हाल-बेहाल: गांव ने विधायक समेत तीन प्रतिनिधि चुने, सड़क फिर भी खस्ताहाल

हाल-बेहाल: गांव ने विधायक समेत तीन प्रतिनिधि चुने, सड़क फिर भी खस्ताहाल

मुखिया जी कुछ भी नहीं बदला, बदल गए बस आप – पूरी गाड़ी खेंचे में है, निकल गए बस आप. मुखिया की जगह प्रमुख लिख लें. विधायक लिख लें या फिर चाहे तो मंत्री लिख लें. कविता की पंक्तियां सभी के लिए फिट हैं. कविता की इन पंक्तियों को लगभग आठ साल पहले काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की दीवारों पर चस्पा देखा था. कवि हैं रामाज्ञा राय शशिधर. कविता की ये पंक्तियां तब से ही कहीं धंसी हुई हैं. अब आगे की बात…

बात कुछ ऐसी है कि बिहार प्रांत में एक कैमूर नामक जिला है. जिसका मुख्यालय भभुआ है. उसी जिले में एक चैनपुर विधानसभा है. चैनपुर विधानसभा में एक भगवानपुर ब्लॉक है. भगवानपुर ब्लॉक में जैतपुर (खुर्द) नामक छोटा सा गांव है. उस गांव को एक छोटी सी सड़क जाती है. अब आप सोच रहे होंगे कि खबर या रिपोर्ट लिखने का ये कौन सा फॉर्मेट है कि हम बुझौव्वल बुझाने लगे. गांव है तो वहां तक सड़क तो जाएगी ही. जानी भी चाहिए.

दरअसल, ये सारी बात जैतपुर (खुर्द) को जाने वाली उसी छोटी सी सड़क पर है. 1200 से 1500 की संख्या वाला ये छोटा सा गांव खुद में बेहद ही खास है. गांव ने अपने वोटों से दूसरी बार मुखिया चुना है. बीडीसी चुना है. जो बाद में ब्लॉक प्रमुख भी बन गईं. तीसरी बार विधायक चुना है. जो वर्तमान में प्रदेश सरकार के पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा कल्याण मंत्री हैं. गांव ने तीन अलग-अलग जनप्रतिनिधियों को तीन अलग-अलग जाति-समुदाय से चुना है. गांव की मुख्य सड़क को फिर भी मरम्मत की दरकार है.

मुखिया और ब्लॉक प्रमुख ने खड़े किए हाथ
सड़क की बदहाली पर जब हमने गांव से ही दूसरी बार मुखिया चुने गए चट्टान सिंह से बात की तो तो वे बोले, “सड़क बनवाना मुखिया के अधिकार क्षेत्र से बाहर की बात है. वे गली-नाली बनवाने की क्षमता में हैं. हालांकि वे बातचीत के अंत में मंत्री से गांव की मुख्य सड़क को बनवाने के लिए खुद की ओर से कही गई बात का जिक्र करते हैं”

गांव को जाने वाली मुख्य खस्ताहाल सड़क

जब इसी मसले पर हमने ब्लॉक प्रमुख बेबी गुप्ता से उनके किए गए प्रयासों पर बात की तो उनके शब्द भी ठीक मुखिया जैसे ही रहे. वह बोलीं, “सड़क बनवाना उनके वश से बाहर की बात है. वो ग्रामीण विभाग को कागज दे चुकी हैं. वो इसे लेकर मंत्री जी से भी मिल चुकी हैं”

ब्लॉक प्रमुख बेबी गुप्ता

तेनुआ गांव के रहने वाले शुभम हमें इसी सड़क पर मिल गए. वे कहते हैं कि सभी केवल वोट लेने आते हैं. इस सड़क पर चलने वाली औरतें खासी परेशानियों की शिकार हैं. गिर जाने पर हाथ-पांव छिल जाते हैं. साल भर में साइकिल की दो टायरें बदलनी पड़ती हैं.

इसी गांव के रहने वाले और गांव के ही उत्क्रमित विद्यालय में प्रधानाध्यापक कहते हैं कि वे बराबर इसी सड़क से आ जा रहे हैं. साल 2003 से ही वे भभुआ से गांव बराबर आ-जा रहे हैं. वे गांव की ओर से चुने गए प्रतिनिधियों से मांग करते हैं कि प्रतिनिधि गांव की सड़क को ठीक करा दें. वे कई बार दूसरी और लंबी सड़क से स्कूल आते-जाते हैं.

गांव के उत्क्रमित विद्यालय के प्रधानाध्यापक

गौरतलब है कि जैतपुर (खुर्द) गांव को जाने वाली इस ढाई किलोमीटर की छोटी सी सड़क से निबिया और तेनुआ गांव के लोगों का भी बराबर आना-जाना होता है. हमें मौके पर मिले निबिया गांव के रहने वाले एक ग्रामीण हमसे बातचीत में कहते हैं कि दो-दो बार मुखिया चुनने और तीन बार विधायक चुनने के बाद भी सड़क नहीं बन रही. प्रमुख और विधायक जी ने तो गांव आने-जाने का रास्ता तक बदल लिया है.

यहां हम आपको बता दें कि इस गांव में आने-जाने वाली मुख्य सड़क के अलावा एक और सड़क है जो इस गांव को जाती है. इस सड़क से मंत्री बराबर अपने घर आते-जाते हैं. नब्बे फीसदी से अधिक लोग अभी भी गांव के बाहर-भीतर जाने के लिए इसी मुख्य व खस्ताहाल सड़क का इस्तेमाल करते हैं. यहां तक कि मंत्री के परिवारजन भी मुख्य सड़क से ही आते-जाते हैं. उनकी पत्नी और बच्चे शामिल.

सड़क राजनीतिक रंजिश का शिकार?
उपरोक्त बातों और तस्वीरों से एक बात तो स्पष्ट है कि मंत्री गांव में खुद के आने-जाने वाली सड़क बनवा चुके हैं. उनकी गाड़ियां उस सड़क से आती जाती हैं. ऐसे मे सवाल उठते हैं कि आखिर कौन सी वजहें हैं जो गांव को जाने वाली मुख्य सड़क के मरम्मत के बीच में आ रही हैं? गांव के ही मुखिया और ब्लॉक प्रमुख पहले ही ठीकरा मंत्री के नाम पर फोड़ चुके हैं. इस पूरे मामले पर जब हमने तीसरी बार विधायक चुने गए और वर्तमान सरकार में मंत्री बृज किशोर बिंद से बात की तो वे बोले कि, गांव के किसी भी प्रतिनिधि ने उनसे कोई बात नहीं की है. वे अनायास ही ऐसी बातें कह रहे हैं. हालांकि वे गांव के कई लोगों को सड़क के मरम्मत को लेकर उनसे की गई बात का जिक्र करते हैं. वे उन्हें सड़क के मरम्मत को लेकर आश्वस्त किए जाने की बात कहते हैं. साथ ही वे हमारे माध्यम से इस बात का विश्वास दिलाने की बात कहते हैं कि इस वर्ष के अंत तक गांव की सड़क का कालीकरण हो जाएगा.

कैबिनेट मंत्री बृज किशोर बिंद

अब देखना यह है कि इस वर्ष के अंत तक तीन प्रतिनिधियों समेत हजारों की जनसंख्या वाले गांव की सड़क चकाचक हो जाती है या फिर बद से बदतर होती चली जाती है. तब तक बर्दाश्त करते हैं आखिर और क्या कर सकते हैं…