अधौरा- बिहार का एक ‘अभागा’ प्रखंड जो खुद पर लिखी इस स्टोरी को ही नहीं पढ़ पाएगा…

अधौरा- बिहार का एक ‘अभागा’ प्रखंड जो खुद पर लिखी इस स्टोरी को ही नहीं पढ़ पाएगा…

मरहूम अभिनेता इरफान खान ने ‘जज़्बा’ फिल्म में एक डायलॉग बोला था. उस डायलॉग पर सिनेमा हॉल में काफी तालियां बजी थीं. रिश्तों में भरोसा और मोबाइल में नेटवर्क न हो तो लोग गेम खेलने लगते हैं. अब जो आप सोच रहे होंगे कि हम सीधे-सीधे बात करने के बजाय ये क्या फिल्म के डायलॉग सुनाने लगे तो बात दरअसल ऐसी है कि बिहार के 534 प्रखंडों में से एक है अधौरा. अभागा अधौरा – कैमूर जिले का एक आदिवासी बहुल प्रखंड. यहां लोगों के बीच रिश्ते में भरोसा भले ही भरपूर हो लेकिन मोबाइलों में नेटवर्क तो बस खोजते रह जाइएगा. वो भी ऐसे समय में जब बात 2G, 3G, और 4G से बढ़कर 5G तक जा पहुंची है. ठीक उसी दौर में हमारे देश में सैकड़ों गांवों, 11 ग्रामपंचायतों वाला एक प्रखंड (अधौरा) भी है. जहां नेटवर्क और डेटा के बारे में बात करना किसी दूसरी दुनिया की बात लगती है…

कि ‘बिहार जन संवाद’ का सहभागी नहीं बन सका अभागा अधौरा…

बिहार के 534 प्रखंडों में से एक अधौरा प्रखंड को अभागा इसलिए भी कह सकते हैं क्योंकि इस बीच जब देश के गृह मंत्री ‘बिहार जन संवाद’ कर रहे हैं. डिजीटल रैलियों के जरिए अपने काडर और प्रदेशवासियों से संवाद कर रहे हैं. तमाम पार्टियां ऐसा करने की कोशिश में हैं. कोरोना और लॉकडाउन के बीच ऑनलाइन पढ़ाई और क्लासेस चल रही हैं. ठीक उसी समय में अधौरा प्रखंड के अलग-अलग गांवों में रहने वाले 1 लाख से अधिक लोग बेसिक मोबाइल नेटवर्क के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं. यहां व्हाट्सएप मैसेज पढ़ लेना और तस्वीरें देख पाना किसी प्रिवलेज सरीखा लगता है. यहां हम आपको यह भी बताते चलें कि कैमूर जिले का अधौरा प्रखंड आदिवासी बहुल इलाका है. चेरो, खरवार, गोंड, उरांव और कोरबा जैसी जनजातियां अधौरा प्रखंड के अलग-अलग गांवों में रहती हैं. प्रखंड में कुल 11 ग्राम पंचायत हैं. समय बीतने के साथ ही दूसरी जातियां भी यहां पहुंच रही हैं लेकिन आदिवासी ही इस इलाके के मूलनिवासी हैं.

कि देश की पहली डिजीटल रैली से वंचित ही रहा अधौरा

अधौरा छूट जाएगा तो कैसे डिजीटल होगा इंडिया?

अब इस बात से तो शायद ही कोई नावाकिफ हो कि देश में इस बीच पहली डिजीटल रैली हुई. देश के गृह मंत्री ने ‘बिहार जन संवाद’ किया, और हमारी बातचीत के बीच में ही भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता राणा प्रताप सिंह मिल गए. डिजीटल रैली और संवाद के सवाल पर वे कहते हैं, ‘देखिए मोदी जी देश में काम कर रहे हैं लेकिन डिजीटल इंडिया की बात अधौरा में फेल है. अधौरा में कोई डिजीटल नहीं है. न हम मोदी जी से जुड़ पाते हैं और न ही माननीय सीएम से और न किसी से. यह स्पष्ट बात है.’ संबंधित विधानसभा और लोकसभा के भीतर भाजपा के प्रतिनिधि होने के लिहाज से जब हमने उनसे सवाल किए तो वे सांसद छेदी पासवान से मौखिक और लिखित इस बात को कहने की बात कहते हैं, और विधायक सह मंत्री के लिए कहते हैं कि मंत्री जी का विभाग जरा अलग है. हालांकि उन्हें फिर भी ध्यान तो देना ही जाहिए. वे ईमानदारी से इस बात को भी स्वीकारते हैं कि यहां बीएसएनएल का एक टावर काम करता है और डिजीटल इंडिया के तहत 6 टावर सेंक्शन हैं लेकिन यदि वे जनता के हित में और सच बात बोलें तो चलते टावर कभी भी बंद हो सकते हैं.’

भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता राणा प्रताप सिंह

नेटवर्क के लिए बिहार से उत्तरप्रदेश की सीमा में आते-जाते हैं लोग

यहां के मुख्य बाजार के भीतर बातचीत के क्रम में हमें यह बात अचंभा तो नहीं लगी लेकिन शायद आपको हो कि यहां के लोग नेटवर्क की तलाश में या तो पेट्रोल जला रहे हैं या दसियों किलोमीटर पैदल चल रहे हैं. डेटा के इस्तेमाल के लिए तो लोग बिहार से उत्तरप्रदेश चले जाते हैं. यूपी ही कई बार इनका सहारा बनता है. यहां के स्थानीय रिपोर्टर अमर यादव कहते हैं, ”देखिए यहां से काम करना बड़ी मुश्किल सी चीज है. मेरा परिवार डिस्ट्रिक्ट हेडक्वार्टर (भभुआ) में रहता है. मैं लगभग रोज यहां आता-जाता हूं. खबर को लिखने और तस्वीरें भेजने के लिए रोजाना 100 किलोमीटर से अधिक की यात्राएं करता हूं.” मेरे इस सवाल पर कि जिस दिन वे लौट नहीं पाते तब क्या करते हैं तो वे कहते हैं, ‘उत्तर प्रदेश चले जाते हैं. (सटा सीमाई इलाका) और वहां से जियो के नेटवर्क से भेजते हैं.” मुझे केदारनाथ सिंह के कविता की पंक्तियां सहसा याद आती हैं – आखिर खबर तो भेजनी ही होगी, क्या करे संवाददाता?

बीच में पत्रकार अमर यादव और सड़की ग्रामपंचायत के मुखिया लक्ष्मी सिंह खरवार के साथ द बिहार मेल के रिपोर्टर विष्णु नारायण

मोबाइल में नेटवर्क आना सौभाग्य की बात

नेटवर्क और डेटा के सवाल पर हमसे बातचीत में अधौरा प्रखंड के प्राथमिक शिक्षक हरेन्द्र यादव कहते हैं, “देखिए मेरे पास कोई स्मार्ट फोन नहीं. उसका यहां कोई मतलब भी नहीं. बीएसएनएल का नेटवर्क भी भगवान भरोसे आता है. विशेष जरूरत पर किसी से बात हो जाना सौभाग्य की बात है, जबकि इस वक्त मैं प्रखंड कार्यालय और बाजार के बीचोबीच हूं.” – नेटवर्क और डेटा का आलम कुछ ऐसा है कि घाटी चढ़ते ही (हनुमान घाटी – अधौरा जाने के लिए पहली चढ़ाई) हमारे तमाम साथियों का मोबाइल या तो टाइम देखने के काम आ रहा था या फिर गेम खेलने के… नेटवर्क के सवाल पर सड़की ग्राम पंचायत के मुखिया लक्ष्मी सिंह खरवार हमसे कहते हैं, “बात ऐसी है कि चुनाव के वक्त बड़े-बड़े नेता आते हैं. उनके साथ उनके वादे भी आते हैं लेकिन चुनाव के बाद वही ढाक के तीन पात. नेटवर्क तो बस खोजते रह जाइए.” फेसबुक और ट्विटर के सवाल पर वे कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं दिखते, जैसे ये शब्द किसी और दुनिया के हों.

बिना नेटवर्क का मोबाइल दिखाते हरेन्द्र यादव

विकीपीडिया की नजर में कुछ ऐसा है अधौरा…

कैमूर जिले के लिहाज से बनी विकीपीडिया के पेज पर अधौरा के बारे में लिखा है, ‘यह जगह समुद्र तल से 2000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. अधौरा, भभुआ से 58 किलोमीटर की दूरी पर है. पर्वतों और जंगलों से घिरे इस स्थल की खूबसूरती देखने लायक है. यही कारण है कि काफी संख्या में पर्यटक यहां आना पसंद करते हैं.’ विकीपीडिया पर लिखी इस बात से शायद ही कोई इत्तेफाक न रखे कि अधौरा खूबसूरत नहीं है लेकिन अधौरा के साथ ‘लेकिन’ साथ ही आता है. अंग्रेजी भाषा का (Suffix) मान लीजिए. आप अपने मोबाइल फोन या कैमरे में यहां की खूबसूरती भले ही कैद कर लें लेकिन उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करने के लिए लगभग 40 किलोमीटर की दूरी तय करनी होगी. क्योंकि अधौरा प्रखंड की सीमा को लगभग छोड़ने के बाद ही मोबाइल में कायदे से नेटवर्क आ पाता है.

अधौरा (कैमूर की पहाड़ियों) में ढलती शाम

बीएसएनएल के लिहाज से सबसे कमाऊ जगह है अधौरा!

हमारे जेहन में यह सवाल भी आता है कि शायद ग्राहकों की कमी की वजह से यहां कंपनियां अपने टावर न लगाती हों, लेकिन हमारी इस बात को यहां के लोग सिरे से नकार देते हैं. बीच बाजार में बातचीत के क्रम में भाजपा के ही एक और कार्यकर्ता कहते हैं, ‘इस पूरे प्रखंड में बीएसएनएल के सबसे अधिक ग्राहक हैं. फिर भी बीएसएनएल बड़ी मुश्किल से लग पाता है. मोबाइल को गेम खेलने और कंप्यूटर से फिल्में भरवाकर देखने के लिए इस्तेमाल करते हैं. मोबाइल फोन खिलौना हो गया है. किसी भी ऑनलाइन कार्यक्रम के लिए (60 किलोमीटर दूर) भभुआ जाना होता है. पूरी दुनिया 5G में जा रही है लेकिन हमलोग 2G में भी नहीं. व्हाट्सएप के मैसेज को लोड होने में पांच दिन लगते हैं. वीडियो की तो बात ही छोड़ दीजिए. उसके लिए भी उत्तरप्रदेश की सीमा मे जाना पड़ता है. बीएसएनएल को सबसे अधिक फायदा देने के बावजूद इस प्रखंड पर सरकार का कोई ध्यान नहीं. चाहे कोई सरकार हो, किसी का कोई ध्यान नहीं.” वे हमें अधौरा आने और उनकी बात सुनने के लिए धन्यवाद कहते हैं और सरकार के लिए संदेशा देते हैं कि सरकार उनकी भी गुहार सुन ले.

अधौरा बाजार में ही बातचीत के क्रम में मिल गए भाजपा कार्यकर्ता

क्या कहते हैं जनप्रतिनिधि?

गौरतलब है कि कैमूर जिले का अधौरा प्रखंड सासाराम लोकसभा और चैनपुर विधानसभा का हिस्सा है. चैनपुर के विधायक बृजकिशोर बिंद प्रदेश सरकार में खनन एवं भूतत्व मंत्री भी हैं. इस पूरे इलाके में नेटवर्क की स्थिति पर वे हमसे बातचीत में कहते हैं, ‘देखिए मैं खुद इस बीच तमाम अधिकारियों को लेकर अधौरा गया था. बीएसएनएल के पांच टावरों के लिए जगहें चिह्नित की जा रही हैं. जल्द ही लोगों के फोन में बकायदा नेटवर्क होगा. नेटवर्क की कोई दिक्कत आने वाले समय में नहीं होगी.’ जियो और दूसरी कंपनियों के नेटवर्क के सवाल पर वे कहते हैं, ‘मेरी पहली प्राथमिकता में बीएसएनएल के टावर हैं. टावरों के लग जाने से लोगों को तत्काल प्रभाव से राहत मिल जाएगा. कोशिश दूसरे नेटवर्क के टावरों को लाने की भी हो रही है. धीरे-धीरे वो भी हो जाएगा.’

विधायक सह कैबिनेट मंत्री बृज किशोर बिंद

यहां हम आपको अंत मे यह भी बताते चलें कि बिहार और झारखंड के बंटने के बाद अधिकांश आदिवासी बहुल इलाके झारखंड में चले गए. बिहार में आदिवासी या तो कैमूर की पहाड़ियों पर (बहुलता) में हैं. या फिर झारखंड से सटे जमुई के कुछ इलाकों -कुछ हद तक चंपारण, वाल्मीकिनगर और मुंगेर में हैं. प्राकृतिक तौर पर बेहद खूबसूरत इस प्रखंड के भीतर पर्यटन के लिहाज से तमाम संभावनाएं हैं. इस प्रखंड के अधिकांश इलाके को पहले ही अभ्यारण्य घोषित किया जा चुका है और हाल ही में यहां ‘इको टूरिज्म केंद्र’ और ‘टाइगर सफारी’ बनाने की बातें भी हो रही हैं, लेकिन नो नेटवर्क जोन में टूरिज्म की कितनी संभावनाएं होंगी यह तो संबंधित विभागों के लिए भी रिसर्च का विषय होना ही चाहिए. आखिर अधौरा के डिजीटल हुए बगैर कैसे डिजीटल होगा इंडिया?