केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा है कि भारत सरकार ने पाकिस्तान की ओर जाने वाले ‘हमारे हिस्से के पानी’ को रोकने और पूर्वी नदियों रावी, सतलज और ब्यास की जलधारा को जम्मू–कश्मीर और पंजाब की ओर मोड़ने का फैसला किया है.
इस पर पाकिस्तान का कहना है कि उसे भारत के इस फैसले से कोई ‘आपत्ति’ नहीं है. पाकिस्तान के डॉन अखबार ने जलसंसाधन मंत्री ख्वाजा सुमैल को यह कहते हुए उद्धृत किया है कि पाकिस्तान को इस जल से कोई लेना–देना नहीं है क्योंकि ‘सिंधु जल समझौता’ भारत को ऐसा करने की मंजूरी देता है.
पाकिस्तान का कहना है कि उसे तब आपत्ति होगी जब पश्चिमी नदियों (चेनाब, सिंधु और झेलम) की जलधारा को मोड़ा जाए.
जम्मू–कश्मीर के पुलवामा में 14 फरवरी को हुए आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच काफी तनाव है. इस हमले में सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे और इसकी जिम्मेदारी पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश–ए–मोहम्मद ने ली थी.

क्या है सिंधु जल समझौता
यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच 1960 में हुआ था. इसके तहत सिंधु नदी की सहायक नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदियों में विभाजित किया गया. पूर्वी नदियों में सतलज, ब्यास और रावी नदी को रखा गया तो पश्चिमी नदियों में झेलम, चेनाब और सिंधु को रखा गया. इसके तहत पूर्वी नदियों के जल का इस्तेमाल कुछ चीजों को छोड़कर भारत बेहिचक कर सकता है. वहीं पश्चिमी नदियों का पानी पाकिस्तान के लिए तय है. लेकिन इन नदियों के सीमित इस्तेमाल का हक भारत को भी है.
दोनों ही देश मे इस समझौते के बाद स्थायी सिंधु आयोग की स्थापना की गई. इसके दोनों ही कमीश्नर समय–समय पर आपस में बैठक करते हैं.
















