गांवों की वो गुस्से से भरी हुई लड़कियां…

गांवों की वो गुस्से से भरी हुई लड़कियां…

आज़ादीयह सबको चाहिए, रोकटोक भला किसे पसंद है. लेकिन सिर्फ खुद की आज़ादी चाहिए, अगर दूसरा वही चाहे तो पता नहीं उसके लिए किसकिस विशेषण का इस्तेमाल किया जाएगा? औरतों और लड़कियों के संबंध में तो कई खास विशेषण इतिहास के तहखाने तक से खोज निकाले जाते हैं. इन विशेषणों का इस्तेमाल लड़कियों और महिलाओं के हौसलों को तोड़ने से लेकर उन्हें एक भोग की वस्तु बताने तक किया जाता है. लेकिन एक चीज है जो बदल रही है. गांवों में कहा जाने लगा है, ‘आजकल की लड़कियों को क्या हो गया है? इनका गुस्सा तो हमेशा नाक पर ही रहता है. पहले गांव में ऐसी एक-दो लड़कियां हुआ करतीं लेकिन अब इनकी संख्या बढ़ती ही चली जा रही है.’

गांवों में मंदमंद जल रही है चिंगारी

आइए आपको एक वाकया सुनाते हैं. हुआ कुछ यूं कि किसी लड़की को दुपट्टा नहीं रखने की वजह से किसी चौराहे के महान सज्जन ने कह दिया, ‘’तुम्हारे पास दो मीटर दुपट्टा नहीं है क्या’’. लड़की बुरा नहीं बहुत बुरा मान गई. जो गांव में रहे हैं, वह समझ सकते हैं कि अगर किसी लड़की को सार्वजनिक तौर पर ऐसे कह दिया जाए तो वह किस तरह के तनाव में आ सकती है? लड़की थोड़ी देर तक रोई भी लेकिन उसने अपनी मर्जी के कपड़े पहनने की ठान ली और एक दिन वह उस सज्जन को यह कह भी आई कि आप दो उंगली भर का दुपट्टा अपनी आंखों पर क्यों नहीं बांध लेते?

साइकिल चलाती लड़कियां

जब पहलेपहल बिहार के गांवों में साइकिल मिलना शुरू हुआ तब उन साइकिलों को भी घर का कोई लड़का या मर्द चलाया करता और साइकिलें भी वैसी खरीदी जातीं जिन्हें घर के कामकाज में इस्तेमाल किया जा सके. इसके बाद अभिभावकों पर थोड़ा दबाव स्कूलों और ज्यादा लड़कियों की तरफ से भी पड़ना शुरू हुआ. लड़कियों को यह एहसास हो गया था कि साइकिल उनके लिए जरूरी चीज है और आज ऐसा कम ही देखने को मिलता है कि लड़कियों के साइकिल के पैसे से घर के लड़के कुछ खरीदते हों.

पढ़ाईलिखाई से नौकरी की तैयारी तक

पहले लड़कियों की पढ़ाई 10वीं तक आतेआते लगभग दम तोड़ने लगती थी. अब यह चलन धीरेधीरे कम हो रहा है. अब बाहर जाकर पढ़ाई करने और नौकरी करने के लिए लड़ाईझगड़े घरों में तेज हो रहे हैं. लोग सामाजिक तानाबाना टूटने की दुहाई दे रहे हैं लेकिन अब ऐसे लोगों की संख्या कम होती जा रही है. और वैसे भी लड़कियां अब इनकी बातों पर ध्यान ही नहीं दे रही है. उनके पास पढ़ने के लिए बहुत कुछ है और सुनने के लिए भी, फिर क्यों ऐसी चीजों पर वह अपना दिमाग खपाएं. वह बकायदे एक शहर से दूसरे शहर परीक्षा देने अकेली भी जा रही हैं और नौकरी भी पा रही हैं.

शादी से तलाक तक

शादी मतलब पवित्र बंधन और इस बंधन को बचाए रखने की सारी जिम्मेदारी औरतों पर. कुछ साल पहले तलाक शब्द  जुबान पर लाना तो छोड़िए मन में सोचना भी पाप जैसा था. लेकिन अब यह खत्म हो रहा है. अब लड़कियां आगे आ रही हैं और यह तय कर रही हैं कि उन्हें किस के साथ जिंदगी बितानी है और किसके साथ नहीं.

International Women’s Day, Artist-Iti

इन सभी तरह की लड़कियों को गुस्से से भरी लड़कियां कहा जा रहा है. आप इन लड़कियों से जब ईमानदारी से बात करेंगे और जानेंगे कि यह आखिर क्यों गुस्से में रहती हैं तो शायद आपको भी गुस्सा आए

लड़कियां बड़ी हुई नहीं कि चौराहे पर लड़के पहले उसका देह निहारने आ जाते हैं, मौका मिलते ही छूने आ जाते हैं. जब आप इस तरह की नजरों से रोज गुजरते हैं तो आपको गुस्सा नहीं आएगा तो क्या आएगा.

किसी ने कभी कहा था कि अगर किसी को संरक्षण में रखकर कोई उसके साथ अपराध करता है तो उसको ज्यादा सजा मिलनी चाहिए. स्कूल या ट्यूशन का शिक्षक पढ़ाई से ज्यादा पढ़ाई के लिए आई लड़की को छूने के इंतजार में हो तो लड़कियों को गुस्सा नहीं आएगा तो क्या आएगा भला?

जब एक ही घर में उसके भाई को उससे ज्यादा तरजीह दी जाती हो तो वह गुस्से में न रहे तो क्या करे?

जब पत्नी कोदिमाग नहीं हैकह करके चुप करा दिया जाए तो गुस्सा तो आएगा !

इसी तरह की गुस्सैल लड़कियां, अपना जीवन बदलने की कोशिश में लगी हुई हैं. रोती हैं, हंसती है, धीरेधीरे एकएक कदम आगे बढ़ा रही हैं. हो सके तो इनकी मदद कीजिए और वह न कर पाएं तो चुप बैठिए, वह अपना रास्ता बना लेंगी….नदी अपना रास्ता बना लेती है, उफनती हुई और फिर शांत होती हुई भी…