रांची, झारखंड की राजधानी है. रौनक भी है जैसी राजधानी में होनी चाहिए. लेकिन राजनीतिक रूप से रांची की अवस्था कम उथल पुथल की रही है. यहां से 1990 से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है. यहां भारतीय जनता पार्टी के मौजूदा विधायक सीपी सिंह लगातार चार बार जीत चुके हैं. अगर वह इस बार भी जीतते हैं तो यह उनकी पांचवी जीत होगी, जो स्थानीयों की माने तो मुश्किल नहीं लगती है. स्थानीय लोगों से बातचीत में सीपी सिंह को लेकर सकारात्मक पक्ष सुनने को मिला.
शहीद चौक के पास, आस पास के लोगों ने राज्य की राजनीति में ज्यादा रुचि दिखाई. राजेन्द्र महतो, सेंट जेवियर्स कॉलेज के पास से रिक्शा चलाते हैं. राजेन्द्र को लगता है कि रघुवर दास का मामला 50 50 का है यानी ठीक नहीं है, लेकिन मोदी जी के चलते वह जीत जाएंगे.उनके अनुसार सीपी सिंह की जीत तो तय है वस्तुतः यही संवाद इलाके के अन्य लोगों से सामने आया.
रजनीश, प्रिंस जनरल स्टोर चलाते हैं और सीपी सिंह के विजय को लेकर आश्वस्त हैं. इसका कारण उनकी सुलभता बताते हैं. रजनीश ने बताया कि अतिक्रमण हटाने वाले दस्ते तंग नहीं करते, कभी करते हैं तो हम लोग सीधे सीपी सिंह को फोन कर सकते हैं. सीपी सिंह को लेकर लगभग यही प्रतिक्रिया आसपास के दुकानदारों में भी रही. हालांकि शहर की इस सीट पर ना तो प्याज के बढ़ते दाम मुद्दा है ना ही सामान्य अव्यवस्था ही. रघुबर दास से नाराज़गी दिखती है लेकिन अन्य राजनेताओं को लेकर भी एक जैसी ही राय है.
रांची लोकसभा में छः विधानसभाएं आती हैं, जिनमें ईचागढ़, सिल्ली, खिजरी, रांची, कांके और हटिया है. इनमें से खिजरी अनुसूचित जनजाति और कांके अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. इनमें से रांची में भाजपा की स्थिति काफी मजबूत प्रतीत हो रही है.
रांची विधानसभा के राजनीतिक समीकरणों को देखें तो जातिगत या बाहरी भीतरी की राजनीति रांची में कम प्रभाव छोड़ पाती है. विधानसभा में लगभग 80% मतदाता शहरी हैं और यह बड़ा कारण है कि क्षेत्रीय दलों के मुद्दे और राजनीति का प्रभाव कम हो जाता है और यही कारण भी है कि सीपी सिंह की राह आसान मालूम पड़ती है.
गठबंधन ने यहां से महुआ माजी को उतारा है. यह सीट झामुमो के खाते में है. महुआ 2014 विधानसभा चुनाव में दूसरे स्थान पर थीं. महुआ माजी खुद को साहित्यकार और समाजशास्त्री दोनों बताती हैं. इसका कितना प्रभाव सामान्य जनता पर पड़ता है यह देखने की बात होगी. उनकी सुलभता और जीत पर जमीनी हकीकत सकारात्मक नहीं रही. गठबंधन की उम्मीदवार महुआ माजी की प्रचार गाड़ियों से शहर पटा पड़ा है.
शहर भर में भाजपा के बाद उनके ही संगीतमय वाहन डोल रहे हैं. हालांकि उनके पोस्टर्स या होर्डिंग्स में कहीं भी गठबंधन की प्रत्याशी होने का जिक्र नहीं है. यह अलग तरह की चुनावी स्ट्रेटजी हो सकती है लेकिन यह कितना कारगर साबित होती है ये तो तेईस दिसम्बर को ही मालूम पड़ सकेगा. चुनाव लड़ने का यह गठबंधन का तौर नया ही जान पड़ता है.