भारत में कान फ़िल्म फेस्टिवल का नाम सुनते ही ऐश्वर्या राय की पर्पल लिपस्टिक… सोनम कपूर की अनोखी साड़ी… दीपिका पादुकोण का तितली वाला गाउन…लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ में आता है…. लेकिन अपने रेड कारपेट के लिए मशहूर यह कान फ़िल्म उत्सव आखिर है क्या?
कान फ़िल्म फेस्टिवल की खाका साल 1932 में तैयार हुआ, लेकिन तमाम मुशिकलों और पैसों की कमी के चलते यह कई सालों तक अटकता रहा. तमाम दिक्कतों और परेशानियों के बीच आखिरकार 20 सितम्बर 1946 में पहली बार इसका आयोजन हुआ और इसमें 21 देशों ने अपनी फिल्में दिखाईं. 1947 मे भी कई मुशिकलों से जूझते हुए इसका आयोजन तो हुआ लेकिन केवल 16 देशों से ही फिल्में प्रदर्शित की गईं. इसके बाद धन की कमी के कारण 1948 और 1950 मे इसका आयोजन ही नहीं हो सका.
2002 तक इस उत्सव को ‘ इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल‘ के नाम से जाना जाता था. हर साल इसका आयोजन कान में किया जाता है और यह भी इसे ‘ कान फ़िल्म फेस्टिवल ‘ कहे जाने की एक वजह है.
भारत में इसकी लोकप्रिता ऐश्वर्या राय के ब्यूटी प्रोडक्ट ‘लॉरियल पेरिस‘ की ओर से इसमें शिरकत करने के बाद से हुई. साल दर साल ऐश्वर्या के रेड कारपेट पर उतरने के साथ ही भारत मे लोगों की इसके प्रति रुचि बढ़ती गई. ऐश के बाद ‘लॉरियल‘ की ब्रांड एम्बेस्डर बनी सोनम ने भी कान के रेड कारपेट पर अपनी अनोखी पोशाकों से काफ़ी लोकप्रियता बटोरी, और अब दीपिका पादुकोण भी इस सूची मे शामिल हो गई हैं.
कान फ़िल्म फेस्टिवल का फिल्मों की दुनिया में भले ही एक अलग मुकाम हो लेकिन भारत में इसकी चर्चाएं बस अभिनेत्रियों का रेड कारपेट पर उतरने और उनकी पोशाकों तक ही सीमित है. भारतीय मीडिया में भी इसके इतने ही मायने है और इसकी बस इतनी ही चर्चा. इससे इतर इसकी फिल्मों, पुरस्कारों की कोई चर्चा शायद ही आपको भारतीय मीडिया में देखने-सुनने को मिले.
72वें कान फ़िल्म उत्सव में अभी तक दीपिका पादुकोण, प्रियंका चोपड़ा, कंगना रनौत, ऐश्वर्या राय, डायना पेंटी, हुमा कुरैशी, हीना खान अपना जलवा बिखेर चुकी हैं, और मीडिया गलियारों से लेकर गली कूचों में उनकी पोशाकों पर टीका–टिप्पणी कुछ ऐसे शुरू हो जाती है मानो सब अपने आप मे जाने माने डिज़ाइनर हों.
रेड कारपेट से इतर फिल्मों की बात करें तो इस बार कोई भारतीय फ़िल्म इसमें जगह नहीं बना सकी है.
नोट: यह आलेख निहारिका ने लिखा है, वह पेशे से पत्रकार हैं.
















