बिहार विधानसभा भवन सात फरवरी को सौ साल का हो गया. विधायी इतिहास में राज्य के लिए सात फरवरी का दिन बेहद अहम है. इसी दिन पटना में विधान परिषद की बैठक इसी भवन में हुई थी. बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा ने लोकतंत्र में विधायकों की भूमिका के नाम से एक कार्यक्रम का आयोजन भी किया है. जानिए विधानसभा भवन के बारे में…
अंग्रेजों के शासन काल में बिहार बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा था. लेकिन बिहार को इससे अलग करने की मांग लगातार उठती रही. 12 दिसंबर 1911 को ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार में बिहार एवं उड़ीसा को मिलाकर बंगाल से पृथक कर एक राज्य बनाने की घोषणा की और इसका मुख्यालय पटना को बनाना निर्धारित हुआ. 22 मार्च, 1912 को बंगाल से अलग होकर ‘बिहार एवं उड़ीसा’ राज्य अस्तित्व में आया और सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली इसके पहले उप राज्यपाल बने. 1919 में नई तरह की शासन पद्धति की शुरुआत हुई और इसके तहत संघीय विधान सभा एवं राज्य परिषद के कार्य शुरू होने की बात हुई. बिहार एवं उड़ीसा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया और उप राज्यपाल की जगह राज्यपाल की नियुक्ति हुई.
इस समय विधायी परिषद के लिए एक स्वतंत्र भवन एवं सचिवालय की आवश्यकता हुई और 1920 में एक नए भवन का निर्माण कराया गया. यही परिषद भवन आज बिहार विधानसभा का मुख्य भवन है. इसी भवन में ‘बिहार एवं उड़ीसा प्रांतीय परिषद’ की पहली बैठक सात फरवरी, 1921 को सर वाल्टर मोरे की अध्यक्षता में हुई और इसे बिहार के प्रथम राज्यपाल लॉर्ड सत्येंद्र प्रसन्न सिन्हा ने संबोधित किया.
इसके बाद 1930 से 1932 के बीच तीन गोलमेज सम्मेलनों एवं पूना पैक्ट के तहत ब्रिटिश संसद ने ‘भारत सरकार अधिनियम 1935’ पारित किया. इसके तहत बिहार एवं उड़ीसा अलग–अलग स्वतंत्र राज्य के रूप में अस्तित्व में आए. बिहार में पूर्व से कार्यरत परिषद का नामांकरण बिहार विधानसा के रूप में हो गया और एक अलग उच्च एवं समीक्षात्मक सदन के रूप में बिहार विधान परिषद का गठन हुआ.
जनवरी, 1937 में बिहार विधान सभा के गठन के लिए चुनाव का आयोजन हुआ और 20 जुलाई, 1937 को डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में विधिवत प्रथम सरकार का गठन हुआ. 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध की शुरुआत के बाद ब्रितानी सरकार ने प्रांतीय सरकारों की सहमति के बगैर ही भारतीय लोगों को इस युद्ध में झोंक दिया. इसकी वजह से 31 अक्टूबर को 1939 को सिंह ने इस्तीफा दे दिया.
देश की आजादी के बाद 1950 में संविधान लागू होने के बाद यहां 1952 और 1957 में क्रमश: पहला एवं दूसरा आम चुनाव संपन्न हुआ. वहीं 21वीं शताब्दी में प्रवेश के साथ ही 2000 में ‘बिहार पुनर्गठन विधेयक’ पारित हुआ और इसके बाद बिहार से अलग होकर झारखंड एक अलग राज्य बना.
आजादी के बाद से कई अहम फैसले यहां लिए गए. भूमिहीन गरीबों के लिए बिहार राज्य वास भूमि अधिनियम हो, भूमि सुधार अधिनियम, पंचायती राज व्यवस्था में आधी आबादी को 50 फीसद आरक्षण दिया गया.