पटना के नजदीक पलटी बस में मरे लोग दुर्घटना के बजाय सांस्थानिक हत्या के शिकार

पटना के नजदीक पलटी बस में मरे लोग दुर्घटना के बजाय सांस्थानिक हत्या के शिकार

बीते रोज पटना के प्राइवेट बस स्टैंड (मीठापुर) से समस्तीपुर को जाने वाली बस पलट गई. तीन लोगों की मौत हुई है और 30 से अधिक लोग घायल हुए हैं. मौके पर पहुंचे एसएसपी मनु महाराज ने बस के तेज स्पीड में चलने की बात कही है. मजिस्ट्रेट मृत लोगों के परिवार को 4 लाख की राशि देने की घोषणा कर चुके हैं. बात और खबर आई-गई लगने लगी है लेकिन बात और खबर इतनी भर नहीं है. इस पूरे प्रकरण पर पाटलिपुत्रा विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर हेमन्त कुमार झा अपने फेसबुक वॉल पर पूरे सिस्टम को लताड़ते हुए एक स्टेटस लिखा है. हम वो स्टेटस अपने पाठकों के लिए जस का तस लगा रहे हैं…

-उनका स्टेटस-

खबर यह नहीं है कि कल राजधानी पटना से बिहार के किसी सुदूर देहात को जा रही बस दुर्घटनाग्रस्त हो गई और कितने मरे, कितने बुरी तरह घायल होकर मौत से जूझ रहे हैं। खबर यह है कि क्षमता से अधिक यात्रियों को ले जा रही वह बस 2011 में ही ‘अनफिट’ घोषित हो चुकी थी।

अनफिट घोषित होने का मतलब है कि वह बस यात्रियों को लेकर सड़क पर नहीं चल सकती थी। अगर चली तो उसे जब्त होना था और बस मालिक को जुर्माना होना था। लेकिन, कुछ नहीं हुआ क्योंकि…बात जब आम लोगों की जान की हो तो कुछ नहीं होता।

पुलिस बता रही है कि तेज रफ्तार से चल रही उस बस का कोई महत्वपूर्ण पार्ट अचानक टूट गया और फिर…जो होना था हो गया।

तकनीकी रूप से अक्षम साबित हो चुकी बस अगर नियमों को ताक पर रख कर चलती ही रहे तो अनहोनी हो जाने में क्या आश्चर्य?

सार्वजनिक परिवहन की बदहाली का यही सत्य है और आम लोगों की जान का यही मोल। अक्सर दुर्घटनाएं होती रहती है, लोग मरते रहते हैं, अपंग होते रहते हैं, खबरें छपती हैं फिर नई खबरों में गुम हो जाती हैं। ऐसी अधिकतर दुर्घटनाओं के दो मुख्य कारण होते हैं…क्षमता से अधिक सवारियों का बोझ और गाड़ी की तकनीकी खराबी, जो कभी भी मौत बन कर सामने आ जाती है।

कल की घटना में जितने लोग मरे वे दुर्घटना में नहीं मरे बल्कि उनकी सांस्थानिक हत्या की गई है। ऐसी हत्या, जिनके जिम्मेवार लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी।

सार्वजनिक परिवहन के लिये जितने भी नियम या कानून हैं, बिहार जैसे पिछड़े और जनसंख्या बहुल राज्य में किसी भी नियम-कानून का पालन नहीं होता। कमोबेश यही स्थिति अन्य अनेक पिछड़े राज्यों की भी होगी।
बस मालिकों का लालच और विभागीय अधिकारियों की रिश्वतखोरी में ये सारे नियम-कानून विलीन हो जाते हैं। निजी परिवहन व्यवसाय की अनियंत्रित मुनाफाखोरी आम लोगों के लिये कितनी तकलीफदेह और जानलेवा हो सकती है, इसका उदाहरण यात्रा के दौरान आमलोगों की फजीहत और आए दिन की भयानक दुर्घटनाओं में मिलता रहता है।

पटना के मीठापुर बस स्टैंड के नजदीक पलटी बस (तस्वीर- इंडिया टुडे)

यही है व्यवस्था का जनविरोधी रूप। आमलोगों की जान की किसी को परवाह नहीं। दो महीने पहले मोकामा के गंगा पुल के साथ बने पैदल पार-पथ, जिसे फुटपाथ कहते हैं, पर बीच गंगा के ऊपर चौड़ी दरारें बन गई। सबको पता था लेकिन संबंधित विभागीय अधिकारियों ने इसे ठीक करने की कोई जहमत नहीं उठाई। अंधेरे में गुजर रही दो महिलाएं, जो मां-बेटी थी, दरारों को देख नहीं सकी और अचानक से पुल के ऊपर से बीच गंगा में गिर कर मर गई। अखबार के किसी कोने में छोटी सी खबर छपी, मामला खत्म। किसी अधिकारी पर कोई जिम्मेदारी तय नहीं की गई, किसी को कोई सजा नहीं मिली। बात आई-गई हो गई।
यही है सांस्थानिक हत्या, जब व्यवस्था आम लोगों की निरंतर होती ऐसी मौतों की जिम्मेदार होती है और किसी का कुछ नहीं बिगड़ता।

हम ऐसे दौर में जी रहे हैं जब व्यवस्था आम लोगों के हितों से पूरी तरह बेपरवाह हो चुकी है। हम केवल मतदाताओं के झुंड हैं जो चुनाव के वक्त तरह-तरह के तरीकों से बरगलाए जाते हैं। हम सिर्फ वोट दे सकते हैं बस। हमारी इतनी ही औकात है। असल में, हम सब भेड़ों के झुंड हैं, जो अपने खिलाफ हो रही साजिशों से पूरी तरह अनभिज्ञ हैं और जिधर जाने का इशारा मिलता है, बिना सोचे-समझे उधर चल देते हैं। तभी तो…जिस भी तंत्र में ‘सार्वजनिक’ शब्द जुड़ा है, उसकी हालत खस्ता है। चाहे वह सार्वजनिक शिक्षा का तंत्र हो या सार्वजनिक चिकित्सा या सार्वजनिक परिवहन…या ऐसा अन्य कुछ भी और।

गौर करने की बात है कि इस देश की 80 प्रतिशत आबादी इन्हीं सार्वजनिक तंत्रों के भरोसे जीती है, चलती है। शासन-सत्ता की नजरों में आमलोगों की क्या औकात रह गई है इसका प्रमाण ध्वस्त सार्वजनिक शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन व्यवस्था से मिल जाता है।

बहरहाल, आइए…बहस करें कि आगामी चुनाव में कुशवाहा-यदुवंशियों की तथाकथित ‘खीर’ बनेगी या कांग्रेस का सवर्ण कार्ड रंग लाएगा…या कि भाजपा का ध्रुवीकरण कार्ड माहौल में कुछ नए रंग भरेगा। तब तक बहस करें जब तक सरकारी स्कूलों में पढ़ रही हमारी संतानें शैक्षणिक रूप से बर्बाद न हो जाएं, सरकारी अस्पतालों में भर्त्ती हमारे भाई-बंधु, बच्चे ऑक्सीजन या दवा के अभाव में मर नहीं जाएं…या हम स्वयं किसी खटारा बस के पलटने से मर न जाएं।