीर वायरल होने लगी. सोशल मीडिया पर पक्ष और विपक्ष में प्रतिक्रियाएं देखने को मिलने लगीं. विद्यार्थी परिषद से जुड़े छात्र शाम में धरने पर बैठते देखे गए और ज्ञापन सौंपने के बाद ही वहां से उठे.

ऐसे में सवाल उठते हैं कि क्या विश्वविद्यालय परिसर के भीतर से पहली बार ताजिया जुलूस निकला है? यदि पहली बार निकला है तो क्यों निकला और यदि पहले भी ऐसा होता रहा है तो इस पर बवाल क्योंकर होने लगा? क्या इस बवाल के पीछे असामाजिक तत्वों की कुछ और ही मंशा है? क्या उन्हें विश्वविद्यालय व समाज का सांप्रदायिक सद्भाव रास नहीं आ रहा या कोई और ही बात है?

विश्वविद्यालय के सिंह द्वार से गुजरता हुआ ताजिया (तस्वीर- विकास जी)

यहां हम आपको बताते चलें कि विश्वविद्यालय परिसर के भीतर से ताजिये को गुजारने को लेकर बीते शाम विद्यार्थी परिषद से जुड़े कुछ छात्र धरने पर बैठे थे. उनका कहना है कि ऐसा पहली बार हुआ है और इसकी इजाजत भी नही ली गई थी. उनका यह भी कहना है कि ताजिया जुलूस गुजरने के दौरान धारदार हथियार लहराए गए और साथ ही धार्मिक उन्माद को बढ़ावा देने वाले नारे लगाए गये. उन्होंने आगे कहा कि इस मजहबी जुलूस से विश्वविद्यालय में पठन पाठन का माहौल प्रभावित हो रहा है.

प्रॉक्टोरियल बोर्ड को ज्ञापन सौंपते विद्यार्थी परिषद के सदस्य

इस पूरे मामले को लेकर जब हमने प्रॉक्टोरियल बोर्ड के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने कहा, “विश्वविद्यालय परिसर से ताजिया जुलूस निकालना कोई नई बात नहीं. यह पुरानी परम्परा है. 40-45 सालों से यहां ऐसा होता रहा है. इसकी बकायदा परमिशन ली जाती रही है. यह ताजिया छित्तुपुर के द्वार से परिसर में दाखिल होता है और विधि संकाय व महिला महाविद्यालय के सामने से होते हुए सिंह द्वार से बाहर निकलता है. इस साल भी जब सुबह 10 बजे के आसपास वह ताजिया वहां से बाहर निकलने लगा तो किसी शख्स ने वह तस्वीर सोशल मीडिया पर डाल दी. उसके बाद से ही यह तस्वीर नई परम्परा बताते हुए साझा की जाने लगी.”

इस पूरे मामले पर विश्वविद्यालय छात्र परिषद के पूर्व महासचिव व एनएसयूआई से जुड़ाव रखने वाले विकास सिंह कहते हैं, “यह पहली बार नहीं है. बीएचयू परिसर में परम्परागत रूप से ऐसा होता आया है. पिछले एक दशक से वे इस कैम्पस के छात्र हैं और कई बार उन्होंने खुद ही ऐसा देखा है कि परिसर से ताजिया जुलूस गुजरता है. इस बार कुछ असामाजिक तत्व माहौल बिगाड़ने के उद्देश्य से अफवाह फैला रहे हैं कि यह पहली बार है. इस परिसर की तासीर मिली जुली संस्कृति की है. यहां पर नवरात्र में दुर्गा पूजा पंडाल लगता है, सरस्वती पूजा होती है, कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर झांकियां सजती हैं. हर साल रविदास जयंती पर रैदासी लोग परिसर के अंदर जुलूस भी निकालते हैं.”

बीएचयू छात्र परिषद के पूर्व महासचिव विकास सिंह

इस पूरे मामले पर जब हमने विश्वविद्यालय में बीए द्वितीय वर्ष के छात्र कुशाग्र से प्रतिक्रिया लेनी चाही तो वे हमसे ही पलटकर सवाल करने लगे. वे पूछने लगे कि आखिर इस तरह से किसी भी कार्यक्रम को धर्म विशेष का बता कर उसका विरोध करना कितना जायज़ है? अगर एक धड़ा किसी इवेंट का विरोध करने लगेगा तो फिर सामाजिक सद्भाव तो बिगड़ जाएगा ना?

इन तमाम बातों और धरना प्रदर्शनों के बीच कोई एक चीज जो देखने और गौर करने लायक है वो है विश्वविद्यालय के पूर्व व वर्तमान छात्रों द्वारा इस पूरे मामले में सोशल मीडिया पर दी गई प्रतिक्रियाएं. कई छात्र तो सोशल मीडिया पर गालीगलौज तक करते देखे गए. ऐसे में सवाल उठते हैं कि एक धड़े को भले ही किसी जलसे या जुलूस से आपत्ति हो लेकिन इस तरह की गलीज भाषा का इस्तेमाल करना कहां तक उचित है? कम से कम विश्वविद्यालय में पढ़ने-लिखने वालों से ऐसी भाषा की अपेक्षा तो नहीं ही की जा सकती? महामना उनकी भाषा का स्तर देखकर खुश तो नहीं ही हो रहे होंगे…