कहीं एम्बुलेंस के ‘चोर दरवाजे’ से तो सूबे में नहीं दाखिल हो रहा कोरोना?

कहीं एम्बुलेंस के ‘चोर दरवाजे’ से तो सूबे में नहीं दाखिल हो रहा कोरोना?

बिहार में कोरोना पॉजिटिव लोगों की संख्या 234+ तक पहुंच गई है. 18 अप्रैल को यह आंकड़ा 96 था और तब  ऐसा लग रहा था कि स्थिति काफी नियंत्रण में है. हालांकि कुछ संशयात्मा तब भी कह रहे थे कि जांच जिस अनुपात और स्तर से होनी चाहिए वैसा नहीं हो रहा है. अगर सही से जांच हो तो समूचे बिहार में 1000 से कम पॉजिटिव मामले नहीं होंगे.

ऐसे तमाम संशय और बातों के बावजूद आम लोगों को लग रहा था कि यहां स्थिति उतनी खराब नहीं होगी जितनी महाराष्ट्र या गुजरात में है. संभवत: इन्हीं सारी चीजों को देखते हुए 20 अप्रैल से सरकारी कार्यालयों को कुछ ज़रूरी निर्देश देकर दैनिक कार्यों को निपटाने के लिए खोल दिया गया, लेकिन 19 अप्रैल से 24 अप्रैल तक महज पांच दिनों में ही मामला इतना ज्यादा बढ़ गया है .

इस बात को जरा और स्पष्ट तौर पर कहा जाए तो इतने बेस के साथ पांच दिन से कम समय में मामलों का दोगुने से भी अधिक हो जाना स्थिति के खराब होने की गंभीरता को बताने के लिए काफी है. यह सब इसलिए भी ट्रैजिक लग रहा है क्योंकि बिहार में लॉक डाउन को एक महीने हो गए हैं.  बहुत जरूरी न हो तो किसी भी तरह का यातायात और आवागमन पर सख्ती से रोक लगी है, फिर भी संक्रमण है कि रुकने का नाम नहीं ले रहा.

संक्रमित लोगों का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ते जा रहा है. आम जनता उस हिसाब से संजीदगी बरतती नहीं दिख रही. हर तरह के दिशा-निर्देश के बावजूद लोगों की लापरवाही हर स्तर पर देखी जा रही है. लोगों को अभी भी लग रहा है दुर्र! यहाँ कुछो नहीं होगा जी. अब जैसी सम्भावनाएं हैं कि संक्रमण का ग्राफ आगे और तेजी से ऊपर भागेगा. संक्रमण के बढ़ते ग्राफ को लेकर वैसे तो ढेरों बातें, रिपोर्ट्स, आकलन और विश्लेषण आ रहे हैं लेकिन इस बीच महानगरों से वापस लौट रहे एम्बुलेंस की भूमिका पर भी जरा गौर करने की जरूरत है.

मैं जहां हूं वहां ठीक बगल में बेगूसराय जिले का आइसोलेशन सेंटर है. लोगों और मरीजों को मैं यहां से आता-जाता देख रहा हूं लेकिन नजदीक के ही हाईवे पर दिन-रात हूटर बजाते आते-जाते एम्बुलेंस मेरा ध्यान कई बार खींचते हैं. क्या बिहार में वाकई इस बीच इतने मरीज हो गए हैं कि हमेशा कानों को एम्बुलेंस के हूटर सुनाई पड़ें और क्या इनकी सुविधा इतनी त्वरित हो गई है? जांच तो इस बात की भी होनी चाहिए कि दिल्ली-मुम्बई से गांव और कस्बों तक सवारी लेकर पहुंचे एम्बुलेंस कहीं संक्रमण का विस्तार तो नहीं कर रहे? इस ओर ध्यान का न जाना कहीं खतरे को और बढ़ा न दे.

ऐसी खबरें (हालांकि अपुष्ट) गांव-गिरांव के लोग साझा कर रहे हैं कि लॉकडाउन के दौरान लोग फर्जी पास निर्गत करा कर एम्बुलेंस से यात्रा कर रहे हैं. यह एम्बुलेंस-पास लॉकडाउन का एक चोर दरवाजा है, जिसका इस्तेमाल इधर-उधर फंसे बिहारी घर पहुंचने के लिए खूब कर रहे हैं. यहीं क्यों शायद पूरे देश में यह हो रहा होगा. मैंने इसपर अभी तक कोई विस्तृत रिपोर्ट नहीं देखी है. बाद बाकी जरूरत पड़ने पर मरीजों को एम्बुलेंस तब भी नहीं मिलता जब मरीज अपनी जान से हाथ गवां चुका होता है. जहानाबाद-पटना मामले में आप सभी एम्बुलेंस को लेकर स्वास्थ्य महकमे और अस्पताल के प्रशासन की भूमिका को देख ही चुके हैं.

अपने मृत बच्चे को हाथ में लेकर बिलखती मां, मौत के बाद भी नसीब नहीं हो रहा जरूरतमंदों को एम्बुलेंस

गांव में लोग मोटा पैसा खर्च कर एम्बुलेंस में ठूँस- ठूँस कर दिल्ली मुम्बई आदि जगहों से वापस लौट रहे हैं. फेनहरा, पूर्वी चंपारण में जो आदमी कोरोना पॉजिटिव पाया गया था, वह भी मुम्बई से एम्बुलेंस से ही शिवहर पहुंचा था. जहाँ जांच में उसे कोरोना पॉजिटिव पाया गया था. ऐसा ही मामले अन्य जिलों से भी देखने-सुनने में आ रहे हैं.

ऐसे बहुत सारे लोग जिनमें कोरोना के कोई लक्षण नहीं दिखाई दे रहे, वे इसी दावे पर गांव में पहुंचने के बाद घूम-फिर रहे हैं कि उनमें कोई लक्षण नहीं है तो उन्हें आइसोलेशन की कोई जरूरत नहीं. अगर वह घर से कम निकलते हैं या सामाजिक दबाव में घर से बाहर नहीं भी निकलते हैं तो उनके सम्पर्क में रहने वाले परिजन तो बेधड़क गांव में घूम ही रहे हैं. लोगों की ऐसी लापवाही और हठधर्मिता से गांव-गिरांव की शांति भंग होने का खतरा उत्पन्न हो गया है.

लोग डर या सम्बन्ध खराब होने की वज़ह से दबी जबान में कुछ कहते भी हैं तो वह बे-असर रहता है. गरीबों- मजलूमों या दबी -कुची जातियों, जिनका गांव में कोई सामाजिक आधार नहीं है, को तो गांव के स्कूल में रख क्वारन्टीन कर दिया जा रहा है, लेकिन ऊंची जाति या थोड़े से सम्पन्न घरों के के लोग अपनी हेठी में होम क्वारन्टीन को मज़ाक बना, कोरोना फैलाने की संभावना को लिए पूरे गाँव में घूम रहे हैं.

मुखिया सरपंच आदि वोट खराब होने के डर से ताकतवर परिवार के किसी सदस्य पर ऐसा शक होने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। कई जगह तो ग्रामीणों की जागरूकता लड़ाई झगड़े के कारण में बदल गयी है. तो कोई भी झूठ मूठ के विवाद में नहीं पड़ना चाह रहा है. लेकिन यह एक संकट है. इस पर शासन-प्रशासन को विशेष गौर करना चाहिए.

जिले-जिले से ऐसी खबरें आ रही हैं कि लोग  बिना किसी मेडिकल इमरजेंसी के एम्बुलेंस से यात्रा कर यहां से वहां जा रहे हैं. ऐसा कर यह लोग ज़रूरतमंद मरीजों को मिल रही एम्बुलेंस की आपात सुविधा पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा कर रहे हैं. कहीं सरकार ने तंग आकर इस सुविधा को बंद कर दिया तो हजारों लाखों लोगों की जान आफत में फंस जाएगी.

बिहार में लोग एक जिले से दूसरे जिले तक जाने के लिए बहुत सुविधा से एम्बुलेंस का इस्तेमाल कर रहे हैं. हिंदुस्तान की रिपोर्ट की माने तो कर्नाटक में एम्बुलेंस का इस्तेमाल शराब बेचने के लिए किया जा रहा है. वहीं दिल्ली में मानेसर से बस्ती जा रहे कुछ लोग फर्जी मेडिकल जरूरतों का हवाला देकर जाते हुए पकड़े गए .इन्हें महामारी एक्ट और धोखाधड़ी के तहत गिरफ्त में लिया गया है. आजतक चैनल ने तो पिछले दिनों एक स्टिंग कर बताया कि देश के कुछ टॉप हॉस्पिटल से जुड़े हुए एम्बुलेंस ऑपरेटर्स मोटी रकम लेकर लोगों को एक राज्य से दूसरे राज्यों तक पहुंचा रहे हैं.

कोरोना के बढ़ते मामले और एम्बुलेंस से हजारों रुपये खर्च कर अपने घर पहुंचते लोगों पर विशेष नजर रखने की जरूरत है.  ऐसा न हो कि तमाम कोशिशों के बावजूद सबकुछ गड़बड़ हो जाए. अगर लॉकडाउन किसी भी तरह सफल न रहा तो घाटा तो अंततोगत्वा देश की जनता का ही होगा. इस उम्मीद में कि शासन-प्रशासन मामले की गंभीरता को समझेगा और दोषियों पर कार्रवाई होगी…