दिल्ली दिल वालों की है. बिना दिल वालों की भी है. क्या गरीब, क्या अमीर हर किसी के सपनों को एक नया पंख देती है दिल्ली. वो पंख अगर कहीं टूट के बिखरते हैं तो उन्हें फिर से जिंदा करने की भी उम्मीद देती है. उन्हीं उम्मीदों को जिंदा रखने के लिए दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की राजधानी में देश भर से हजारों वृद्ध इक्कठा हुए थे. स्थान था जंतर मंतर. वही जंतर मंतर जो हर संघर्ष की आवाज़ को एक मंच देता है. आज उस मंच पर अपना सारा जीवन वंचितों को उनका हक दिलाने के लिए लड़ने वाले अरुणा रॉय, निखिल डे, और हर्ष मंदर जैसे सामाजिक कार्यकर्ता हैं. मंच पर लगे पोस्टर बताते हैं कि मांग वृद्धा और विधवा पेंशन को लेकर है. मंच से खड़े होकर देखने पर आपको चारों तरफ लघु भारत की तस्वीर दिखाई देगी.
कोई राजस्थान के अलवर जिले से पहुंचा है तो कोई तामिलनाडु के उद्दुप्पी जिले के एक गांव से अपनी मांगों को लेकर आया है. दावा तो बाईस राज्यों से लोगों के आने का किया गया है. लाल झंडा और उन पर किसी पार्टी के चिन्ह/नाम की जगह ध्यान खींचने वाले स्लोगन है. ‘ हर हाथ को काम दो, काम को पूरा दाम दो, बुढ़ापे में पेंशन, आराम और सम्मान दो ‘ क्या है हालिया स्थिति जब मैं वहां पहुंचा तो माइक से आवाज़ आ रही थी , ‘ हमने महीने का कितना मांगा ‘ सामने से आवाज़ आती , ” तीन हज़ार, तीन हज़ार, तीन हज़ार.”

देश के विभिन्न राज्यों से आए लोगों की यही मांग है कि उनका पेंशन हो तीन हज़ार. वर्तमान समय में केंद्र सरकार और राज्य सरकार मिलकर वृद्धावस्था पेंशन योजना चलाती हैं. जिसमें केंद्र की ओर से राष्ट्रीय समाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत देश के वृद्ध लोगों को पेंशन दी जाती है. उसमें केंद्र सरकार द्वारा हर महीने केवल 200 रूपए मिलते हैं. जंतर मंतर पर इकट्ठा हुए इन लोगों की मांग है कि केंद्र सरकार द्वारा हर महीने दी जाने वाली इस राशि को बढ़ाया जाए. छत्तीसगढ़ के मावली श्रृंगारपुर से आए राम लाल बताते है कि हमें हर महीने केवल साढ़े तीन सौ रुपए पेंशन मिलते हैं. जबकि दिल्ली में अरविंद की सरकार दो हजार रुपया देती है. हमारे साथ सौतेला व्यवहार क्यों? यह पूछने पर कि क्या आपके बच्चे आपकी देखभाल नहीं करते? वो आगे बताते हैं कि “घर में हमारे पांच और सदस्य है. सब मजदूरी करते हैं. उनके भी खर्चे बढ़ गए हैं. कभी मन किया तो दे दिया. कभी नहीं दिया. “. रामलाल के चेहरे पर आए लाचारी के भाव बताते है कि देश के वृद्धों के साथ केंद्र सरकार किस तरह का मज़ाक कर रही है.
वहीं बिहार के सहरसा से आई मालती देवी अपना पेट दिखती हुई कह रही, देखो बच्चा यहां घाव है. इसका दवा चल रहा. हमें कोई पेंशन नहीं मिलता है. हमारे पास कागज़ पत्तर कुल है. फिर भी काहे नहीं मिलता. क्या आप अपने यहां सरकारी दफ्तर गई है पेंशन मांगने. ‘ अरे कै बेरी चक्कर लगाया है. दफ्तर वाला कहता है यहां एत्ता पइसा दो. अब कहां से लाए पइसा.’ महिलाओं से बात करने पर उनकी और भी दिक्कतें जैसे विधवा पेंशन का न मिलना, राशन पानी की समस्या भी पता चलती है. लोग नोटबन्दी से आई दिक्कतों को भी बताना नहीं भूल रहें. यह दो दिवसीय प्रदर्शन हेल्पेज इंडिया और पेंशन परिषद द्वारा आयोजित किया जा रहा है.

पेंशन परिषद से जुड़े और पिछले तीस सालों से इसी तरह के मुद्दों पर कार्य कर रहें समाजिक कार्यकर्ता निखिल डे बताते हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में यह चार सौ रुपए महीना है. जो कि 14 रुपए प्रतिदिन हुआ. इतने पैसे से क्या कोई गरीब, मजदूर, किसान अपना जीवन यापन कर पाएगा? लोगों का कार्यक्रम में उत्साह बढ़ाने के लिए नुक्कड़ नाटक का आयोजन किया जा रहा है. बीच बीच में लोग एक झुंड बनाकर अपने राज्य का एकल गीत गाकर अपनी मांगों पर अड़े हैं. इस आयोजन में आए ज्यादातर लोग ग्रामीण पृष्ठभूमि से हैं. वो अपने साथ अपनी संस्कृति भी लाए हैं. लोगों की भाषा कोई भी हो. राज्य भले अलग हो. लेकिन मांग एक ही है. ‘ पेंशन हो तीन हज़ार ‘ . लेकिन तीन हज़ार ही क्यों?? इस सवाल का जवाब देते हुए सेवानिवृत्त आई ए एस अधिकारी और सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर कहते हैं कि , ‘ जब हम सर्विस से रिटायर होते है तो हमें हमारी आधी सैलरी पेंशन के रूप में मिलती है. यहां एक तरह से अलग अलग राज्यों के न्यूनतम वेतन का एवरेज लिया गया है.’ कितना सफल होगा यह आंदोलन जब हमनें हर्ष मंदर से इस आंदोलन की उम्मीदों के बारे में पूछा तो वो बताते है, ‘ हमारी यह मांग पिछली सरकार से ही चली आ रही है. लेकिन सैद्धांतिक रूप से सहमति के बाद भी उन्होंने इसे पूरा नहीं किया. अब चूंकि कुछ महीनों बाद ही देश में आम चुनाव है और विभिन्न राजनीतिक दल आगे बढ़ रहे हैं तो हम फिर से अपनी मांगों को लेकर खड़े हैं.’

आंदोलन के दूसरे दिन विभिन्न राजनीतिक दलों को भी मंच पर आमंत्रित किया गया. जिसमें केंद्र में बैठी बीजेपी भी शामिल है. दूसरे दिन विपक्ष में बैठे कई दलों के नेताओं ने आगे आकर लोगों का हौसला बढ़ाया. सीपीएम से सीताराम येचुरी पहुंचे तो कांग्रेस से मधुसूदन मिस्त्री ने भी आकर लोगों को साथ खड़े होने का भरोसा दिलाया. नेताओं को अपने सामने मंच पर देखकर लोगों के चेहरे पर एक उम्मीद का भाव भी आता. लेकिन जिनके (बीजेपी) यहां आने से लोगों का भरोसा सबसे ज्यादा बढ़ता उनमें से यहां कोई नज़र नहीं आया. निखिल डे से पूछने पर कि कितना अंतर है दोनों सरकारों में वो बताते कि, हमारी यह मांग 2007 से चल रही है. कांग्रेस के समय में तो कम से कम हमारी बातें सुनी तो जाती थी. इस सरकार में सत्ता पर बैठे लोग तो सुनना ही नहीं चाहते हैं. उन्हें इससे मतलब ही नहीं है. अब ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि कुछ महीनों में ही होने वाले लोकसभा चुनाव के पहले क्या केंद्र सरकार को देश के इन वृद्धों की पुकार सुनाई देती है. संसद मार्ग से पिछले दो दिन से लग रहे जोरदार नारों की गूंज संसद में बैठे देश के नुमाइंदों के कानों तक कितनी पहुंचती है, यह आने वाला वक्त ही बताएगा.
यह रिपोर्ट हमें शुभम सिंह ने भेजी है. वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय और भारतीय जन संचार संस्थान के पूर्व छात्र हैं और आजकल स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं…
1 Comment
Vikas Chaudhary October 2, 2018 at 2:38 pm
Uh have represented their demands nicely….
Government is by the people but wheather it is for the people , of the people ???
That is the question marks of now a days