24 मार्च और दिनों की तरह सामान्य नहीं था. वैसे तो ‘कोरोना काल’ में कोई भी दिन सामान्य नहीं, लेकिन आज प्रधानमंत्री देश की जनता को संबोधित करने वाले थे. हमेशा की तरह रात 8 बजे. चारों तरफ कयासबाजियां. सोशल मीडिया पर एक से बढ़कर एक मीम्स. कोई कह रहा था कि टेस्टों की संख्या बढ़ाने पर बात होगी, तो कोई इमरजेंसी की बात कह रहा था. प्रधानमंत्री 8 बजे टीवी पर आए और देश में ‘संपूर्ण लॉकडाउन’ की घोषणा कर दी. लॉकडाउन शब्द सुनते ही देश की जनता सड़कों पर आ गई. इससे पहले मार्केट में चल रहे सोशल डिस्टेंसिंग शब्द की धज्जियां उड़ गईं. हालांकि अपनी समस्याएं जरा जुदा रहीं. मैं जिला छपरा का रहने वाला एक बिहारी जो बीते पांच सालों से नोएडा में गुजर-बसर कर रहा है. निपट अकेला. जिस होटल में बीते पांच सालों से भोजन-पानी चल रहा था. वो एक झटके से बंद हो गया. कैसे रहेंगे, क्या खाएंगे, कुछ समझ नहीं आ रहा था? दूर देश में रहते हुए पांच साल हो गए लेकिन कभी घर में खाना बनाने का नहीं सोचा. भारी संकट. तिसपर से मेरा एटीएम ब्लॉक हो गया था. हालांकि परेशानी लंबे समय तक नहीं चली. पड़ोस के दुकानदार के अकाउंट में घरवालों ने पैसा भेज दिया. इससे पहले वो सामान उधारी देने पर तैयार हो गया था. यहां मकान मालकिन का जिक्र करना जरूरी हो जाता है. मकान मालकिन खुद पैरालिसिस की शिकार हैं और अकेली रहती हैं. उन्होंने मेरी परेशानी को भांपते हुए कहा कि मेरा खाना भी उनके साथ ही बनेगा. दोनों मिलकर काम कर लेंगे. सो अपनी जैसे-तैसे कट रही.
नोएडा के अलग-अलग सेक्टर और चौड़ा गांव…
नोएडा के भीतर जगहों का नाम ऐसा ही होता है. अल्फा, बीटा और गामा जैसा. मेरे मोहल्ले का नाम सेक्टर 22 चौड़ा गांव है. हालांकि इस बीच सारी चौड़ाई सिकुड़ गई है. सबकुछ वीरान हो चुका है. गलियों में कुत्ते भी नहीं दिखते. सारी दुकानें बंद करवा दी गई हैं. लोगों का घर से बाहर निकलना भी बंद करवा दिया गया है. दरअसल, हमारे मोहल्ले में सीजफायर कंपनी के साथ काम करने वाला एक व्यक्ति संक्रमित पाया गया. धीरे-धीरे उस कंपनी के कई लोग संक्रमित होते गए. परिवार के लोग भी संक्रमण के जद में आए. अब आलम ये है कि लोग बालकनियों से झांकने में भी डर रहे हैं. पूरा इलाका सील कर दिया गया है. हताशा लोगों के चेहरे पर देखी जा सकती है. अच्छी बात यह है कि हमें राशन-पानी के लिए अधिक परेशान नहीं होना पड़ रहा.

हॉटस्पॉट और होम डिलिवरी…
इन दिनों आप सभी हॉटस्पॉट जैसे शब्द भी काफी सुन रहे होंगे. मैं देख रहा हूं. भुगत रहा हूं. कोरोना वायरस के संक्रमण चेन को ध्वस्त करने के लिए सेक्टर 22 के अलग-अलग हिस्सों को सील कर दिया गया. हॉटस्पॉट के तौर पर चिन्हित इलाकों में सारी जरूरी चीजों की आपूर्ति भी नोएडा प्रशासन करवा रहा है. हालांकि सीलिंग के दूसरे दिन जरा राहत दिखी. नोएडा देश-दुनिया के दूसरे जगहों की तुलना में बेहतर है लेकिन लोगों के डर का क्या? लोगों ने शुरुआत में लापरवाहियां बरतीं और अब सिवाय कैद रहने के कोई और चारा नहीं. संक्रमण रोकने के लिए गौतमबुध्दनगर में 22 हॉटस्पॉट को 15 अप्रैल की सुबह पांच बजे तक पूरी तरह से सील कर दिया हैं. इन इलाकों के लिहाज से जारी किए गए पास निरस्त कर दिए गए हैं.
यहां फंसे होने के बावजूद मुझे बिहार की चिंता हो रही है. घरवाले मुझे लेकर चिंतित हैं कि मैं इधर कैसा हूं? बिहार के बारे में खबरें पढ़ता हूं तो पाता हूं कि समूचे राज्य में सिर्फ चार कोरोना टेस्ट सेंटर हैं. सोचता हूं कि अगर वहां संक्रमण जरा भी फैलता है तो परिस्थितियां संभाले नहीं संभलने वाली.
सीजफायर कंपनी की लापरवाही बनी परेशानी…
गौरतलब है कि नोएडा के भीतर कोरोना के संक्रमण के पीछे यहां के सेक्टर 135 में स्थित सीजफायर कंपनी की भूमिका है. उत्तरप्रदेश में अब तक कुल 397 मामले हैं और नोएडा में 58 से अधिक मामले आए हैं. इस कंपनी में इंग्लैंड से आए ऑडिटर के संपर्क में आकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर 42 से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं. यही वजह है कि नोएडा आज हॉटस्पॉट बना हुआ है. इसे लेकर सीएम योगी ने जिलाधिकारी को भी तलब किया था और उनका ट्रांसफर किया जा चुका है.

नोएडा के बारे में सोचते हुए बार-बार बिहार पहुंच जाता हूं. पड़ोसी जिला सीवान इन दिनों संक्रमण की वजह से चर्चा में है. वहां भी पंजवार गांव की हदबंदी की जा रही है. शिक्षा, संस्कृति, खेलकूद और भोजपुरी से जुड़ी गतिविधियों की वजह से चर्चा में रहने वाला पंजवार इन दिनों हॉटस्पॉट बना हुआ है. वहां भी लापरवाही की वजह से मामला हाथ से बाहर निकल गया. दूर देश से आए शख्स ने देखते ही देखते 20 से अधिक लोगों को संक्रमित कर दिया. सोचकर ही सिहरन होने लगती है. इसके बावजूद उम्मीद है कि कायम है. नोएडा भी जीतेगा और पंजवार भी जीतेगा. बस सतर्क रहने के साथ ही आस-पास के लोगों को जागरूक करने की जरूरत है. कोई लड़ाई इंसान से बढ़कर है भला…
यह आलेख हमें संजीत भारती ने लिखकर भेजा है. संजीत स्वतंत्र पत्रकार व पब्लिक पॉलिसी विश्लेषक हैं. यहां व्यक्त विचार उनके अपने हैं और इससे ‘द बिहार मेल’ की सहमति आवश्यक नहीं है…