देश में हर जगह चर्चा का विषय बिहिया. इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली एक वीभत्स घटना. क्या भीड़ ही अब करेगी न्याय? सारे सवालों पर गरम होती सोशल मीडिया. घटना पर चर्चायें ज़्यादा लेकिन जानकारी उतनी ही कम. बिहार की राजधानी पटना से 71 किमी दूर बिहिया जाकर ‘द बिहार मेल’ की टीम ने यह जानने की कोशिश की कि आखिर इसके पीछे की कहानी क्या है और आगे की कहानी भी क्या वही थी जो अबतक मेनस्ट्रीम मीडिया दिखा रही है.
बिहिया रेलवे स्टेशन से बमुश्किल 50 मीटर की दूरी पर एक छोटा सा टोला जो स्थानीय लोगों के अनुसार जिले का सबसे चर्चित रेडलाइट एरिया है. जो लोग इस घटना से अवगत थे उनके लिये यह लोकेशन समझ पाना बहुत ही आसान है. आने जाने वाले मुख्य रास्ते में ही एक साईकिल और कुछ घरेलू सामान जला हुआ. आग की लपटों से पूरी दीवार काली.
बाज़ार की ओर जाने वाला रास्ता शुरू होते ही दाईं ओर एक गली और उसमें तीसरा ही घर है चांद भवन और उसी घर की बिल्डिंग में चलता रहा है ‘हलचल गुड़िया थियेटर’. घर के नीचे हीरो होंडा की एक जली हुई बाइक. जिसका मॉडल पहचान पाना मुश्किल था. घर में लगा हुआ ताला लेकिन स्थानीय लोगों का कहा मानें तो आसपास के सारे घर एक दूसरे से कनेक्ट हैं. हालांकि वहां जांच करने पहुंची फोरेंसिक टीम का कुछ और कहना है. गुड़िया थियेटर की दीवार से सटे हुए एक घर का खुला हुआ दरवाजा. अंदर की स्थिति बड़ी ही भयावह. शायद ही कुछ ऐसा हो जो जला हुआ न हो. देखकर यह प्रतीत हो रहा था कि आग लगाने से पहले किरोसिन या पेट्रोल का इस्तेमाल ज़रूर हुआ होगा. चौखट से सीधे सामने एक चापाकल और उससे सटकर ही छत पर जाने का रास्ता. छत पर एक कोने में चूल्हा, कुकर और कुछ बर्तन जो जलने से बच गए थे. गैस सिलेंडर छत से नीचे फेंक दिया गया था. तो कुछ ऐसी दिखी हमें वहां की स्थिति.
क्या था पूरा मामला?
थियेटर के ठीक सामने 20 मीटर की दूरी पर एक दीवार है. बीते सोमवार, 20 अगस्त को दिन के 12 बजे के करीब वहाँ पर एक युवक की लाश देखी जाती है. स्थानीय लोगों के अनुसार वो वहाँ कैसे पहुँचा होगा और किसने रखा होगा यह समझ पाना अपने आप में एक बड़ी पहेली थी. क्योंकि वो एक व्यस्त रास्ता है. रेलवे ट्रैक के इस पार रास्ता और उस पार काम करते मजदूर और सिर्फ़ 20-25 की दूरी पर तीन-चार घर.
विलेन बनी एक दीवार
रेलवे ट्रैक से सटकर ही एक दीवार है. इस बात का संकेत कि रेलवे का अधिकार क्षेत्र यहीं तक है. इसके बाद से पुलिस का अधिकार क्षेत्र शुरू होता है. दीवार की दूसरी तरफ़ का क्षेत्र बिहिया थाना के दायरे में आता है. मौके पर पहुंचे स्थानीय पत्रकारों ने हमसे बातचीत के क्रम में बताया कि युवक की लाश दोनों तरफ़ थी यानी सिर का भाग एक तरफ़ और पैर का दूसरी तरफ़. इस कारण से न तो उसे जीआरपी थाने ने अपने कब्जे में लिया और न ही बिहिया थाना ने. लाश वहीं पर घंटों पड़ी रही जिसके कारण स्थानीय लोगों की भीड़ वहीं पर जुटती चली गई.
फोरेंसिक टीम आई
जब हमलोग स्थानीय जनता से पूरी घटना का जायज़ा ले रहे थे तो उसी दौरान फोरेंसिक टीम और बिहिया थाना घटनास्थल पर पहुँची। सब इंस्पेक्टर धनंजय कुमार ने फोरेंसिक टीम को एक नई चीज़ बताई। उन्होंने कहा कि शुरुआत में मिली जानकारी के अनुसार लाश जीआरपी के क्षेत्र में थी लेकिन जब वो घटनास्थल पर पहुँचे तब लाश दीवार के दूसरी तरफ़ पाई गई। स्थानीय लोगों ने इस पूरी घटना के लिए जिला प्रशासन और बिहिया थाने की पुलिस के रवैये को जिम्मेदार ठहराया। उनका कहना है कि यदि पुलिस जल्दी कार्रवाई करती तो मामला इतना आगे बढ़ता ही नहीं।
पुलिस प्रशासन के ख़िलाफ़ आक्रोश का कोपभाजन बनी महिला
स्थानीय जनता या पुलिस भी इस घटना को एक पब्लिक मूवमेंट के तौर पर देखती है. जितने भी लोगों से वहाँ बात हुई उसमें सभी का यही कहना था कि उस महिला के ख़िलाफ़ पहले से किसी का कोई आक्रोश नहीं था. लोगों का ये भी कहना है कि लंबे समय से यह आक्रोश पुलिस प्रशासन के ख़िलाफ़ था और घटनास्थल पर पुलिस के स्लो एक्शन ने आग में घी डालने का काम कर दिया.
क्यों था पुलिस प्रशासन के ख़िलाफ़ आक्रोश?
बिहिया थाने के दायरे में आने वाला यह इलाका जिले का बदनाम रेड लाईट एरिया है. लोगों ने बताया कि नाच-गान की आड़ में यहाँ देह व्यापार होता रहा है और बाहर से कई लोग यहाँ सिर्फ इसलिये भी आते थे. शराबबंदी के बावजूद यहाँ शराब का भी कारोबार धड़ल्ले से चल रहा था. शाम को अंधेरा हो जाने के बाद इधर छिनैती भी होती थी. स्थानीय जनता के अनुसार इन अपराधों में भी वही लोग शामिल थे जिनकी वजह से यह इलाका रेड लाइट एरिया कहा जाता था। निलबिंत थाना प्रभारी पर आरोप लगाते हुए लोगों ने कहा कि उनके संरक्षण में ही ये सब काम फलफूल रहा था.
स्पॉट के ठीक सामने पत्थर के कारोबारी मंटू ओझा कहते हैं कि इससे पहले ये लोग किसी लड़की को अगवा करके इस धंधे में ले आये थे. बाद में जब जाँच हुई और लड़की को छुड़ाया गया तो इसके बाद से यह धंधा कुछ महीनों तक बंद रहा. वे बार-बार निलबिंत थाना प्रभारी को जिम्मेदार ठहराते हैं. वे कहते हैं कि निलंबित थानेदार की पोस्टिंग के बाद फिर से चीज़ें वैसे ही चलने लगीं. देश में यह गैरकानूनी है और थाने से सिर्फ़ 300 मी की दूरी पर होने के बावजूद इसपर कोई रोक टोक नहीं था. इलाके के लोगों में पुलिस को लेकर यह गुस्सा साफ-साफ दिखा।
आखिर कैसे तमाशबीन भीड़ हुई उग्र?
पुलिस प्रशासन का एक्शन शुरुआत में बहुत गैर जिम्मेदाराना रहा, इसलिये कई घंटे तक लाश उसी जगह पर पड़ी रही. समय के साथ वहाँ देखने वालों की भीड़ बढ़ती चली गई। युवक की पहचान बिहिया से 7-8 किमी दूर दामोदरपुर गाँव के निवासी के रूप में हुई. इसके बाद एक ऐसी भीड़ पहुँची जिसके बारे में स्थानीय लोगों को ज़्यादा कुछ मालूम नहीं था. इस भीड़ की पहचान युवक के परिजन और गाँव वालों के रूप में की गई जो काफ़ी आक्रोश में थे. पुलिस की भीड़ के साथ कोऑपरेट करने पर जब हमने सवाल किया तो सब-इंस्पेक्टर धनंजय कुमार ने इस बात से इंकार कर दिया. उन्होंने बताया कि भीड़ से मुकाबला करना संभव नहीं था. वो लोग रेलवे ट्रैक पर से पत्थर उठा उठाकर पुलिस वालों को मारने लगे थे. उन्होंने बताया कि बीच में जो दीवार थी उससे पुलिस वालों की जान बची नहीं तो इस आक्रोश का शिकार सबसे पहले पुलिस ही होती।
महिला पर पहले से नहीं था गुस्सा, फिर भीड़ ने कैसे बनाया शिकार?
लोगों ने जैसा बताया कि उस महिला के ख़िलाफ़ पहले से किसी का कोई गुस्सा नहीं था. न ही वो किसी की टारगेट थी. लेकिन उसके घर के सामने रखी हुई लाश ने आग में घी डाल दिया. कुछ लोगों ने उनपर आरोप लगाया और भीड़ धीरे-धीरे उग्र होती चली गई. पहले की बदनामी तो थी ही. उन घरों में रह रहे लोग किसी तरह छत के ऊपर से भागने में कामयाब रहे जिसमें उस महिला का बेटा भी था. महिला भागने में कामयाब नहीं हो सकी और घर में ढूंढे जाने पर वो भीड़ के हाथ लग गई.
महिला के पकड़े जाने पर फिर भीड़ ने क्या किया?
स्थानीय लोग बताते हैं कि महिला के पकड़े जाने के बाद भीड़ दो भागों में बंट गई थी. भीड़ का एक हिस्सा महिला के पीछे भागा तो दूसरे हिस्से ने घर और संपत्ति को निशाना बनाया. कुछ लोग महिला को भगा-भगाकर मारते रहे तो कुछ घर जलाते रहे. महिला उनकी गिरफ्त से थोड़ी सी छूटने के बाद जहाँ पकड़ी गई उस घर के मालिक ( शर्मा जी ) ने हमें पूरी बात बताई. उन्होंने बताया कि लोग उसके पीछे-पीछे भाग रहे थे और वो उनके गेट के सामने पकड़ी गई. शर्मा जी ने हाथ जोड़कर महिला को वहाँ न मारने का आग्रह किया तो भीड़ उसे बिहिया बाज़ार की ओर जाने वाले मेन रास्ते की ओर लेकर चली गई. चश्मदीद बताते हैं कि तब तक महिला को निर्वस्त्र नहीं किया गया था. उनका कहना था कि भागते-भागते जब महिला की साड़ी खुल गई तो आक्रोशित भीड़ में से ही कुछ लोगों ने उसके बचे हुए कपड़े फाड़ दिये और फिर भगाते हुए लोग उसे मारते रहे. पुलिस फिर भी किसी तरह अनियंत्रित भीड़ से महिला को बचाने में कामयाब रही. पुलिस को लाठीचार्ज भी करना पड़ा और बाद में तो पुलिस ने हवाई फायरिंग भी की.
फुटेज में दिखे चेहरों को गिरफ़्तार कर रही पुलिस, गिरफ्त में कई निर्दोष!
हम जब वहाँ पहुँचे और लोगों से बात करने की कोशिश की तो बात करने वाले लोग बड़ी मुश्किल से मिले. लोग कुछ भी बताने से डर रहे थे. शायद यही मुश्किलें पुलिस को भी हो रही होगी। पुलिस ने गिरफ्तारी के लिये वीडियो फुटेज को आधार बनाया। लोगों से बात करने पर यह पता चला कि उनमें कुछ लोग निर्दोष हैं जिसमें अधिकांश नाबालिग हैं. वो सड़क पर इस घटना को देखने निकल गए थे जिस कारण कैमरे की जद में आ गए. गिरफ्तार में एकाध ऐसे भी हैं जो फुटेज में भी नहीं हैं और न ही वो उस दिन वहाँ मौजूद थे, लेकिन जब इस मामले में हमने सब-इंस्पेक्टर धनंजय कुमार से बात की तो उन्होंने इस बात से सीधे-सीधे इंकार कर दिया और बताया कि गिरफ्तारी उनकी ही हुई है जो इसमें संलिप्त थे.
स्थानीय जनता का नजरिया अलग
मेनस्ट्रीम मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक इस घटना की निंदा हो रही है। महिला सुरक्षा को लेकर लगातार सवाल उठाये जा रहे हैं, लेकिन स्थानीय जनता इसपर बिल्कुल अलग सोचती है. निर्वस्त्र करके सरेबाज़ार मारते हुए दौड़ाने को वो भी गलत कह रहे हैं लेकिन उस जगह को लेकर जिस तरह का उनका अनुभव है इस घटना से उन्हें कोई विशेष फ़र्क नहीं पड़ता हुआ दिख रहा.
ग्राउंड जीरो पर जाकर देखने में जो भी बातें हमें सामने दिखीं उसमें पूरा मामला बस महिला को निर्वस्त्र करने का ही नहीं है. इसमें दसियों एंगल हैं. मर्डर इस आक्रोश का तात्कालिक कारण ज़रूर है लेकिन बड़ा कारण एरिया का इतिहास भी है. लोग वहां हो रही गतिविधियों को लेकर पूर्वाग्रह पालने के साथ ही आक्रोशित थे. मर्डर के बाद पुलिस प्रशासन के गैर जिम्मेदाराना रवैये ने ऐसी किसी घटना की स्क्रिप्ट लिखने में मदद कर दी. अगर जीआरपी या बिहिया किसी भी थाने ने युवक के लाश को उन्मादी भीड़ इकट्ठा होने से पहले अपने कब्जे में ले लिया होता तो शायद यह घटना न होती.
ऋषिकेश ने पटना यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता की पढ़ाई की है. फिलवक्त वे द बिहार मेल टीम का हिस्सा हैं. ये उनकी बिहार मेल के लिए पहली रपट है.
1 Comment
Rahul kumar August 25, 2018 at 6:23 am
Ground level report.
Good.