लाखों की मौत के बाद अंग्रेजों ने बनवाया था गोलघर…

लाखों की मौत के बाद अंग्रेजों ने बनवाया था गोलघर…

हर गांव, कस्बे या शहर में कोई ऐसी जगह या चीज जरूर होती है जो उसकी पहचान से जुड़ी होती है. उसे दिखा दो और फिर कहने को कुछ नहीं रह जाता. जैसे दिल्ली का

साभार-विकिपीडिया

इंडिया गेट, बंबई का गेटवे ऑफ इंडिया, बनारस के घाट, हैदराबाद का चारमीनार, आगरा का ताज महल, कोलकाता का विक्टोरिया महल और बाकी की मेहनत आप खुद ही करें. ऐसे में मैंने सोचा कि पटना को कौन सी एक चीज या जगह स्थापित कर सकती है. एक जगह जाके अटक सी गई. गोलघर. अंग्रेजों का बनवाया गया गोलघर. कभी बिहार को भूखमरी और बाढ़ से बचाने के लिए बनवाया गया गोलघर. पटना जाने वालों के लिए अनिवार्य तौर पर चढ़ाई किए जाने वाला गोलघर. जिस पर एक सांस से चढ़ने की शर्तें लगती हैं.

हां, तो अब गोलघर की बातें…
यह कोई ऐसी इमारत नहीं है जिसे देखकर आनेवाली पीढ़ियां कहें कि अंग्रेजों ने क्या मास्टरपीस बनाया था. गोलघर तो इसलिए बनाया था कि यहां वह अनाज रख सकें. अकाल और बाढ़ की स्थिति में लोगों को भूखमरी से बचाया जा सके. योजना तो कई गोलघर बनवाने की थी लेकिन गोलघर सिर्फ एक ही बन सका. ऐतिहासिक. बिहार में जो कुछ भी है वो ऐतिहासिक है. यहां की सड़कें, यहां के गड्ढे, यहां की इमारतें और सबकुछ. जैसे पृथ्वी के पास एक ही जाहिर उपग्रह है चंद्रमा. ठीक वैसे ही बिहार के पास भी सिर्फ एक ही गोलघर रहा, दूसरा कभी बन ही नहीं पाया. हमेशा ‘अंडर रिस्टोरेशन’ की जद में रहने वाली इमारत. एक तरफ से चढ़िए और दूसरी तरफ से उतर जाइए. 

गोलघर की कुछ महत्वपूर्ण बातें…
इस अंडाकार कहें या गोल इस पर ढेरों बातें हैं. इसके आर्किटेक्ट कैप्टन जॉन गारीस्टन थे. इसमें कुल 145 सीढ़ियां हैं. दरअसल यह घुमावदार सीढ़ियां आम जनता के बजाय मजदूरों के लिए बनाई गईं थीं. मजदूर जो अनाज लाने और ले जाने का काम करते थे. इसकी ऊंचाई 96 फीट है और ये बिना खंभे की इमारत है. है ना हैरत वाली बात? खैर, आगे  बढ़ते हैं. इस पर चढ़ने के बाद पूरा पटना दिखता है और गंगा नदी भी. कभी गंगा बिल्कुल गोलघर से सटकर बहा करती थी. नजदीक ही बंदरगाह थे लेकिन अब सबकुछ इतिहास है. इसीलिए तो कहा कि ऐतिहासिक. कई लोगों को गोलघर किसी स्तूप सरीखा लगता है और ये गलत भी नहीं है. इसकी वास्तुकला स्तूप से ही मिलतीजुलती है. हालांकि गोलघर को बनवाये जाने का उद्देश्य कभी पूरा नहीं हो पाया.

गोलघर बनने के पीछे की वजहें…
दरअसल 1769 से 1773 के बीच गंगा के निचले मैदानी इलाकों बंगाल और बिहार को भयानक सूखे और अकाल का सामना करना पड़ा था. इस अकाल से करीब एक करोड़ लोगों काल के मुंह में समा गए थे. सामाजिक वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि इस अकाल के पीछे ईस्ट इंडिया कंपनी की नीतियां बड़ी वजह थीं. लोगों से बड़े पैमाने पर कर वसूला जाता था जिससे उनकी आर्थिक दशा दिन ब दिन बिगड़ती जा रही थी. वहीं साल 1769 के मानसून में पर्याप्त बरसात न होने की वजह से सूखे का जो दौर आया, उसने लाखों लोगों को लील लिया. इस अकाल ने ईस्ट इंडिया कंपनी के राजस्व पर बुरा असर डाला और उन्होंने उसके लिए कुछ नीतियां बनाईं.

ईस्ट इंडिया कंपनी ने राजस्व समिति के तात्कालीन अध्यक्ष जॉन शोर को अकाल से निपटने और जरूरी कदम उठाने के लिए इस क्षेत्र में भेजा. शोर ने इस समस्या से निपटने के लिए अनाजों पर से ट्रांजिट ड्यूटी हटाने के साथ पटना जाने वाले अनाजों पर स्थानीय प्रतिबंध हटाने का फैसला किया. उन्होंने अनाज रखने के लिए राज्य में गोलघर के निर्माण का प्रस्ताव रखा. साल 1784 में भारत के तात्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्गिंट्स ने शोर को गोलघर बनवाने की मंजूरी दे दी.

हालांकि जब गोलघर का निर्माण चल रहा था तभी ईस्ट इंडिया कंपनी के एक अधिकारी रॉबर्ट किड ने इसका विरोध भी किया था. कई अधिकारियों का तर्क यह भी था कि इससे अकाल जैसी समस्याओं को निपटने में ज्यादा मदद नहीं मिलेगी. शायद यही वजह रही हो कि योजना जहां कई गोलघर बनवाने की थी वहीं एक अकेला गोलघर बनवाया गया. वो भी ऐतिहासिक, है कि नहीं???