बिहार में महागठबंधन के सियासी गुणा-गणित में खलल डालने के बाद असदुद्दीन ओवैसी पश्चिम बंगाल होते हुए उत्तर प्रदेश की राह पर हैं. बिहार में मिली सियासी सफलता ने उनके हौसले को भी बुलंद किया है. एमआईएम मुखिया ओवैसी के इन सियासी पैंतरों से जहां पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी तृण मूल कांग्रेस जैसी पार्टी उसकी मुखिया ममता बनर्जी सकते में हैं. वहीं उत्तरप्रदेश के मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के नेतागण भी उन पर हमलावर हैं. हाल के दिनों में ओवैसी और पूर्वांचल में सक्रिय सियासी पार्टी ( सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी) के मुखिया ओम प्रकाश राजभर की मुलाकातों से सियासी हल्कों में तरह-तरह की बातें शुरू हो गई हैं.
कहना न होगा कि बिहार में राजद, पश्चिम बंगाल में टीएमसी और उत्तर प्रदेश में सपा जैसी पार्टियों के लिए अकलियत समाज मजबूत आधार का काम करता है. चुनावी हार-जीत में भी ऐसे समीकरण देखने को मिलते हैं. एमआईएम मुखिया जाहिर तौर पर अकलियत समाज को रिझाने की कोशिश में हैं, और उनकी यह कोशिश काफी हद तक बिहार के सीमांचल में सफल भी रही है. बिहार में मिली सफलता को आधार बनाकर वे आगे की तैयारियों में जुट गए हैं.
यहां हम आपको बताते चलें कि बिहार में उन्होंने बसपा, रालोसपा और एमआईएम को साथ लेकर एक मोर्चा बनाया था. उसी तर्ज पर उन्होंने उत्तर प्रदेश में भी छोटी पार्टियों के साथ मिलकर ‘अधिकार संकल्प मोर्चा’ बनाया है. इस मोर्चे की अगुआई दिखावे के लिए भले ही राजभर कर रहे हों लेकिन सियासत समझने वाले खूब समझते हैं कि इस मोर्चे के पीछे असल चेहरा कौन है? यूपी के भीतर होने वाले पंचायत चुनाव को वे आम चुनाव के रिहर्सल के तौर पर ले रहे हैं. उनकी कोशिश अपनी सांगठनिक क्षमता बढ़ाने के साथ ही कुछ चुनाव जिताऊ चेहरों का जुगाड़ करने की होगी.
उत्तर प्रदेश के सियासी नब्ज को टटोलने और अपने आधार में इजाफे के लिए बीते दिनों ओवैसीऔर राजभर ने बिहार से सटे पूर्वांचल से अपने दौरे की शुरुआत की. दौरे की शुरुआत से ही सियासी बखेड़ा खड़ा होने लगा है. ओवैसी भी मीडिया की बहसों में रहने के तौरतरीकों को खूब जानते हैं. वे उन तमाम मुद्दों पर खुलकर बोलते दिखते हैं, जिनसे वे वोटों के ध्रुवीकरण के केंद्र में रहें.
आजमगढ़ पहुंचने और पत्रकारों की ओर से भाजपा की मदद करने के सवाल पर उन्होंने कहा कि वे भारतीय राजनीति के लिहाज से एक मात्र लैला हैं, और उनके मजनू कई हैं. साथ ही कहा कि मुसलमान अब सिर्फ ताली नहीं बजाएगा, बल्कि हक मांगेगा. तिस पर से भाजपा और उनकी पार्टी के बीच पकने वाली खिचड़ी को लेकर मीडिया चैनलों पर चलने वाली बहसें तो बस देखते ही बनती हैं. उदाहरण के लिए उत्तरप्रदेश से भाजपा के सांसद साक्षी महाराज द्वारा कही गई बात कि ओवैसी अब बिहार के बाद बीजेपी को पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में भी मदद करेंगे ने भी खासी सुर्खियां बटोरीं.
ओवैसी की उत्तर प्रदेश में इंट्री और सियासी पैंतरेबाजी के साथ ही उनकी जुगलबंदी पर उत्तर प्रदेश के स्थानीय पत्रकार अंबरीश चन्द्र तिवारी कहते हैं, ‘मुस्लिम और पिछड़े वोटों के आधार पर चलने वाली सपा और बसपा जैसी पार्टियों को ओवैसी नुकसान तो जरूर पहुंचाएंगे. इसके अलावा पूर्वांचल में राजभर के साथ आने भर से वे एक मजबूत गठजोड़ के तौर पर भी उभर सकते हैं. चूंकि यूपी में मुस्लिमों का एक स्वाभाविक रुझान सपा की ओर होता है इसलिए अधिक नुकसान की संभावना भी सपा को ही दिखाई देती है.’
ओवैसी इस बात को जानते हैं कि उन्हें कहां गरम और कहां नरम रहना है. पूर्वांचल से अपने दौरे की शुरुआत करते हुए उन्होंने सपा मुखिया अखिलेश यादव को भी आड़े हाथ लिया और बोला कि अखिलेश यादव की सरकार के दौरान उनकी यूपी में दाखिल होने की अनुमति को 28 बार नामंजूर कर दिया गया, जबकि 12 बार तो यूपी में आने ही नहीं दिया गया, और एक यह समय है कि योगी सरकार में वे बिना किसी दिक्कत के दौरे की शुरुआत कर चुके हैं.
पूर्वांचल के जौनपुर जिले में ओवैसी की सभा की कवरेज कर चुके पत्रकार राजन मिश्रा हमसे बातचीत में कहते हैं, ‘देखिए ओवैसी की सभाओं में भीड़ तो जरूर उमड़ रही है. बीते कार्यक्रम में इतनी भीड़ उमड़ गई कि कार्यक्रम को आगे बढ़ाना पड़ा. ओवैसी वोटों के साथ ही मुस्लिम धर्म गुरुओं को भी साधने में लगे हैं. वे उत्तर प्रदेश में वोट और धर्म की जुगलबंदी को भी बखूबी जानते हैं.’
यहां हम आपको बताते चलें कि उत्तर प्रदेश में इस साल मार्च के महीने में 75 जिलों की 3200 सीटों पर पंचायत के सदस्यों का चुनाव कराए जाने की संभावना है. वैसे तो एमआईएम ने साल 2015 के पंचायत चुनाव में ही अपनी इंट्री मारी थी और 18 जिलों में 50 जिला पंचायत सदस्य उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इस बार समय बदला है. ओवैसी को बिहार के सियासी परिणाम ने मजबूती और आत्मविश्वास दोनों दिया है. वैसे तो सब कुछ भविष्य के गर्भ में है और कोई समुदाय किसी का बंधुआ वोटर नहीं होता लेकिन पूर्वांचल से शुरू हुए ओवैसी और राजभर के दौरे ने अकलियत वोटों के आधार पर सियासी दखल रखने वाली पार्टियों को अपनी रणनीति में तब्दीलियां लाने के लिए मजबूर तो जरूर कर दिया है…
ह खबर/रिपोर्ट ‘द बिहार मेल’ के लिए कल्याण स्वरूप ने लिखी है. कल्याण मोतिहारी के रहने वाले हैं और पूर्व में ईटीवी नेटवर्क के साथ जुड़कर पत्रकारिता करते रहे हैं…