मीडिया अर्थात् प्रेस को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है क्योंकि यह लोगों की जड़ों से जुड़ा साधन है. मीडिया के जरिए लोग अपनी बात मुखर होकर रख पाते हैं तथा अपनी परेशानियों से सभी को अवगत करवा पाते हैं. साथ ही लोगों में विश्वास को बरकरार रखने के लिए मीडिया हमेशा से प्रतिबद्ध रहा है.
हर साल 3 मई को ‘वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे’ मनाया जाता है. यूनेस्को की आम सम्मेलन की सिफारिश के बाद दिसंबर 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया था. तब से 3 मई को विंडहोक की घोषणा की सालगिरह को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
हर साल इसके लिए एक थीम (विषय) निर्धारित की जाती है. इस बार यानी 2020 की थीम है, Journalism without Fear or Favour (यानी भयमुक्त और पक्ष या समर्थन मुक्त पत्रकारिता) इसके साथ ही कुछ सब थीम (उप विषय) भी निर्धारित की गई है. जैसे-
- महिला और पुरुष पत्रकारों तथा मीडिया कर्मियों की सुरक्षा.
- स्वतंत्र और व्यावसायिक पत्रकारिता राजनीतिक और वाणिज्यिक प्रभाव से मुक्त हो.
- मीडिया के सभी पहलू में लैंगिक समानता हो.
Journalism without favour and fear का अर्थ है, एक ऐसी पत्रकारिता जिसमें ना डर का समावेश हो और ना ही किसी भी प्रकार का समर्थन या पक्षपात यानी निष्पक्ष पत्रकारिता क्योंकि आज के समय में पत्रकारिता के दामन पर भी अनेकों दाग लगे हैं. कभी मीडिया के बिकने की बात आती है, तो कभी किसी दल को सपोर्ट करने की बात. पत्रकारिता जब आम लोगों की आवाज़ से जुड़ा है, ऐसे में इसका पूर्ण तरीके से निष्पक्ष होना बहुत ही ज्यादा जरूरी है.
प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोगों में जागरूकता पैदा करने में मदद करती है. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे इसलिए भी मनाया जाता है ताकि सरकारों को सबसे खराब स्थिति में भी जानकारी प्रदान करने में पत्रकारों की भूमिका के बारे में याद दिलाया जा सके इसलिए पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में कभी बाधा नहीं होनी चाहिए.
साथ ही Reporters without border द्वारा जारी आंकड़ों से यह पता चलता है कि विश्व में कोरोना संकट के दौरान प्रेस की क्या स्थिति है. इसमें “कोरोना वायरस महामारी और सूचना के अधिकारों में मीडिया स्वतंत्रता के दमन का साफ पता चलता है.”
इसे आंकड़ों द्वारा दर्शाया गया है. इसके अलावा एक लिस्ट जारी की गई है. लिस्ट में 180 देशों और क्षेत्रों में से, ईरान (173 वें स्थान पर) ने कोरोना वायरस के प्रकोप से जुड़ी खबरों को बड़े पैमाने पर रोक दिया है.
साथ ही इराक, जो 162वें स्थान पर है, उसने एक लेख के लिए Reuter को दंडित किया था क्योंकि उसने आधिकारिक महामारी के आंकड़ों पर सवाल उठाया था. हंगरी जो 89वें स्थान पर है, उसने कोरोना वायरस से जुड़ा एक कानून ही पारित कर दिया है, जिसमें प्रेस की आज़ादी का दमन साफ दिखता है. इसके साथ ही चीन समेत कई देशों ने भी मीडिया पर कोरोना से जुड़ी जानकारी का प्रसार करने पर रोक लगाया है.
प्रेस स्वतंत्रता के मामले में भारत का स्थान बहुत नीचे है. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में 180 देशों की सूची में भारत 142वें नंबर पर आता है. पिछले चार सालों से भारत का स्थान लगातार गिर रहा है.
2016 में भारत का स्थान 133वां था, जो 2017 में तीन अंक खिसककर 136, 2018 में 138, 2019 में 140 और 2020 में 142 हो गया. भारत का स्थान पिछले तीन सालों से लगातार दो-दो अंक गिर रहा है. यह एक बेहद ही चिंताजनक स्थिति है.
आने वाले समय में हो सकता है कि स्थिति और भी चिंताजनक हो क्योंकि अगर मीडिया ही सरकार के आवभगत में लग जाएगी तो आम नागरिकों के हित के बारे में कोई नहीं सोचेगा. मीडिया ही आम नागरिकों के लिए एक साधन होता है अपनी आवाज़ को आगे तक बढ़ाने का. अगर आवाज़ बढ़ाने का ज़रिया खुद ही मौन हो जाएगा तो लोगों की आवाज़ स्वयं ही दब जाएगी. ऐसी स्थिति में जरूरत है कि मीडिया सही कदम उठाए और परिस्थिति को देखते हुए अपने कार्य को अंजाम दे.
यह आलेख ‘द बिहार मेल’ के लिए सौम्या ज्योत्सना ने लिखकर भेजा है. सौम्या स्वतंत्र पत्रकार एवं लेखिका हैं.