सियासत भी अजीब शै है- न यहां कोई परमानेंट दोस्त है और न कोई दुश्मन- सब अपने फायदे के लिहाज से कहीं से हट रहे हैं और कहीं सट रहे हैं. जनता भले ही हमेशा हलकान रहे. शायद मुल्क की सियासत को देखते हुए ही वसीम बरेलवी ने यह नज़्म लिखी होगी-
हमारा अज़्म-ए-सफ़र कब किधर का हो जाए,
ये वो नहीं जो किसी रहगुज़र का हो जाए
उसी को जीने का हक़ है जो इस ज़माने में
इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए
तो बात कुछ ऐसी है कि बीते विधानसभा में हाथी की सवारी करते हुए विधानसभा तक की यात्रा करने वाले चैनपुर विधायक भाई ज़मा खां को जद (यू) का तीर लग चुका है. वैसे तो चुनाव के दौरान और परिणाम आने के बाद वे खुद को बहनजी (बसपा सुप्रीमो मायावती) का सिपाही कहते थकते न थे, लेकिन इस बीच उन्हें दूसरे पाले में ले जाने की कोशिश करने वाले सफल हो गए.
आज उन्हें स्वयं सीएम नीतीश कुमार पार्टी की सदस्यता दिलवाते दिखे हैं. साथ में अशोक चौधरी, विजय चौधरी और आलोक सिंह को भी देखा गया. ऐसी तस्वीर सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रही है. यहां हम आपको यह भी बताते चलें कि आलोक सिंह जद (यू) नेता व कारोबारी हैं और उनके भाई संतोष सिंह भाजपा के विधान परिषद सदस्य हैं.
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश से सटे भोजपुरी पट्टी में बसपा एक फैक्टर जरूर रहती है, लेकिन परिणाम आने के बाद विधायक पार्टी के साथ नहीं रह पाते. पूर्व में भी ऐसा हो चुका है. बसपा के बैनर तले जीतने वाले विधायकों को कभी लालू प्रसाद ने तोड़ा था, और राबड़ी राज में तो यहां से चुने गए विधायक (महाबली सिंह) को तब सड़क एवं परिवहन मंत्रालय संभालने की जिम्मेदारी मिली थी. हालांकि बाद के दिनों में महाबली सिंह जद(यू) में शामिल हो गए और आज वे काराकाट के सांसद हैं.
बीते माह (18 दिसंबर) को भी उनकी तब जद (यू) के प्रदेश अध्यक्ष रहे वशिष्ठ नारायण सिंह से मुलाकात की खबरों ने सुर्खियां बटोरी थीं. उनके साथ चेनारी विधानसभा से कांग्रेस के टिकट पर चुने गए विधायक मुरारी गौतम भी थे. तब भी ऐसी बातें उठ रही थीं कि वे जद(यू) का दामन तो नहीं थाम रहे, लेकिन तब उन्होंने इस मुलाकात को शिष्टाचार मुलाकात करार दिया था. हालांकि जिस तरह से कांग्रेस विधायक मीडिया के कैमरों से बच रहे थे वह सियासत के गलियारे में पक रही खिचड़ी को स्पष्ट तौर पर दिखाने के लिए काफी था.