पूरे विश्व को कोविड-19 महामारी से जूझते हुए लगभग पांच महीने हो गए हैं, लेकिन इसका टीका अब भी उपलब्ध नहीं है. वैज्ञानिक और डॉक्टर इस महामारी का इलाज तलाशने में प्रयासरत हैं. दुनिया भर के लोगों को यह उम्मीद है कि देश– विदेश के वैज्ञानिकों को जल्द ही इस दिशा में सफलता मिलेगी और इस महामारी का अंत हो सकेगा। हालांकि हमारा समाज इस महामारी के अलावा भी कई तरह की महामारियों का सामना कर रहा है और इलाज पता होते हुए भी अब तक उसका इलाज नहीं हो पा रहा है। वह है नफरत का।
देश में तब्लीगी जमात से जुड़े कोरोना के मामलों ने कुछ लोगो को सांप्रदायिक राजनीति करने का मौका दे दिया। इस वायरस की आड़ लेकर मुस्लिम समुदाय को निशाने पर लिया जा रहा है और इस पूरी समस्या का दोष ही उन पर रख दिया जा रहा है।
आज देश में नाम भर से ही साबित किया जा रहा है कि कौन गलत है और कौन सही है। कई मुसलमान ये सोच रहे हैं कि कैसे वो इस देश को बताएं कि वायरस हिंदू– मुसलमान नहीं होता। स्थिति इतनी बुरी हो चुकी है उन्हें अपना नाम बताते हुए भी डर लगता है। इस मुद्दे पर देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों की राय जानने की कोशिश की गई।
दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधकर्ता आसिद इन दिनों अपने गांव कातियावली (यूपी) में रह रहे हैं। आसिद बताते हैं कि जब से मरकज से जुड़े कोरोना वायरस के मामले सामने आए हैं तब से उनका जीना बेहाल हो गया है, हर तरफ सांप्रदायिक माहौल बन रहा है और और इसमें सबसे ज्यादा दोष मीडिया का है। मुख्यधारा की मीडिया मुसलमानों के खिलाफ माहौल तैयार करने में लगातार लगी हुई है। आसिद कहते हैं, ‘‘ मेरा गांव ब्राह्मण बहुल गांव है। लगातार हमे निशाना बनाया जा रहा है। मुसलमान वेंडर को भी बाजार में सामान बेचने में दिक्कत हो रही है, उनसे कोई सामान नहीं खरीद रहा। लोगों ने आपसी सहमति भी कर ली है कि इनसे(मुसलमानों) से किसी भी प्रकार का लेन–देन नहीं रखना है।’’
आसिद का कहना है कि वह देश के अन्य लोगों से पूछना चाहते हैं कि कोरोना की जंग में देश के विभिन्न क्षेत्रों में मुसलमान देश की सेवा भी कर रहे हैं लेकिन लोग उन्हें तो धन्यवाद नहीं दे रहे हैं? वैसे मुसलमानों की खबरें मुख्यधारा की मीडिया में क्यों नहीं दिखाई जाती हैं?
आसिद यूपी सरकार पर भी अपना गुस्सा जाहिर करते हैं। वह कहते हैं कि राज्य में मुसलमानों पर इतने हमले हो रहे हैं फिर भी सरकार की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आता है। देश में नफरत की भावना फैलाने में बजरंग दल, आरएसएस का योगदान है।
आज आसिद खान को बाहर जाने और अपना नाम बताने में भी डर लगता है कि कहीं उन्हें भी लोग जमाती ना समझ बैठे, कहीं उन पर भी मौखिक– शारीरिक हमले ना हो जाए।
केरल की रहनेवाली फातिमा रजीला बताती हैं कि केरल में मुसलमानों की संख्या 26 फीसदी है। यहां बाहरी तौर पर तो कोई भी मुसलमानों को गाली नहीं दे रहा है। लेकिन फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं जो यह सोचते हैं कि कोरोना वायरस के लिए मुस्लिम समुदाय जिम्मेदार है। वह राज्य के कुछ मीडिया चैनलों को दोष देते हुए कहती हैं कि मीडिया लोगों में जानबूझ कर नफरत फैलाने का काम कर रही है। रजीला बताती हैं कि अन्य मुसलमान लड़कियों की तरह वह हिजाब –बुर्का नहीं पहनती हैं जिससे लोग उन्हें मुसलमान नहीं समझ पाते हैं लेकिन जब भी वह अपना नाम बताती हैं तो लोग उन्हें भी शक की निगाहों से देखते हैं।
रजीला बताती हैं कि इस नफरत भरे माहौल में लोग मुसलमान लड़कियों को ट्रोल कर रहे हैं, सोशल मीडिया पर उन्हें गंदी गालियां दे रहे हैं।
वहीं पश्चिम बंगाल के रहने वाले एक व्यक्ति (जो अपना नाम गुप्त रखना चाहते हैं) ने कहा कि इस बात से उन्हें कोई आश्चर्य नहीं होता कि इस संकट में भी लोग मुसलमानों को गाली दे रहे हैं।
वह कहते हैं कि मीडिया में ब्राह्मणवाद की सिर्फ झलक ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण अधिकार है। भारत में लोगों को वेलफेयर एस्टेट (कल्याणकारी राज्य) के बारे में नहीं पता है, उन्हें यह जरूरी नहीं लगता कि एक देश को समृद्धशाली बनाने के लिए सभी तबकों का विकास होना जरूरी है, यहां के कई लोग अपना भी नहीं सिर्फ धर्म का विकास करना चाहते हैं।
कोविड-19 के समय में मुसलमानों को निशाने पर लेने का मतलब बताते हुए वह कहते हैं कि सरकार मीडिया में सांप्रदायिक तत्वों को बढ़ावा दे कर अपनी कमियों को छुपा रही हैं। वह कहते हैं कि जब भी आप सांप्रदायिक लोगों से बात करेंगे तो वह विकास की बात ही नहीं करना चाहते हैं।
वह अपना एक वाकया सुनाते हुए कहते हैं कि जब मैं देश के एक हिन्दू नौजवान से बात कर रहा था तब मैंने पूछा कि इस हिन्दू राष्ट्र बनाने की प्रक्रिया में क्या वाकई हिंदुओ को लाभ मिल रहा है?
गरीब हिन्दू आज भी सड़क पर है, देश में बढ़ते हिंदूवाद से सिर्फ सवर्णों को लाभ मिलेगा।
वह कहते हैं कि हिंदुत्व की आड़ में देश के वंचित तबकों का हिंदूकरण किया जा रहा है। देश के ओ.बी. सी, एस. सी, एस. टी. को धार्मिक राष्ट्रवाद के नाम पर भ्रमित किया जा रहा है जिससे हिन्दू और मुसलमान में फर्क बढ़ता जा रहा है और पूरे देश में सांप्रदायिक भेद– भाव बढ़ रहा है।
यदि हम बिहार की बात करें तो सामाजिक कार्यकर्ता मुकेश राजभर बताते हैं कि इन दिनों बिहार के कैमूर जिले में सांप्रदायिकता बढ़ गई है लोग यहां भी मुसलमानों के साथ भेद– भाव कर रहे हैं, वैसे तो कोराना काल में शारीरिक दूरी सभी को रखनी चाहिए, लेकिन मुसलमानों को लोगों ने मन से भी अछूत बना दिया है। कैमूर जिले के मुसलमान जागरूक नहीं है वह एनआरसी से इतना डर गए हैं कि कोई भी पुलिस वाला उनके इलाके में आता है तो उन्हें लगता है कि उनका एन. आर. सी. किया जाएगा।मुसलमानों में यह भय चिंता का विषय है।
वहीं डूमराव की जानकी देवी कहती हैं कि बाजार में फल विक्रेता उनसे उनका धर्म पूछ रहा था, बोल रहा था कि हम मुसलमानों को सामान नहीं देंगे, कोरोना नहीं चाहिए मुझे!
वहीं जंगल बाजार में एक दूध विक्रेता एक व्यक्ति से बहस करते समय कह रहा था कि अब देश के मुसलमान ओवैसी के पास क्यों नहीं जा रहे हैं? इनका इलाज सरकार करा भी क्यों रही है?
कुल मिलाकर बिहार भी सांप्रदायिक गतिविधियों से अछूता नहीं है।
देश में कोराना काल में सोशल मीडिया पर एक्टिव भीड़ मुसलमानों पर कोराना जिहाद करने का आरोप लगा रही है। तब्लीगी जमात के लोगों से जो गलती हुई है उसे अनदेखा नहीं किया जा सकता है लेकिन क्या उस में प्रशासन की कोई गलती नहीं है? क्या जमात के नाम पर मुसलमानों को इसी तरह निशाने पर लिया जाता रहेगा? 20-21 मार्च तक देश के अन्य धार्मिक स्थल भी खुले हुए थे लेकिन दोष बस मस्ज़िदों का ही क्यों? ट्विटर पर#मैं भी हिंदू का ट्रेंड होना भारत के पंथनिरपेक्षता पर सवाल उठाता है।
सिख धर्म के बलदेव सिंह जब इटली से लौट कर आते हैं और होला मोहल्ला जैसे त्योहार में शामिल होते हैं तब कोई ट्विटर पर सिख जिहाद का ट्रेंड नहीं चलाता। तब कोई भी टीवी एंकर सिख समाज के लोगों को बदनाम नहीं करता, फिर सारी नफरत मुसलमानों के लिए ही क्यों? देश में पुलवामा अटैक हो या कोराना त्रासदी–देश के मुसलमानों को अपनी राष्ट्रभक्ति का प्रमाण जरूर देना पड़ता है।संकट की घड़ी में आपसी भाईचारा ही किसी देश को जोड़े रख सकता है।
यह आलेख ‘द बिहार मेल’ के लिए ऋतु ने लिखा है. वह इन दिनों दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग में शोधार्थी हैं। यहां व्यक्त विचार उनके अपने हैं और इससे ‘द बिहार मेल’ की सहमति आवश्यक नहीं है…