जामिया मिलिया इस्लामिया में CAA विरोध प्रदर्शन का आंखों देखा हाल

जामिया मिलिया इस्लामिया में CAA विरोध प्रदर्शन का आंखों देखा हाल

दिल्ली आने के बाद से ही जामिया जाने का मन था लेकिन किसी न किसी वजह से नहीं जा पाई. आखिर में जाना हो ही गया. वह भी तब जब पत्थरबाजी हो चुकी थी और आंसू गैस के गोले दागे जा चुके थे. प्रोटेस्ट का नया अपडेट यही था. सोचा, चलो समय आ गया है जामिया की तरफ जाने का. जब विश्वविद्यालय के दरवाजे पर पहुंची तो दर्जनों छात्र उसकी दीवारों पर चढ़े हुए थे, कुछ छात्र जोर-जोर से चिल्ला भी रहे थे कि प्रोक्टर ने जब दरवाजा बंद कर दिया है तो हम तोड़कर भी दिखा देते हैं. ऐसी गहमा-गहमी के बीच ही किसी चैनल का कैमरा दिखा और छात्र चिल्ला पड़े कि विश्वविद्यालय के भीतर कोई कैमरा नहीं आने दिया जाएगा और हो-हल्ला शुरू हो गया. दरवाजे से थोड़ी ही दूर कैंटीन के पास भी छात्रों का एक समूह नारेबाजी कर रहा था. इस नारेबाजी के बीच-बीच में भाषण भी हो रहा था और बताया जा रहा था कि जामिया की तहजीब क्या है और कैसे तहजीब के अंदर ही नारे लगाने हैं. फिर बात होने लगी पार्टिशन की. भारत और पाकिस्तान की. किसने कहां रहना चुना और किसने किसको कहां-कहां धोखा दिया.

भीड़ में ही कोई किसी को एनआरसी और कैब को साथ मिलाकर समझाने की कोशिश कर रहा है. कोई कह रहा है कि डिटेंशन कैंप बनने शुरू हो गए हैं तो कोई कह रहा है कि ऐसे कैसे किसी को डिंटेशन कैंप में भेज दिया जाएगा? डिटेंशन कैंप की कहानियां सबने हिटलर वाली ही सुनी है और यह नाम सुनते ही सबका ध्यान वहीं जाता है. भारत में डिंटेशन कैंप क्यों? इंकलाब…जिंदाबाद का नारा लगता है और फिर एक सभा खत्म हो जाती है. लड़के-लड़कियां चाय पीने लग जाते हैं.

एक लड़की: इन्हें लगता है कि हिंदोस्तान हमारा नहीं है तो हम इनको अब बताएंगे कि दरअसल हिंदोस्तान इनके जैसे लोगों का नहीं है. मैं लेकर आऊंगी न तिरंगा और यह प्रोटेस्ट के साथ-साथ चलेगा

Protest in JMI against CAA

फिर एक ओर से छोटा सा समूह ‘दस्तूर बचाने निकले हैं…आओ हमारे साथ चलो’ के नारे के साथ आगे बढ़ता है. इसी बीच अब छात्र इस ओर भी योजना बनाने लगे हैं कि ‘ फोर्स्ड विंटर वेकेशन’  का क्या किया जाए…इसी दौरान बात होने लगती है पत्थरबाजी की. इस पर किसी का कहना था कि जुमे की नमाज के बाद सब गर्माए थे तो उन्होंने पत्थरबाजी कर दी. किसी का कहना था कि पुलिस को इतना भी नहीं मारना चाहिए था कि किसी की जान पर आ जाए और वह अपनी जान बचाने के लिए कुछ भी करने लगे. किसी का कहना था कि पुलिस को यह बात समझ में क्यों नहीं आ रही कि यह हमारे लिए जीने और मरने की लड़ाई है. वहीं कुछ का कहना है कि पत्थर फेंकने वाले स्टूडेंट्स थे ही नहीं. वे बाहर के थे.

फिर नारे लगाने वालों की एक टोली आती है जिसमें कैब और एनआरसी का जनाजा निकाला जाता है और नारे लग रहे हैं, ‘जो हिटलर की चाल चलेगा, वह हिटलर की मौत मरेगा’. मैं सोचने लगती हू कि हिटलर भी क्या आदमी था, क्या करके गया इतनी नफरत…फिर याद आता है कि हिटलर को भी सही ठहराने वाले लोग बहुत हैं. दुनिया में सभी लोग अपना नायक और खलनायक खोज लेते हैं. इसी बीच कहीं से कोई छात्र जोर-जोर से बोल रहा है कि जामिया के इस विरोध प्रदर्शन में हम सब नेता हैं और सबसे ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है इन मुखबिरों से… ‘कौम के मुखबिरों से सावधान…’

फिर एक महिला भाषण देती हैं और कहती हैं कि यह टुकड़े-टुकड़े में क्यों बैठ गए हो सब. एक साथ गेट पर चलो. फिर उनके पास जाकर कोई कहता है कि ‘टुकड़े-टुकड़े’ सही शब्द नहीं है. फिर वह हंसती हैं और कहती हैं कि ठीक है. छोटी-छोटी टोलियां सब साथ में आ जाओ और गेट पर चलो. स्टूडेंट्स का समूह गेट की तरफ जमा है. गेट पर सबसे ज्यादा भीड़ है. ऐसा लगता है कि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है.  गेट के बाह सड़क पर भी स्टूडेंट्स बैठे हुए हैं. एक एंबुलेंस के लिए आधी भीड़ हटती है और फिर कोई भीड़ में से ही कह रहा होता है कि एंबुलेंस के लिए जगह खाली रखनी चाहिए.

अक्सर ऐसी बातें सुनने को मिलती है कि विरोध करना बहुत आसान है. मेरा मानना है कि इस तरह से बड़ी संख्या में विरोध करना बहुत मुश्किल है. एक कोई गलत कदम उठा नहीं कि पूरी बात ही किसी और दिशा में मुड़ेगी. विश्वविद्यालय के बाहर बहुत ज्यादा संख्या में लोग बाहर से भी हैं. इनमें से एक ने बातचीत के दौरान कहा कि मुझे समझ में नहीं आता कि अगर पुलिस लाठियां बरसाएगी तो छात्र क्या करेंगे? फिर बातचीत हिंसा और अहिंसा के रास्तों पर होने लगती हैं, उधर भाषणों और नारेबाजी का दौर जारी है. छात्रों में से एक फुरकान का कहना है, ‘‘हिंसा कौन चाहता है…कोई नहीं…लेकिन बात तो हमारी सुनी जाए’’. इसी दौरान कोई हाथ में पानी का पैकेट थमा जाता है…पहली बार किसी प्रोटेस्ट में पानी मिला है मुझे. बातचीत होने लगती है और फिर उस भीड़ को देखते हुए याद आता है ‘जोकर’ फिल्म का डायलॉग

“Is it just me or is it getting crazier out there?

मैं कह उठती हूं खुद से कि पूरी दुनिया ही अभी पगलाई है. 

नोटयह ब्लॉग स्नेहा ने लिखा है। वह पेशे से पत्रकार हैं।