फेसबुक भी मजेदार जगह है. बीती रात फेसबुक पर ही एक दोस्त का इनवाइट आया. पेज लाइक करने हेतु. लाइक भी कर दिया. उस पेज पर जाकर दो-चार वीडियोज़ भी देख लिए. उस पेज के शुरुआती वीडियोज में मेट्रो शहरों की चार संभ्रांत लड़कियां दिखीं. अपने बैंड बनाने की कहानी सुनाती हुई. किन्हीं ठीकठाक से स्टूडियो के भीतर. गिटार और भारी-भरकम वाद्य यंत्रों के साथ. कल देश के हरदीमोड़ गांव में भी चार महिलाओं से भेंट हुई थी…
कहना न होगा कि देश इन दिनों चुनाव का मौसम है. हमारे देश में चुनाव भी किसी मौसम की तरह आते हैं. एक खुमारी सी सबपर तारी हो जाती है. हम पर भी तो है. हम भी उस खुमार में नौकरी छोड़कर गांव-गांव भटक रहे हैं कि कुछ ऐसा मिल जाए कि पूरी दुनिया को दिखाया जा सके. देखो भैया, ये भी बिहार है. जहां चारों तरफ बहार है. मीडिया वाले आपको कुछ और ही दिखाते रहते हैं.
बिहार भी निराश नहीं करता. बिहार ठीक वैसा ही है जैसा हमारे दादे-परदादे छोड़ गए हैं. पटवन और पीने के पानी के लिए अनवरत जूझता हुआ. खुले में शौच करता हुआ. बहरहाल, आप सोच रहे होंगे कि मैं ये क्या फिर से वही घिसी-पिटी कहानी सुनाने लगा. कुछ अच्छा क्यों नहीं सुनाता?
तो बात ऐसी है कि बीते रोज हमारी टीम बिहार के अति पिछड़े जिलों में शुमार जमुई आ पहुंची है. वहां हमें राह चलते एक गांव का बोर्ड दिखा. उस बोर्ड पर लिखा था ‘मशरूम ग्राम’. जी, आप ठीक पढ़ रहे हैं. हमें भी सुखद आश्चर्य हुआ कि ऐसा कैसे? उस गांव में दाखिल होने पर सुखद आश्चर्य और भी बढ़ता गया.
इस गांव में हमारे सुखद आश्चर्य की विस्तारक महिलाएं हैं. यहां महिलाएं ही मशरूम की खेतिहर भी हैं और मालिक भी. ये जमुई जिले का ‘हरदीमोह’ गांव है. जमुई डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर से कोई 25-30 किलोमीटर की दूरी पर. मुख्य सड़क से सटा हुआ. सोनो ब्लॉक के अंतर्गत आने वाला एक गांव. कहते हैं कि सोनो मे कभी सोना मिला था. इसी वजह से इसका नाम सोनो हो गया.
हरदीमोह गांव में घुसने पर पता चलता है कि यहां लगभग सारे घरों में मशरूम की खेती हो रही है. खपरैल के घरों में छान से लटके हुए मशरूम के पैकेट्स इस बात की तस्दीक करते हैं. हालांकि अब इस गांव में नए मकान भी बन रहे हैं. जहां पक्के मकानों में वातानुकूलन भी होगा.
इस गांव में मशरूम की खेती करने के आइडिया पर काम करने वाली रिंकी कुमारी हमसे बातचीत में कहती हैं कि, उन्होंने इस काम को साल 2011-12 से शुरू किया. उन्हें इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था. वह और गांव की महिलाएं ‘आत्मा’ से जुड़ीं. वहां उसकी ट्रेनिंग मिली. शुरुआत में लोग मजाक भी उड़ाते थे कि क्या सीखकर आईं हैं. क्या कर रही हैं, मगर आज इसकी बिक्री कुछ इस कदर बढ़ गई है कि वे जनता का डिमांड नहीं पूरा कर पातीं.
हरदीमोह की ही दूसरी महिला खेतिहर कहती हैं, “आत्मा से जुड़कर उन्हें खासा फायदा मिला. मजिस्ट्रेट उनके इस काम के उद्घाटन में शामिल हुए. उनका हौसला बढ़ा. आज यही उनकी रोजी-रोटी है और वो इसी से होने वाली कमाई से अपने बच्चों को स्कूल व ट्यूशन पढ़ा रही हैं. अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए अब महिलाएं किसी के सामने हाथ नहीं पसारतीं”.
हमारी टीम के बुजुर्ग सदस्य व हमारे अभिभावक गालिब चचा उन महिलाओं से जाते-जाते पूछ लेते हैं कि, ‘क्या आप सभी इससे होने वाली कमाई अपने पास रखती हैं या पुरुष ले लेते हैं, तो रिंकी कुमारी और उनकी साथी महिलाएं मुस्कुराकर कहती हैं कि बिल्कुल साहब- हम पैसा अपने ही दाब में रखते हैं.
हम भी वहां से मुस्कुराते हुए निकल जाते हैं…