आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को सरकारी नौकरियों तथा शिक्षा संस्थानों में दाखिले के लिए 10 फीसदी आरक्षण देने वाला संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश कर दिया गया.
इस संविधान संशोधन का उद्देश्य ‘आर्थिक रूप से कमजोर किसी भी नागरिक’ को आरक्षण का अधिकार देना है. आरक्षण की अधिकतम सीमा 10 फीसदी तक तय की गई है. ‘‘ आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग’’ की परिभाषा तय करने का अधिकार सरकार पर छोड़ दिया गया है, जो समय–समय पर अधिसूचना के जरिए इसमें बदलाव कर सकती है. इसका आधार पारिवारिक आर्थिक आमदनी तथा अन्य आर्थिक मानक होंगे.
क्या है इस विधेयक को लाने का उद्देश्य?
इस विधेयक के उद्देश्य एवं कारण में लिखा गया है, ‘‘ यह सुनिश्चित करने के लिए आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को उच्च शिक्षा तथा सरकारी नौकरियों में उचित मौके मिले, संविधान में संशोधन किया गया है. अभी आर्थिक रूप से कमजोर लोग बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा में प्रवेश तथा सरकारी नौकरियों से वंचित हैं क्योंकि वे मजबूत वर्ग के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर पाते.’’
गौरतलब है कि लोकसभा में इस बिल को पास कराने के लिए एनडीए के पास पूर्ण बहुमत है. इसके बावजूद भाजपा का नेतृत्व विपक्षी पार्टियों से भी इस पर सहमति के लिए संपर्क कर रहा है.
बसपा सुप्रीमो मायावती इस आरक्षण के साथ
बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस बिल को समर्थन देने की बात कही है. उनका कहना है कि बसपा वर्षों से गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग करती रही है लेकिन सरकार इसे आधे–अधूरे मन से ला रही है. वहीं समाजवादी पार्टी ने इस बिल पर गोलमोल बयान दिया है. सपा नेता रामगोपाल यादव ने कहा है कि ओबीसी के लिए भी आबादी के हिसाब से आरक्षण होना चाहिए. सरकार इस लक्ष्मण रेखा (50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण) को पार कर रही है तो ओबीसी को उसकी आबादी के हिसाब से 54 फीसदी आरक्षण चाहिए.