भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में पांच सामाजिक कार्यकर्ताओं और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा, वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजाल्विस की गिरफ्तारी हुई थी. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने अगले आदेश तक इन सभी को अपने घरों में नजरबंद रखने के आदेश दिए हैं. इन कार्यकर्ताओं में से एक वरनोन गोंजाल्विस के बेटे सागर अब्राहम गोंजाल्विस ने अपने फेसबुक पोस्ट में छापेमारी के दौरान का अपना अनुभव अपने फेसबुक प्रोफाइल पर लिखा है.
”कल सुबह मुझे एक बार फिर चिरपरिचित डर का अहसास हुआ. मेरे घर पर कल सुबह करीब छह बजे पुणे पुलिस और स्थानीय पुलिस ने छापा मारा. वे लोग मेरे घर की तलाशी लेने और मेरे पिता को गिरफ्तार करने आए थे. हमसे हमारा मोबाइल फोन ले लिया गया, लैंडलाइन फोन काट दी गई. यही नहीं हमारे निजी कंप्यूटर को खोला गया और एक–एक करके बुक शेल्फ से किताबें नीचे गिराई गई. संदिग्ध चीज के लिए सीडी, पेन ड्राइव को स्कैन किया गया. जिन किताबों पर माओ, नक्सल और मार्क्स जैसे नाम थे, उसकी पड़ताल बार–बार की गई और सबूत के तौर पर कई किताबों को उन्होंने अपने पास रख लिया. ये ऐसी किताबें हैं जिसे बड़ी आसानी से कोई भी लाइब्रेरी से या ऑनलाइन हासिल कर सकता है. मेरे पास जो ई. एच कार द्वारा लिखी गई किताब ‘बोल्शेविक रिवोल्यूशन वॉल्यूम -1′ था, उसे भी सबूत के तौर पर पैक कर लिया गया. ये सारे पुलिसकर्मी मेरे घर में करीब सात घंटे तक यानी दोपहर एक बजे तक रहे. इस दौरान कुछ पुलिस वाले मेरे घर के दरवाजे पर खड़े भी रहे. हमें घर से बाहर निकलने की इजाजत भी नहीं दी गई.
मैं उस समय और डर गया जब मैंने देखा कि पुलिस वाले मेरे मम्मी–पापा से सामान्य बातचीत करते हुए कई छोटे–छोटे सवाल कर रहे थे. इस बीच मेरी मां ने पूरी पुलिस टीम के लिए चाय बनाई और मुझसे कहा, ‘’ वह सभी मेरे मेहमान हैं’’. पुलिसवालों को चाय दी गई और इस बीच बातचीत भी चलती रही लेकिन मैं अंदर ही अदर बेहद डरा हुआ था. ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे मैं और मेरे मम्मी–पापा इस मजबूत सरकारी मशीनरी के खिलाफ कर सकते थे. इसलिए हम छोटी–छोटी बातों और मुस्कान के साथ पुलसकर्मियों की सहायत करते रहे. हमने उन्हें उनका काम करने में पूरी सहायता की.
मैं इस पूरे माहौल और पूरी स्थिति से वाकिफ था. मेरे लिए यह कोई नई स्थिति नहीं थी. आज से लगभग 10 साल पहले 2007 में मैं इसी तरह की स्थिति से गुजरा था जब मेरे पापा को कई आरोपो में गिरफ्तार कर लिया गया था. मेरे घर पर रात के 12 बजे छापे पड़े थे और सुबह छह बजे तक घर की तलाशी होती रही थी. उस समय मैं सिर्फ 12 साल का था और ज्यादातर चीजों को अपनी मां की आंखों से ही भांप रहा था, मेरी मम्मी एक वकील होने के बाद भी कुछ नहीं कर सकती थीं. उस समय मम्मी को पुलिस ने सहयोग करने के लिए कहा था अन्यथा उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाता. उस समय भी बेबसी से निपटने के लिए पुलिसवालों के साथ छोटी–छोटी बातें हो रही थी. पुलिस वाले मेरी पढ़ाई–लिखाई से बहुत प्रभावित हुए थे और शिकायत कर रहे थे कि उनके बच्चों का झुकाव पढ़ाई में इस तरह नहीं है.
अगस्त, 2007 में भी हमने प्रशासन और तंत्र को उसका काम करने देने में मदद की थी. लगभग साढ़े पांच साल तक जेल में रहने के बाद मेरे पापा को सारे आरोपों से बरी कर दिया गया. एक व्यक्ति को अपने जीवन का पांच साल जेल में उस अपराध करने के लिए बर्बाद करना पड़ा जिसे उसने कभी किया ही नहीं था. राज्य सरकार ने कितना अच्छा काम किया था न?
उस अगस्त से लेकर इस अगस्त तक. यह महीना हमारे लिए अच्छा नहीं है. अगस्त, 2018 में वही स्थिति वापस लौट आई है. उस समय रात में दरवाजा खटखटाया गया था और इस समय सुबह–सुबह दरवाजे पर पुलिस पहुंच गई. और मेरा विश्वास करें मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा. ये उस सरकार द्वारा की गई गलती है जिसका कर्तव्य हमारे अधिकारों की रक्षा करना है. जिस व्यक्ति से आप प्यार करते हैं, जिसका आदर करते हैं और आपको यह पता हो कि उसने कोई गलत काम नहीं किया है और उसे जेल ले जाया जा रहा हो तो आप यही कर सकते हैं कि उसे कसकर गले लगा लें और मजबूत रहने के लिए कहें. इसके बाद भी मेरे पापा ने मुझे चिंता नहीं करने को कहा. उनका कहना था, “परेशान मत हो! कम से कम मेरे साथ अंदर और भी लोग होंगे”
कल मैंने अपनी बेबसी के बीच लोगों का स्वागत करना और आशावादी होना सीखा.
मैं अपने पापा का आदर–सम्मान बहुत सारी चीजों के लिए करता हूं लेकिन उनकी जिस चीज का मैं कायल हूं, वह है उनका आदर्शों और मूल्यों के लिए प्रतिबद्ध रहना. हमेशा सच्चाई के साथ खड़े रहना और उन लोगों की मदद करना जिन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया है. वह हमेशा ऐसा करते रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे. न तो पिछली बार उन्हें कोई अपने कर्तव्यों और मूल्यों से डिगा पाया था और न ही इस बार ऐसा होगा. उनके अंदर एक ऐसा हौसला है, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता है और जिस चीज में वह विश्वास करते हैं, उसके साथ हमेशा खड़े रहेंगे.
इस देश के एक नागरिक होने के तौर पर हम लोगों की आवाज दबाने वाले इस तंत्र के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर सकते हैं. उन लोगों की आवाज को लगातार दबाने की कोशिश की जा रही है जो मौजूदा रिवायत के खिलाफ बोलते हैं. एक लोकतांत्रिक देश में असहमति जताना किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है.”