जाति नहीं जाती: गांधी मैदान में सीपीआई की रैली बनाम भाजपा का श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में जुटान

जाति नहीं जाती: गांधी मैदान में सीपीआई की रैली बनाम भाजपा का श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में जुटान

राजनीति में प्रतीकों का बड़ा महत्व है और गर बात बिहार की राजनीति की हो रही हो तो प्रतीकों का महत्व बढ़ जाता है. बीते रोज (गुरुवार, 25 अक्टूबर – 2018) को सीपाआई, बिहार ने राजनीतिक रैलियों के लिए चर्चित पटना के गांधी मैदान में भाजपा भगाओ, देश बचाओ रैली का आयोजन किया था. जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार इस रैली के स्टार स्पीकर रहे. इस रैली के मार्फत बिहार के लिहाज से विपक्ष की एकजुटता भी दिखाने की कोशिशें हुईं.

वहीं गांधी मैदान से एकदम सटे हुए श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में बीते रोज (गुरुवार, 25 अक्टूबर – 2018) को भाजपा ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिहार केशरी डॉ कृष्ण सिंह की स्मृति में 131वीं जयंती समारोह व कृषक समागम का आयोजन किया. इस आयोजन में भाजपा नेता व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी, प्रदेश अध्यक्ष नित्यानंद राय, पाटलिपुत्रा सांसद राम कृपाल यादव, सी.पी ठाकुर समेत भाजपा के कई गणमान्य सांसद व प्रदेश सरकार में शामिल मंत्री मौजूद रहे. राजद और कांग्रेस पर जमकर हमले हुए.

जाति और प्रतीकों की बात

गौरतलब है कि कांग्रेस से जुड़े रहे कृष्ण सिंह की राजनीतिक विरासत को हथियाने की पुरजोर कोशिशें प्रदेश के भीतर सक्रिय सारी पार्टियों में जारी हैं. कांग्रेस पहले ही उनके नाम पर जुटान कर चुकी है. भाजपा ने बीते रोज उनकी स्मृति में एक सभा का आयोजन किया. भाजपा की ओर से राज्य सभा सांसद सी.पी. ठाकुर के पुत्र व पूर्व विधान पार्षद विवेक ठाकुर इस कार्यक्रम के संयोजक थे.

पटना में जगह-जगह लगे पोस्टरों और बैनरों में से एक

यहां हम आपको बता दें कि कृष्ण सिंह को बिहार की राजनीति के लिहाज से एक कद्दावर व सर्वमान्य सवर्ण नेता (भूमिहार कहें) माना जाता है. वे भले ही खुद ऐसा क्लेम न करते रहे हों लेकिन उनका समाज या कहें कि उनकी जाति उन्हें बड़े गर्वीले भाव से लेकर चलती है. नहीं तो कारण नहीं समझ आता कि जहां कांग्रेस के राज्य सभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह कांग्रेस की ओर से (21 अक्टूबर – 2018) को पटना में किए गए इवेंट के अगुआ होते हैं. वहीं दूसरी ओर सी.पी ठाकुर के पुत्र उन्हें लेकर एक व्यापक कार्यक्रम करते हैं. ये दोनों नेता भूमिहार जाति से ही ताल्लुक रखते हैं.

वहीं दूसरी ओर से बिहार और देश की सक्रिय राजनीति में पदार्पण कर रहे जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी भूमिहार जाति से ताल्लुक रखते हैं. हालांकि बिहार और देश के भीतर सक्रिय वामपंथी पार्टियां जातियों की राजनीति खुले तौर पर नहीं करतीं. कन्हैया भी अपने भाषणों में प्रतीकों का खासा इस्तेमाल करते हैं. वे अपनी रैली के मंच से भाजपा द्वारा आयोजित इस इवेंट की टाइमिंग और मानसिकता पर सीधा प्रहार करते हैं. वे बोलते हैं, “श्री कृष्ण सिंह कभी भाजपा नहीं ज्वाइन किये थे, और दूसरी बात ये कि श्री कृष्ण सिंह के नाम पर यदि भाजपा लाल झंडे को दबा देना चाहती है तो ऐसा नहीं होगा. तुम काली घटा हो कलंक के, तुम कितना भी उमड़-घुमड़कर आओ. तुम इस नीले आसमान में लाल सूरज को निकलने से नहीं रोक सकते.

सीपीआई द्वारा आहुत रैली में भाषण देते हुए कन्हैया कुमार

इन तीनों इवेंट पर जब हमने सवर्ण सेना के अध्यक्ष भागवत शर्मा से बात की तो वे कहते हैं, “भाजपा जो कि सरकार में भी है. वो सवर्णों के गुस्से को कम करने की कोशिश में जुट गई है. चुनाव नजदीक हैं. भाजपा अपने वायदों को पूरा नहीं कर सकी है. एससी-एसटी ऐक्ट पर पूरे प्रदेश में भाजपा के नेताओं का विरोध हो रहा है. सवर्ण सेना ऐसा करने में आगे-आगे है. भाजपा ऐसी कोशिश में हैं कि ऐसे ही इवेंट के जरिये सवर्णों के गुस्से को कम किया जा सके. वे कहते हैं कि भाजपा सवर्णों को भले ही कहीं-कहीं अगुआ बना दे लेकिन वे व्यापक स्तर पर सवर्णों का भला नहीं चाहती. भाजपा सिर्फ वोटबैंक की राजनीति कर रही है. कन्हैया जैसा उभरता सवर्ण नेता भाजपा को रास नहीं आ रहा. भाजपा सरकार में है और सरकार की तमाम एजेंसियां उस पर लगे राष्ट्रद्रोह के मामले को साबित करने में नाकाम रही हैं. यह पूरा मामला भाजपा के गैर सवर्ण रवैये को पूरी तरह साफ करता है.”

बीते रोज गांधी मैदान और श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल में हुए इन दोनों इवेंट को लेकर सूबे के वरिष्ठ पत्रकार वीरेंद्र यादव अपने फेसबुक वॉल पर लिखते हैं कि एक ओर जहां श्री कृष्ण मेमोरियल हॉल के आयोजन के मार्फत सांसद सीपी ठाकुर के पुत्र व पूर्व विधान परिषद सदस्य विवेक ठाकुर जहां भाजपा में खुद को नये भूमिहार नेता के रूप में स्थापित करने का प्रयास कर रहे थे. वहीं दूसरी ओर गांधी मैदान में सीपीआई की ओर से आयोजित रैली के नायक छात्र नेता कन्हैया कुमार थे. पार्टी ने उन्हें बेगूसराय से चुनाव लड़ाने का फैसला किया है. वे अंत मे लिखते हैं कि इन दो अलग-अलग इवेंट के माध्यम से दो अलग-अलग पार्टियां दो भूमिहार नेता कन्हैया कुमार और विवेक ठाकुर की ‘प्राणप्रतिष्ठा’ करने की कोशिश में हैं.

भाजपा की ओर से आहुत समागम में सांसद सीपी ठाकुर, रामकृपाल यादव औऱ सूरजभान सिंह (तस्वीर- वीरेंद्र यादव)

भूमिहार अपनी छवि निर्माण की कोशिश में हैं

बिहार के भीतर अलग-अलग पार्टियों और संबंधित पार्टियों के भूमिहार जाति से ताल्लुक रखने वाले राजनेताओं की हालिया सक्रियता पर इंडिया टुडे मैगजीन के पूर्व संपादक दिलीप मंडल से जब हम इस पूरे प्रकरण पर बात करते हैं. तो वे कहते हैं, वे कहते हैं, “चूंकि बिहार के लिहाज से भूमिहार हमेशा से प्रिवलेज्ड जाति रही है. ऐसे में उन्हें आइकनों की खास जरूरत नहीं हुई. बीते 25-30 सालों में भूमिहार जाति की एक ओवरऑल इमेज बनी है. उसके केन्द्र में लंपटई, गुंडई, हिंसा और मास मर्डर है. उनकी छवि एक दबंग जाति के तौर पर बनी. ऐसे में जातियां भी इस कोशिश में रहती हैं कि बदलते समय के हिसाब से वे खुद का मेकओवर करें.”

भाजपा की ओर से आहुत समागम में बोलते हुए विवेक ठाकुर

वे आगे कहते हैं, “अब जब कि इस जाति में भी पढ़े लिखे युवा जैसे कन्हैया – जेएनयू से पीएचडी, सीपी ठाकुर के पुत्र – बाहर से पढ़-लिखकर आए. उसी कैटेगरी में अखिलेश प्रसाद सिंह को भी रखा जा सकता है. ऐसे ही युवाओं के माध्यम से भूमिहार समुदाय भी अपने छविनिर्माण की कोशिश में है. अपनी ही जातियों में आइकन खोजने में जातियों को भी सहूलियत रहती है. बिहार के भूमिहारों के लिहाज से स्वामी सहजानन्द सरस्वती भी हैं लेकिन वे खेती-किसानी के मुद्दों के अधिक नजदीक हैं. ऐसे में भूमिहारों के लिए कृष्ण बाबू दूसरे और बड़े आइकन बचते हैं. उनकी उदार, विद्वान और भलमनसाहत वाली छवि भूमिहारों के पक्ष में जाती है. इन्हीं वजहों से भूमिहार उन्हें फिर से प्रतिष्ठित करने की कोशिश में लगे हैं. साथ ही वे अपनी जाति से सम्बद्ध राजनीति को भी बचाने की कोशिश में हैं.”

एक आइकन का जातीय आधार में फंस जाना दुर्भाग्यपूर्ण

जब हमने जातियों और खासतौर पर जातियोम द्वारा मनाई जा रही जयंतियों के संदर्भ में ‘जयंती’ शीर्षक से कविता लिख चुके व पटना के सोशल सर्किल में सक्रिय कवि राजेश कमल से बातचीत की तो वे इस पूरे क्रम को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हैं. वे कहते हैं, “चूंकि एक जाति के लोग अपने जाति के लोगों से अधिक रिलेट करते हैं. उनके साथ उठते बैठते हैं, शायद यही वजह है कि वे अपने आइकन भी अपनी जातियों से ही चुनते हैं. नहीं तो ऐसा समझ में नहीं आता कि कैसे किसी जाति का बदमाश या माफिया सम्बद्ध जाति के युवाओं का आइकन हो जाए?
उनकी कविता है-

~जयंती~

कायस्थ राजेंद्र बाबू की
राजपूत महाराणाप्रताप की
भूमिहार दिनकर की
ब्राह्मण चाणक्य की
मनाते हैं जयंती

वर्षों तक भगत सिंह को राजपूत समझ
एक राजनेता मनाता रहा उनकी जयंती
इल्म हुआ तो वह आजकल
बाबू वीर कुंवर सिंह की मनाता है जयंती

शुक्र है कि जातियां बची हुई हैं
इसीलिए बची हुई है जयंती…