विवादित संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के विरोध में देश भर में हो रहे प्रदर्शनो के बीच ऐसी घटनाएं हो रही हैं जिनमें किसी भी तरह के सर्वेक्षण करनेवालों को लोग एनआरसी का आंकड़ा जमा करने वाला समझ ले रहे हैं.
शोध टीम को एनआरसी का आंकड़ा जमा करने वाला समझ बैठे लोग
ऐसी ही घटना दरभंगा जिले के एक गांव में हुई. यहां अल्पसंख्यक समुदाय से ताल्लुक रखनेवाले सैंकड़ों लोगों ने एक निजी सर्वेक्षण कंपनी की टीम को संदिग्ध मान लिया और उन्हें कथित तौर पर बंधक बना लिया. लेकिन समय पर पंचायत प्रतिनिधियों ने पुलिस को फोन कर लिया और पुलिसकर्मी सर्वेक्षण टीम को बाहर निकालने में सफल रहे. यह घटना झगरूआ गांव में हुई.
दरअसल पहले लोगों ने सर्वेक्षण टीम को सवालों के जवाब भी दिए लेकिन फिर उन्हें यह शक होने लगा कि यह आंकड़ें एनआरसी के लिए जमा किए जा रहे हैं. यह बात भी सामने आई है कि सर्वेक्षण करने वाली टीम ने सर्वेक्षण करने से पहले न तो क्षेत्र में पुलिस से या पंचायत प्रतिनिधियों से संपर्क किया था. यह सर्वेक्षण टीम लखनऊ की किसी निंजी कपंनी की है और इस टीम को अमेरिका के येल यूनिवर्सिटी के एक पीएचडी स्कॉलर ने हायर किया था. उनके शोध का विषय ‘राजनीतिक प्राथमिकताओं में सामाजिक पहचान की भूमिका’ है.
खबरो के मुताबिक सर्वेक्षण टीम को 1,000 अल्पसंख्यक समुदाय के परिवारों और 600 दलित परिवारों का सर्वेक्षण करना था.
इस तरह के और भी मामले आए हैं सामने
कुछ दिन पहले भी जिले के करमगंज क्षेत्र में इसी तरह का मामला सामने आया था. गुड़गांव की एक कंपनी के लिए सर्वेक्षण कर रहे एक व्यक्ति पर लोगों ने हमला कर दिया था. लोगों का आरोप था कि वह एनआरसी का सर्वेक्षण कर रहा है जबकि व्यक्ति का दावा था कि वह किसी टेलिविजन चैनल के लिए आंकड़े जमा कर रहे थे.
इससे पहले पश्चिम बंगाल में भी इसी तरह का मामला सामने आया था. यहां 20 वर्षीय एक युवती का घर भीड़ ने आग के हवाले कर दिया. हालांकि इस मामले में पुलिस का कहना था कि यह घटना गांव के भीतर आपसी मसले की वजह से हुआ और इसमें एनआरसी कोई कारण नहीं है. इसी तरह की एक घटना राजस्थान में भी देखने को मिली.