और इस तरह रामलीला मैदान से शुरू हुआ अटल युग का अध्याय

और इस तरह रामलीला मैदान से शुरू हुआ अटल युग का अध्याय

छह फरवरी,  1977 दिल्ली ठंड की चादर में लिपटी हुई थी. लेकिन देश का राजनीतिक पारा चढ़ा हुआ था, ऐसे में दिल्ली भला कैसे इससे बच सकती थी. इंदिरा गांधी ने कुछ समय पहले ही आपातकाल हटाकर फिर से चुनाव कराने की घोषणा  तो कर दी थी लेकिन आपातकाल अब भी प्रभावी था.  जेल में बंद पड़े विपक्ष के नेता बाहर आ रहे थे. लेकिन उनमें से ज्यादा की हालत ऐसी नहीं थी कि वह सीधे घरघर जाकर जनता से भेंट मुलाकात कर  सकें.  इसलिए  विपक्षी दलों ने रामलीला मैदान में एक बड़ी रैली की घोषणा की. अब रैली आपातकाल खत्म होने की घोषणा के बाद हो रही थी तो निश्चित रूप से उसे ऐतिहासिक ही होना था.

दरअसल इस रैली की ऐतिहासिकता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि क्या वामपंथी, क्या दक्षिणपंथी, क्या कांग्रेस से नए अलगअलग हुए नेता, सब एक साथ एक मंच साझा करने वाले थे, वह भी इंदिरा गांधी के खिलाफ जो आपातकाल के बाद भी अजेय जान पड़ रही थीं.  इस रैली ने भारतीय राजनीति के कई बड़े दिग्गजों को उभरने का एक बड़ा मंच दिया था. इन्हीं में से एक थे अटल बिहारी वाजपेयी.

तस्वीर: गूगल

इधर विपक्ष रैली को सफल बनाने की तैयारी कर रहा था तो उधर सत्ता पक्ष इसके विफल करने के तरीकों में जुटा हुआ था. इन्हीं तरीकों में से एक ऐसा तरीका था,  जिसके बारे में हमें सोचकर अभी हंसी आए कि यार, देश में क्या मजाक चल रहा था. दूरदर्शन ने रैली के दिन ही उस समय की लोकप्रिय फिल्म ‘बॉबी’ का प्रसारण किया.  ऐसी उम्मीद थी कि इस फिल्म के चक्कर में लोग अपने घरों में ही बैठे रहेंगे, बाहर नहीं जाएंगे.

शाम में रामलीला मैदान में विपक्ष के नेता मंच पर जुटने  लगे. सभी नेता बारबारी से भाषण देने के लिए आए लेकिन जनता तब तक जोश में नहीं आई थी और एक हद तक शांत  ही बैठी हुई थी. ठंड का महीना था और रात के करीब नौ बज रहे थे. अब भाषण देने की बारी वाजपेयी की आई. उन्होंने मंच पर आते हीइंदिरा गांधी मुर्दाबादके नारे लगाए. इतना सुनते ही भीड़ से इंदिरा गांधी के खिलाफ नारे लगने लगे. उन्होंने दोनों हाथ उठाकर  वहां बैठी जनता को शांत कराते हुए  अपने परिचित अंदाज आंखे बंद करके कहा, ‘‘बाद मुद्दत के मिले हैं दीवाने.’  उसके बाद फिर अपने अंदाज में थोड़ी देर चुप रहने के बाद कहा, ‘‘कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने’’

इसके बाद तो भीड़ का शांत करा पाना मुश्किल था लेकिन वाजपेयी यहीं नहीं रूके.  उन्होंने इसके बाद कहा, ‘‘खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी कौन जानें.’’

इस भाषण में लगातार वाजपेयी जनता से  कह रहे थे कि वह इंदिरा गांधी को क्यों वोट न दें. वह लगातार उन लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और अधिकारों  का जिक्र कर रहे थे, जिससे जनता को आपातकाल के दौरान वंचित होना पड़ा था.  इस भाषण ने यह साबित कर दिया था कि देश में अटल बिहारी वाजपेयी नाम के एक बड़े नेता का उभार शुरू हो गया है.