बनारस के इस ‘ब्लाइंड स्कूल’ का दरवाजा नौवीं से ऊपर के छात्रों के लिए बंद, हो रहा प्रदर्शन

बनारस के इस ‘ब्लाइंड स्कूल’ का दरवाजा नौवीं से ऊपर के छात्रों के लिए बंद, हो रहा प्रदर्शन

बनारस इन दिनों फिर से असन्तोष की तरफ बढ़ रहा है। यहां स्थित पूरे पूर्वांचल का एकमात्र अंध विद्यालयहनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालयअचानक से नौवीं कक्षा से ऊपर के लिए बंद कर दिया गया है। हालांकि, इसकी पहल एक साल पहले ही शुरू हो गई थी। अब छात्र क्रमबद्ध विरोध प्रदर्शनों के माध्यम से यह मुद्दा उठा रहे हैं।

 क्या है मामला

बनारस स्थित अंध विद्यालय एक साल पहले नौवीं से 12वीं कक्षा के लिए बंद कर दिया गया। इसे सरकार और ट्रस्ट मिलकर चलाते हैं। पिछले साल ही ट्रस्ट के सदस्यों ने इसे बंद करने की बात कही थी। मात्र 250 छात्र वाले इस संस्थान को चलाने में जो ट्रस्टी सहयोग करते हैं उनका अब भी कहना है, ‘सरकार अब इतनी मदद नहीं कर रही कि वह इस विद्यालय को चला सकें। 

विद्यालय का इतिहास 

बनारस में ‘श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार स्मृति सेवा ट्रस्ट ‘ की स्थापना 26 मार्च, 1972 को हुई थी। मुख्य उद्देश्य था कि दृष्टिबाधित स्टूडेंट्स को शिक्षितप्रशिक्षित किया जाए। इसके लिए श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय की स्थापना दुर्गाकुण्ड में हुई। बीएचयू से लगभग दो किलोमीटर की दूरी पर। इस स्कूल को 1984 में जूनियर हाई स्कूल की मान्यता दी गई। फिर धीरेधीरे 1993 तक इंटरमीडिएट तक की। यहां 250 दृष्टिबाधित स्टूडेंट्स के रहने और पढ़ने की व्यवस्था व्यवस्था है। फिलहाल 160 स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। इसे फिलहाल ट्रस्ट और सरकार मिल कर चलाते हैं। एक 18 सदस्यों की कार्यकारिणी समिति है, जिन पर स्कूल के प्रबंधन का जिम्मा है। लगभग सबका पेशा व्यापार है।

इस स्कूल को सामान्यत: सरकार की तरफ से 75% ग्रांट मिलता है। 2018-2019 में 50% मिला था। और 2019-2020 में पैसा ही नहीं आया। दबी जुबान से अध्यापकों का कहना है कि विद्यालय प्रबंधन के द्वारा फाइल ही देर से भेजी जा रही है। 

ठीक डेढ़ साल पहले यह मामला सबसे पहले प्रकाश में आया था। अचानक से एक दिन नौवीं से ऊपर के 60 से अधिक छात्रों को नोटिस देकर कहा गया कि आपका विद्यालय अब बंद होने जा रहा है ,आप आगे की पढ़ाई के लिए इन संस्थानों को चुन सकते हैं। 

कौन-कौन हैं ट्रस्टी

ट्रस्टियों में बनारस केजालान समूहसमेत कई बड़े कारोबारी हैं जो कोविड-19 का तर्क देकर बता रहे हैं कि पैसे नहीं है। कार्यकारिणी समिति के श्याम सुंदर प्रसाद बनारस में बिजली के सामानों का व्यापार करते हैं और पिछले सातआठ वर्षों से विद्यालय से जुड़े हैं। वह भी कहते हैं, ‘आप जबर्दस्ती सेवा नहीं ले सकते। हमारा बिजनेस चौपट हो गया।‘ ट्रस्ट के मेंबर और स्कूल के कार्यकारिणी के सदस्य अशोक खेमका से भी हमने बात की। उन्होंने भी आर्थिक तंगी का ही हवाला दिया। 

स्टूडेंट्स का बयान 

स्कूल में आसपास के करीब चार राज्यों के छात्र पढ़ते हैं। यहां विरोध प्रदर्शन करने आये बिहार के बेगूसराय के रहने वाले रामकुमार आठवीं के छात्र हैं। वो कहते हैं, ‘हमारे घर पर जबरदस्ती टीसी काट कर भेज दी गई। हम बनारस विरोध करने आए हैं, अगर यह स्कूल बंद हो जाएगा तो हमारी आगे की पढ़ाई नहीं हो पाएगी। हम बिहार से यहां पढ़ने आए थे।

वही प्रयागराज से आए भोले उपाध्याय लखनऊ के राजकीय विद्यालय में पढ़ते हैं। वह जालान समूह के निदेशक और ट्रस्ट के पदाधिकारियों पर आरोप लगाते है। वो कहते हैं, ‘हमारे साथ के करीब 12 लड़कों को सितंबर के महीने में लखनऊ एडमिशन दिलाया गया। यह सब कुछ इसलिए किया गया ताकि जूनियर बच्चों से हम लोग दूर हो जाए और विरोध ना हो सके। यह सब कुछ ट्रस्ट के सदस्यों और व्यापारियों के निर्देश पर हुआ अब हम यहां विरोध करने आए हैं।

क्या सच में आर्थिक तंगी से स्कूल बंद हो जाएगा?

सवाल है कि अगर आर्थिक तंगी ही है तो यह बात सरकार से क्यों नहीं कहीं जा रही। दरअसल दो वर्ष पूर्व भी विद्यालय को बंद करने की ऐसी स्थिति आई थी। लेकिन तत्कालीन डीएम ने इसे रोक दिया। कहा गया किट्रस्ट के लोग अगर स्कूल नहीं चला पा रहे हैं तो इस्तीफा दे दें ,उन्हें इसे बंद करने का कोई अधिकार नहीं है।

नाम न जाहिर करने की शर्त पर विद्यालय के एक अध्यापक ने बताया कि पिछले तीन वर्षों में एडमिशन कम लिया गया है। उन्होंने कहा कि समिति के कुछ प्रमुख सदस्य विद्यालय को अपने निजी उपयोग में लाते हैं।  उन्होंने कहा,क्लासेज बंद होगीं, तो सरकार ग्रांट (अनुदान) बंद कर देगी और कमेटी तो चाहती है कि बंद हो जाए। पिछले डीएम से भी जब स्कूल बंद कराने की बात कही गई, तो डीएम ने कहा था कि इस्तीफा दे दो. तब तो इन्होंने कहा था कि नहींनहीं हम चलाएंगे।

फिलहाल मसला ये है कि ट्रस्ट के सदस्य कह रहे हैं कि सरकार ने पिछले तीन साल से स्कूल काे अनुदान नहीं दिए हैं, इसलिए वह स्कूल चला पाने में सक्षम नहीं हैं. अब सवाल ये है कि ट्रस्ट के मेंबर जब चला पाने में सक्षम नहीं हैं, तो उसका हिस्सा ही क्यों हैं? वह सदस्यता छोड़ भी सकते हैं। इसके इतर कोरोना के दौर में दृष्टिबाधित छात्रों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाना किस तरह का तर्क पेश कर रहा है? फिलहाल स्टूडेंट्स परेशान हैं और उनके पास विरोध प्रदर्शन के अलावा कोई रास्ता भी नहीं है।