दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी को 2022 तक कोविड-19 का टीका नहीं मिल पाएगा. ‘द बीएमजे’ में बुधवार को प्रकाशित अध्ययन में यह बताया गया है और सचेत किया गया है कि टीका वितरित करना, उसे विकसित करने जितना ही चुनौतीपूर्ण होगा.
क्या है ‘द बीएमजे’ टर्म
‘द बीएमजे’ अंग्रेजी भाषा की एक साप्ताहिक पत्रिका है जिसका पूरा नाम ब्रिटिश मेडिकल जर्नल है. यह ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन द्वारा प्रकाशित किए जाने वाले सबसे पुरानी मेडिकल जर्नल में से एक है. प्रांतीय चिकित्सा और शल्य चिकित्सा पत्रिका के रूप में इसका प्रकाशन तीन अक्टूबर 1840 को हुआ था. धीरे-धीरे इसने विभिन्न फ़िजियशन का ध्यान अपने आलेख के कारण अपनी ओर खींचा. आपको बताते चलें कि इसमें रोग विषयक समीक्षा, स्वास्थ्य से जुड़े नए-नए शोध और संपादकीय प्रकाशित होते हैं.
टीका संचालित करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा
इसी पत्रिका में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में अनुमान जताया गया है कि दुनिया भर में 3.7 अरब वयस्क कोविड-19 का टीका लगवाना चाहते हैं. पत्रिका ने कहा कि यह खासकर कम और मध्यम आय वाले देशों में मांग के अनुरूप आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष और न्यायसंगत रणनीतियां बनाने की महत्ता को रेखांकित करता है. ये अध्ययन दर्शाते है कि वैश्विक कोविड-19 टीकाकरण कार्यक्रम की संचालनात्मक चुनौतियां टीका विकसित करने से जुड़ी वैज्ञानिक चुनौतियों जितनी ही मुश्किल होंगी.
कोविड के मामले में क्या है बिहार की स्थिति
हालाँकि आपको बता दें कि पटना एम्स में कोरोना वैक्सीन के दो चरणों का ट्रायल सफल रहा है. इसके अलावा तीसरे चरण के लिए अब तक 97 लोगों को डोज दिया जा चुका है. देशभर में सबसे पहले पटना एम्स में 15 जुलाई को वैक्सीन का ट्रायल शुरू हुआ था. लेकिन अभी कोविड का खतरा पूरी तरह टला नहीं है.
बिहार में आज के दिन तक कुल एक्टिव मरीज की संख्या 5015 है, और कुल ठीक हुए मरीजों की संख्या 2, 38, 462 लाख है. वहीं अगर पूरे देश की बात करें तो कुल एक्टिव मरीजों की संख्या 3, 22, 366 लाख है, कुल ठीक हुए मरीजों की संख्या 95 लाख के करीब है, इसी के साथ मरीजों के ठीक होने का दर यानी कि रिकवरी रेट 95.31 फीसदी हो गया है.
क्या है शोधकर्ताओं का कहना
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी को 2022 तक कोविड-19 का टीका संभवत: नहीं मिल पाएगा और यदि सभी टीका निर्माता अधिकतम निर्माण क्षमता तक पहुंचने में सफल हो जाए, तो भी 2022 तक दुनिया के कम से कम पांचवें हिस्से तक टीका नहीं पहुंच पाएगा.