NFHS रिपोर्टः केंद्र-राज्य सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति खराब क्यों?

NFHS रिपोर्टः केंद्र-राज्य सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी महिलाओं की स्वास्थ्य स्थिति खराब क्यों?

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण(एनएफएचएस) के आंकड़ों के अनुसार समूचे बिहार की लगभग 60 फीसदी महिलाएं खून की कमी से लड़ रही हैं, और ऐसा ठीक उसी समय में हो रहा है जब केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लड़कियों और महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए कई सारी योजनाएं बनाई जा रही हैं. फिर चाहे वो बिहार सरकार की कन्या उत्थान योजना हो या फिर भारत सरकार की सुकन्या समृद्धि योजना.

सरकार द्वारा महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर किए गए तमाम दावों और कोशिशों के बावजूद भी सूबे के भीतर बीते पांच सालों में एनीमिया की दर में बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. आखिर ऐसी क्या वजह है जिससे महिलाओं में दिन प्रतिदिन खून की कमी बढ़ रही है? जानने के लिए पढ़िए ये पूरी रिपोर्ट…

आँकड़े क्या कहते हैं?

विकास और अनुसंधान केंद्र द्वारा बिहार में कराए गए ‘एनएफएचएस’ के एक सर्वेक्षण के मुताबिक महिलाओं में एनीमिया के जो आँकड़े सामने आए हैं वो बहुत ही भयावाह है. इस आँकड़े के तहत 2015-16 से महिलाओं में एनीमिया का संकट और गहरा हुआ है. एनएफएचएस-5 के आँकड़े के अनुसार 15 वर्ष से 49 वर्ष की वैसी महिलाएं जो गर्भवती नहीं हैं, उनमें एनीमिया की दर 63.6 फीसदी है.

आपको बता दें कि इसमें ग्रामीण महिलाओं की संख्या 66.0 फीसदी है. हालांकि शहरों के आंकड़े भी कुछ खास अच्छे नहीं हैं. 15-49 वर्ष की सामान्य शहरी महिलाएं 63.1 फीसदी एनीमिक हैं. वहीं 2015-16 में महिलाओं में एनीमिया की दर मौजूदा आंकड़े से 3.2 फीसदी से कम था.

15-49 वर्ष की गर्भवती महिलाओं में एनीमिया की दर 63.1 फीसदी है. जबकि वर्ष 2015-16 में यह दर 58.3 फीसदी था. एनीमिया से प्रभावित बच्चों के आँकड़े और भी ज्यादा दुःखद हैं. 6-59 महीने के 69.4 फीसदी बच्चों को एनीमिया है. वर्ष 2015-16 में ये दर 63.5 फीसदी था.

इन आंकड़ों से एक बात तो स्पष्ट है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल एनीमिया की दर में बढ़ोत्तरी हुई है. इस रिपोर्ट के सिलसिले में हमने गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले घरों में महिलाओं से जाकर बात की. बातचीत में उन्होंने बताया कि कई लोगों को तय राशन के अनुसार अनाज नहीं मिल पाता है. लॉकडाउन के समय में राशन बिल्कुल न के बराबर ही मिला. कुछ जगहों पर तो अक्टूबर-नवम्बर महीने में राशन दिया गया है.

सरोजनी देवी ( उम्र लगभग 40 साल) हमारे एक सवाल के जवाब में मायूस होकर कहती हैं, ”जब छोटे-छोटे बच्चों को खिलाने के लिए खाना नहीं है तो हम मां खुद के खाने की क्या सोचे?”

क्या होता है एनीमिया?

एनीमिया खून की कमी से होने वाली एक बीमारी है. हीमोग्लोबिन एक ऐसा तत्व है, जो हमारे शरीर में खून की मात्रा बताता है. हीमोग्लोबिन खून में मौजूद एक पिग्मेंट होता है. यह एक तरह का प्रोटीन है, जो ब्लड में मौजूद होता है. यह ऑक्सीजन को शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाने का काम करता है. पुरुषों में इसकी मात्रा 12 से 16 प्रतिशत तथा महिलाओं में 11 से 14 के बीच होना चाहिए. जब ये इस प्रतिशत से कम होता है तो एनीमिया की बीमारी होती है.

क्यों महिलाओं में खून की कमी ज्यादा होती है!

फिजियशन डॉक्टर अंशुमान ने हमसे बातचीत में बताया कि अलग-अलग क्षेत्रों के वातावरण, आयु व लिंग के अनुसार हीमोग्लोबिन में अंतर देखा जाता है. लेकिन महिलाओं में खून की कमी होने का बड़ा कारण है उनका रूटीन. आमतौर पर महिलाएं घर में सभी को खिलाने के बाद ही खाती हैं. इसके कारण उनकी थाली में पोषण युक्त खाने की कमी देखी जाती है. कई घरों में महिलाओं को दाल और सब्जी भी नहीं मिलता है.

भारत और खासकर बिहार में लैंगिक असमानता के कारण लड़कियों को पौष्टिक आहार नहीं मिलता. बावजूद इसके कि बिहार सरकारों ने लड़कियों के लिए पढ़ने लिखने से जुड़े तमाम योजनाएं बनाई हैं. टेलीविजन, अखबार व रेडियो के माध्यम से समान अधिकार को लेकर जागरूकता फैलाने के बाद भी लोग बेटे-बेटियों में फर्क़ करते हैं.

इसके अलावा कई मेडिकल कारण भी हैं,जिससे महिलाओं में खून की कमी होती है. डॉक्टर अंशुमान ने हमें बताया कि सरकार की तरफ से फॉलिक एसिड और आयरन की गोलियों का वितरण होता है, लेकिन उससे पहले हर महिला का सीबीसी (“कम्प्लीट ब्लड काउंट”) जांच कराने की पहल की जानी चाहिए. यह एक स्वागत योग्य कदम होगा.

एक बड़ा कारण ग्रामीण इलाकों में लोगों का साफ-सफाई के प्रति विशेष ध्यान नहीं देना भी है. कई परिवारों में लोग शौच के लिए नंगे पैर ही चले जाते हैं,जिससे जीवाणु शरीर मे प्रवेश करता है और खून की कमी होती है. औरतों का महावारी के पूरे चक्र से गुजरना और उस दौरान पोषण युक्त खानपान न मिलने के कारण भी खून की कमी होती है. यह बिल्कुल किसी लेनदेन के कार्यक्रम जैसा है. इसे ऐसे समझिए, हर महीने आपके शरीर से कुछ मात्रा में खून निकल जाता है. अगर उसकी पूर्ति उतने ही पोषण युक्त भोजन से कर सकें तो एक तारतम्य बना रहता है नहीं तो फिर खून की कमी हो जाती है.

डॉक्टर अंशुमान के तहत अभी के समय में जो खाद्य पदार्थ हम ले रहे हैं वो शुद्ध नहीं है. न ही लोगों तक हर तरीके का अनाज उपलब्ध है. मांसाहार खाने वाले लोगों में प्रोटीन की कमी उतनी नहीं दिखती है. पर शाकाहारी लोग प्रोटीन के मामले में पीछे रह जाते हैं. इसलिए सरकार को लोगों के बीच मांसाहारी खाने का प्रचार ज्यादा से ज्यादा करना चाहिए.

स्वास्थ्य के प्रति सजग नहीं युवतियां

इस रिपोर्ट के सिलसिले में हमने अलग-अलग आयु वर्ग के महिलाओं से बात की. अपने एक महीने के बच्चे को गोद में लिए आंचल देवी (बांसफोर जाति) हमसे बातचीत में कहती हैं- “मैंने नाम लिखना सीखा था पर अब भूल चुकी हूँ.” आंचल की उम्र अभी लगभग 25 साल होगी और उनके तीन बच्चे हैं. एक बच्चा चार साल का, एक ढाई साल का और गोद वाला बच्चा एक महीने का. आंचल की शादी 15-16 साल में हो गई थी. आंचल ने हमसे बातचीत में बताया कि उन्हें आंगनबाड़ी से जो अनाज डिलीवरी के बाद मिला वो बिल्कुल भी खाने लायक नहीं था.

बिहार में आंचल की जैसी और कई महिलाएं हैं, जो साक्षर नहीं हैं और उनकी शादी कम उम्र में करा दी जाती है. इस वजह से उनकी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाती. कम उम्र में शादी और फिर बच्चे होने के कारण वो अपना और अपने बच्चे का ख्याल नहीं रख पातीं. यहां आपको बताते चलें कि इस रिपोर्ट के अनुसार बिहार में लड़कियों की साक्षरता दर 74.9 फीसदी है. पर वैसी महिलाएं जो 10 या उससे अधिक वर्षों तक स्कूल गईं हैं उनकी दर 48.0 फीसदी है. आपको बता दें कि ग्रामीण महिलाओं में ये दर सिर्फ 25.2 फीसदी है.

आंचल की तरह ही एक और महिला से हमारी मुलाकात हुई, जिसका बच्चा अभी 2 महीने का है. आरती देवी वार्ड-44 के दाढी ( पासवान) जाति से आती हैं. आरती ने बताया कि उसके वार्ड में ज्यादातर लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है. बच्चा होने के बाद उन्हें आंगनबाड़ी से जो अनाज दिया गया वो तय राशन के मुकाबले बहुत कम था.

इन सभी महिलाओं से जब हमने पूछा कि क्या उन्होंने कभी अपना वजन जांच या खून की जांच कराया है. तो उनका जवाब था- नहीं कभी नहीं. कभी इसकी जरूरत ही नहीं पड़ी है.

कुछ और आंकड़ों के लिए हमने 20-25 उम्र की पढ़ाई करने वाली लड़कियों से बातचीत की.

मगध यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की डिग्री ले रही रही पूनम कुमारी कहती हैं कि उन्हें दूध पीना पसन्द नहीं है. वो कभी-कभी दूध पी लिया करती हैं अन्यथा नहीं. हालांकि वह नियमित रूप से फल, सब्जी और दाल का सेवन करती हैं.

एक अन्य छात्रा, रश्मि आनंद ने भी कुछ ऐसा ही जवाब दिया. रश्मि कहती हैं कि वो हर रोज दूध नहीं पी पाती हैं पर फल उन्हें बहुत पसन्द है. वो फल का सेवन नियमित रूप से करती हैं. जब इन दोनों ही छात्राओं से हमने ये सवाल किया कि क्या कभी उन्होंने हीमोग्लोबिन जाँच करवाया है तो उनका जवाब भी ‘नहीं’ था.

क्या सरकार अपने मिशन में असफल है?

एनएफएचएस की ये रिपोर्ट बेहद चिंताजनक है. बिहार की महिलाओं में एनीमिया के बढ़ते मामले सरकार के लिए एक आईना है, जो इस बात की ओर इशारा करता है कि तमाम योजनाओं के बाद भी सरकार अपने मिशन में असफल है. महिलाओं का स्वास्थ्य, उनकी शिक्षा, आज भी चिंता का विषय है. शरीर में खून की कमी मानसिक और शारीरिक रूप से व्यक्ति को कमजोर बनाता है. जब स्वास्थ्य ही अच्छा नहीं है तो बेटियों को पढ़ाने और साइकिल बांटने जैसी योजनाएं बेमानी सी लगती हैं…

द बिहार मेल के लिए यह रिपोर्ट शाम्भवी वत्स ने लिखा है, शाम्भवी पटना यूनिवर्सिटी से पत्रकारिता में स्नातक हैं.