कानपुर का शाहीन बाग: ‘महिलाएं फ्यूचर पैदा कर रही हैं मुल्क का, हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है ये’

कानपुर का शाहीन बाग: ‘महिलाएं फ्यूचर पैदा कर रही हैं मुल्क का, हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है ये’

दिल्ली के शाहीन बाग की तरह कानपुर में भी महिलाएं बड़ी संख्या में बीते दो हफ्ते से सीएए और एनआरसी का विरोध कर रही हैं.

देश के अलग-अलग हिस्सों में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इनमें से दिल्ली स्थित शाहीन बाग प्रमुख हैं. जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पास स्थित इस जगह पर डेढ़ महीने से अधिक वक्त से प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. इनमें से अधिकांश महिलाएं हैं. वहीं, शाहीन बाग के अलावा कानपुर, इलाहाबाद, लखनऊ और पटना सहित अन्य शहरों में महिलाएं इस कानून के खिलाफ इकट्ठी होकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रही हैं. वहीं, सीएए के समर्थन में भी शीर्ष भाजपा नेताओं की जनसभाएं हो रही हैं.

बीती 22 जनवरी को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ कानपुर में एक जनसभा को संबोधित किया था. इसमें उन्होंने महिलाओं के विरोध प्रदर्शन को लेकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था, ‘पुरुष घरों में रजाई में सो रहे हैं और महिलाएं धरने पर बैठी हुई हैं. महिलाएं कहती हैं कि पुरुषों का कहना है कि अब हम अक्षम हो गये हैं, आप धरने पर बैठो जाकर.’

उधर, कानपुर स्थित मोहम्मद अली पार्क में बीती छह जनवरी से ही महिलाएं हर शाम इकट्ठी हो रही हैं. और करीब 11 बजे रात तक अपना विरोध जाहिर कर रही हैं.

इस प्रदर्शन को लेकर बुनियादी जरूरतों को देखने वाले व्यवस्थापकों का कहना है कि इसमें सभी धर्मों और जातियों की महिलाएं शामिल हो रही हैं. इनमें एक आरिफ खान कहते हैं, ‘तीन तलाक को लेकर मुस्लिम औरतें बाहर नहीं निकलीं. लेकिन जब हमारे संविधान पर बात बन आईं तो वे खुद घरों से निकलकर सामने आईं. वे अपने संविधान की लड़ाई लड़ रही हैं और संविधान की लड़ाई केवल अकेले मुसलमानों की तो नहीं है.’

‘महिलाएं अपनी जिम्मेदारी का एहसास कर रही हैं. ये मुल्क हमारा है.’ ओल्ड ब्वॉयज एसोसिएशन कानपुर-एएमयू की अध्यक्षा तब्बसुम आलम हमसे कहती हैं. लेकिन, जब हमने उनसे सवाल किया कि इससे पहले मुस्लिम महिलाओं को सरकार के खिलाफ किसी विरोध प्रदर्शन में इतनी बड़ी संख्या में हिस्सेदारी लेते हुए कम ही देखा गया है. साथ ही, इनको लेकर एक धारणा है कि ये कमजोर हैं और अपने घरों से भी बाहर कम ही निकलती हैं, तो तब्बसुम कहती हैं, ‘अंदर से मुस्लिम महिलाएं न तो कमजोर थीं और न रहेंगी. यहां तक की किसी भी धर्म की औरत कमजोर नहीं हैं. वह फ्यूचर (भविष्य) पैदा कर रही हैं, मुल्क का. हमारे बच्चों के भविष्य का सवाल है ये.’

वहीं, आने वाले दिनों को लेकर वे नागरिकता के अलावा कई और तरह की डर की भी बात कहती हैं. तब्बसुम आलम का कहना है, ‘अभी से हम इतने डरे हुए हैं कि हमारे कारोबार में दिक्कत है. हमारे पास नौकर नहीं है. सरकार देश की आबादी कम करने की बात करती है, लेकिन यहां तो बाहर के लोगों को नागरिकता देने की बात कही जा रही है.’ वे आगे कहती हैं, ‘पहले से जो नागरिक हैं, उनके लिए सोचा जाए. पहले हम अपने बच्चों के लिए सोचते हैं, फिर गैर के बच्चों के लिए.’

तब्बसुम आलम

हालांकि, आरिफ खान का कहना है कि वे सीएएस का स्वागत करते हैं. लेकिन, सरकारी की नीति और नीयत को लेकर उनकी बड़ी आपत्ति भी हैं. वे कहते हैं, ‘बापूजी (महात्मा गांधी) ने भी कहा था कि हमारे लोग जो बिछड़ गये हैं. वे जब भी आना चाहे, उनका स्वागत है. लेकिन आप (सरकार) कुछ मजहबों का नाम लेते हो और मुसलमानों को छोड़ देते हो.

वहीं, आरिफ सहित अन्य प्रदर्शनकारियों का साफ कहना है कि अर्थव्यवस्था की खराब होती स्थिति के बीच सरकार के पास कोई मुद्दा नहीं है, इसलिए सरकार इस कानून को लागू की है. आरिफ खान कहते हैं, ‘सरकार के पास कोई मुद्दा नहीं है. मस्जिद (बाबरी) का मुद्दा आया, वह भी खत्म हो गया. अब सरकार सोच रही है कि क्या करें.चलो अब पब्लिक को डायवर्ट (बुनियादी मुद्दों से) करो.’

इसके अलावा हमने जिन प्रदर्शनकारियों से भी इस मामले पर बात की, उनकी बातों के केंद्र में संविधान जरूर शामिल रहा है. कानपुर स्थित सामाजिक कार्यकर्ता मुजीब इकराम कहते हैं, ‘इस मामले में सबसे बड़ी बात है कि संविधान की मूल भावना के साथ खिलवाड़ किया गया है. ये कानून बनाकर बंटवारा (हिंदुओं और मुसलमानों के बीच) करने की कोशिश की है. लेकिन इसके खिलाफ हिंदुओं के बुद्धिजीवी वर्ग ने भी आवाज उठाई है. जो भी हक, इंसाफ और संविधान की बात करता है, उसे आप (भाजपा) सीधे मुल्ला घोषित कर देते हैं.’

वहीं, नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जिस तरह मुसलमानों के साथ हिंदू सहित अन्य समुदायों के लोग साथ आए हैं, उसे लेकर मुजीब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह का शुक्रिया अदा भी करते हैं. वे कहते हैं, ‘मैं एहसानमंद हूं इनका कि इन्होंने इतनी नफरत फैलाने की कोशिश की कि पुरानी बातों को भूलकर मंदिर-मस्जिद को भूलकर हिंदू-मुसलमान एक हो रहे हैं. ये आने वाले वक्त में इतिहास बनकर रह जाएंगे. इनका नाम काले अक्षरों में लिखा जाएगा.’

मुजीब इकराम

उधर, सीएए पर समर्थन के लिए आयोजित अभियानों और जनसभाओं का असर भी स्थानीय लोगों पर होता हुआ नहीं दिखता है. अपना विरोध जाहिर करने मोहम्मद अली पार्क पहुंची फातिमा कहती हैं, ‘सरकार अपनी बातों से पलट जाती हैं. वह एक बयान में कुछ और बोलती है, दूसरे में कुछ और. जब हिंदू और मुसलमानों के बीच आपस में कोई शिकवा शिकायत नहीं है तो सरकार जबरदस्ती के पंगेबाजी क्यों कर रही हैं.’

हालांकि, सीएए और एनआरसी को लेकर जब हम उनसे पूछते हैं कि इन्हें वे किस तरह देखती हैं तो फातिमा आवेश में आकर कहती हैं, ‘मुसलमानों की ताकत बहुत पावरफुल है, वह (सरकार) क्या समझ रही है!’ हालांकि, उनके साथ खड़ी एक अन्य महिला उनकी बातों में सुधार करती हुई कहती हैं, ‘हिंदू-मुसलमान सब एक हैं. हम सब बहुत ज्यादा पावरफुल रहेंगे.’ वहीं, फातिमा आगे दावा करती हैं कि सरकार को अपने इस कानून को वापस लेना पड़ेगा. वे कहती हैं, ‘हमारे पूर्वज यहीं रहे हैं. इसी मिट्टी में दफन हुए हैं. हम कैसे छोड़कर चले जाएंगे. हम यहीं रहेंगे.’

लेकिन, केंद्र सरकार इस कानून को भारी विरोध प्रदर्शन के बाद भी लागू कर चुकी है. साथ ही, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि वे इससे पीछे नहीं हटेंगे. फिर उन्हें कैसे भरोसा हो रहा है कि इस कानून को वापस लिया जाएगा. इस सवाल के जवाब में इनामुल नश्तर कहते हैं, ‘हमें न्यायपालिका पर पूरा भरोसा है. हमने अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मंजूर किया. हमने कहा कि हम माहौल खराब करना नहीं चाहते हैं.’ इनामुल को विश्वास है कि अदालत उनकी बातों पर जरूर ध्यान देगा.

इनामुल नश्तर

वहीं, तब्बसुम आलम को अब भी सरकार से उम्मीद दिखती है. वे कहती हैं, ‘सरकार का इस मामले पर रुख साफ होने के बाद भी हमें सरकार से ही उम्मीद है. सरकार को चाहिए कि वह हमारी बात समझें, समाज को साथ लेकर चलें और सबके साथ बराबरी का व्यवहार करें. हम आपस में एक भाईचारा बनाकर साथ चलना चाहते हैं.’ तब्बसुम सहित अन्य प्रदर्शनकारियों का कहना था कि जब तक सरकार इस असंवैधानिक कानून को वापस नहीं लेती है, तब तक उनका ये आंदोलन जारी रहेगा.

द बिहार मेल के लिए ये ग्राउंड रिपोर्ट हेमंत कुमार पाण्डेय ने लिखी है. हेमंत स्वतंत्र पत्रकार और लेखक हैं.